2. केंब्रिज शहर और हार्वर्ड : इतिहास एवं वर्तमान
2. केंब्रिज
शहर और हार्वर्ड : इतिहास एवं वर्तमान
सन् 1631 में आधुनिक केम्ब्रिज की स्थापना
बोस्टन के तटीय इलाके में हुई। जगह अच्छी थी और अनेक शहर
उपकंठ की तरह पहले उसका नाम था न्यूटाऊन। मैसेच्यूट के एक सर्वोच्च
अधिकारी थे ग्रेट एंड जनरल कोर्ट नामक एक संस्था के। सात साल पश्चात अर्थात् सन्
1638 में उन्होंने रेमरेण्ड थॉमस सेपार्ड के पारिस अथवा धार्मिक स्थल में दो वर्ष
पहले 1636 में प्रतिष्ठित की गई कॉलेज को अच्छी तरह से स्थापित तथा संचालित
करने का निर्णय लिया।
न्यूटाऊन
नाम बदलकर रख दिया गया केम्ब्रिज, इंगलैंड के इस प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के नाम के अनुरूप
मैसेच्यूट के अधिकांश नैतिकतावादी गवर्नर धर्म शिक्षा के लिए आते
थे। मगर कॉलेज का नाम दे दिया गया हार्वर्ड । यह सम्मान उस व्यक्ति के नाम को दिया
गया, जिसने अपने मरने के
समय जायदाद का आधा हिस्सा और पूरी लाइब्रेरी कॉलेज के नाम कर दी। वे थे चार्ल्सटाऊन के कम उम्र के
प्यूरिटान मंत्री जान हार्वर्ड । धीरे-धीरे केम्ब्रिज में अनेक शिल्प-संस्थान
विकसित हुए। मगर हार्वर्ड और एम.आई.टी विश्वविद्यालय केम्ब्रिज शहर के
प्राण-बिन्दु बन गए।
इस
प्रकार प्लाईमाउथ में पिलग्रीम फादर इंग्लैंड से आने के पन्द्रह
वर्ष बाद मैसेच्यूट उपसागर की बस्ती में हार्वर्ड कॉलेज की स्थापना हुई। सन् 1636 के अक्टूबर 28
तारीख को मैसेच्यूट प्रशासन कॉलेज को चार सौ पाऊंड देने के लिए राजी हो गया।
अनुदान देने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वह एक अच्छे स्कूल अथवा कॉलेज ( schoale or colledge उस समय अंग्रेजी
में ऐसा लिखा जाता था) के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा। यह धनराशि सन 1987-88 में
हार्वर्ड में रहते समय मुझे बहुत हास्यास्पद लगी। मगर हार्वर्ड
के इतिहास में दिखाया गया है कि मैसेच्यूट प्रशासन के तत्कालीन वार्षिक आय का वह चौथा भाग
था। उसके बाद शरद ऋतु
में कॉलेज के लिए पहले बोर्ड ऑफ ओवरसियर्स की नियुक्ति की गई तथा उनकी सहायता करने
के लिए छह मजिस्ट्रेट तथा छह पादरियों की
नियुक्ति हुई। सन 1638 की ग्रीष्म ऋतु में कॉलेज का पहला बैच बारह छात्रों को
लेकर आरंभ हुआ। उस समय एक मास्टर जी छात्रों की देख-रेख करते थे। एक बहुत छोटे से
घर में कॉलेज चलता था। जिस हार्वर्ड यार्ड में घूमना मुझे इतना अच्छा लग रहा था, उस समय वह कॉलेज
यार्ड हुआ करता था। उसके चारों तरफ स्थानीय लोगों की गुहालें या गौशालाएं हुआ करती
थी।
कॉलेज
का नाम हार्वर्ड पडने के कुछ दिन तक
कॉलेज पहले की तरह चला। पहले कहा जा चुका है कि चार्ल्स टाऊन में इस वंदनीय
व्यक्ति ने अपने मृत्युकाल के समय अपनी सारी किताबें और जमीन-जायदाद का आधा हिस्सा
कॉलेज को दान किया था। बहुत अच्छे ढंग से कॉलेज चलने लगा। सन् 1640 में मैसेच्युट विश्वविद्यालय
कोर्ट ने कॉलेज के
प्रथम अध्यक्ष के हेनेरी डनस्टर को नियुक्त किया। डनस्टर थे एक किसान
के बेटे। वह नौजवान स्पष्टवादी थे तथा इंगलैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक थे।
उन्होंने अंग्रेजी मेडल में कॉलेज कोर्स का खूब गंभीर नाम रखा था द लिबरल आर्ट, द लर्नेड
टंग्स एंड द
थ्री फेलोसफीज। उसके बाद उन्होंने छात्रों के लिए आवास और कक्षाएं खोलीं
। डनस्टर की धारणा
थी कि एक अच्छे कॉलेज के लिए संपूर्ण आवासीय होना बहुत जरूरी है, जहाँ छात्र एक साथ में रहेंगे तथा एक
दूसरे के संपर्क में आएंगे। हार्वर्ड कॉलेज में प्रथम कमेन्समेंट उत्सव (डिग्री
प्रदान करने का) सन् 1642 में आयोजित किया गया, जिसमें नौ छात्रों
को स्नातक डिग्री प्रदान की गई। इस समावर्तन समारोह में ग्रीक
और लैटिन भाषा का इस्तेमाल किया गया। उस समारोह में 50 लोगों के रात्रि-भोज की
व्यवस्था भी की गई। हार्वर्ड यार्ड में
मैं कई बार पैदल घुमा हूं अथवा बैंच पर बैठकर जॉन हार्वर्ड की मूर्ति को निहारता रहा हूं। उस शीतल छाया के
तले छुपा हुआ है तीन सौ साल का लंबा इतिहास, उस समय का प्रथम
ग्रेजुएट बेच,
मैसेच्यूट प्रशासन, जॉन हार्वर्ड , लुप्त हुए
छोटे-छोटे घर,
छात्रावास, चारों ओर का
ग्राम्य-जीवन और गौशालाएं। ये सारे दृश्य आंखों के सामने उभर आते हैं। उसी रास्ते
सन् 1987-88 (अर्थात् मेरे रहते समय) में असंख्य छात्र-छात्राएं अपने-अपने आवास
स्थल से भिन्न-भिन्न लाइब्रेरियों, फेकेल्टी कक्षाओं
या हार्वर्ड स्कवेयर में बने कॉफी सेंटर
(जहां पैंतीस प्रकार की कॉफी मिलती है) अथवा सर्वाधिक पसंद चाइनीज या मेक्सिकॉन रेस्टोरेंट को
खाना खाने जाते। बहुत प्राचीन किताबों की दुकान पर, जहां खूब सारी नई
किताबें, मैग्जीन तथा बहुत पुरानी किताबें
मिलती थी। फिर कई लोग जाते हार्वर्ड कॉपरेटिव स्टोर की तरफ, जहां सामान्य दर पर सारी चीजें (नित्य व्यवहार
में आने वाली वस्तुएं जैसे हार्वर्ड विश्वविद्यालय की टाई, विशेष पोशाकें, समावर्तन समारोह के
ड्रेस) बिकती थीं। यह विश्वविद्यालय द्वारा संचालित
होता था। अनेक छात्र-छात्राएं रास्ते के किनारे पेड़ों की छांव में बैठकर किताबें अथवा पत्रिकाएं
पढ़ते थे। हार्वर्ड यार्ड के एक तरफ रास्ते
के किनारे छोटी-छोटी अनेक डोरमेटरी, दूसरी तरफ एक दूसरे
के पीछे अनेक संकाय, जिसकी पहली पंक्ति में सुप्रसिद्ध हार्वर्ड चर्च और जॉन हार्वर्ड की सुंदर प्रतिमूर्ति, हार्वर्ड विश्वविद्यालय की लाइब्रेरियां, थोड़ा पीछे जाने से
दायीं तरफ हेरी वाइडनर मेमोरियल लाइब्रेरी। यह हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लाइब्रेरियों का प्राण-बिंदु
है। जब टाइटेनिक जहाज समुद्र में डूबा, उसके मरने वालों
में से अन्यतम हार्वर्ड विश्वविद्यालय के युवा छात्र का
यह नाम था। वह थे अपनी वृद्धा माँ का एक मात्र पुत्र, जिनके पास बहुत
सारी जमीन-जायदाद थी। बहुत सालों से एक पुरानी लाइब्रेरी थी। संपूर्ण लाइब्रेरी, अपना जीवन चलाने के
लिए कुछ संपत्ति को छोड़कर सारा धन उसने दान कर दिया था, केवल एक शर्त पर कि
उस
लाइब्रेरी का नाम
उसके बेटे के नाम पर रखा जाए। और वैसा ही हुआ। हमारे
जगन्नाथ मंदिर की बाईस सीढ़ियों से भी ज्यादा, सीढ़ियों के बाद
सीढ़ियां चढ़ते जाने के बाद रिसेप्शन काउन्टर आता है, जहां आठ-दस लोग
रहते हैं पुस्तकें देने और लेने के लिए, जहां पर रखे हुए हैं बहुत सारे वर्णमालाओं में लेखकों
तथा विषय-वस्तु से संबंधित
केटालॉग। यह है धरती के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी तथा
अगर यू एस. लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस को छोड़ दें तो यह
दुनिया की सबसे बड़ी
लाइब्रेरी है। उस समय पुस्तकों की संख्या थी अड़तीस लाख तथा उसके अनुरूप
बहुभाषी पत्रिकाओं
का भी समावेश था।
अनेक
विशिष्ट विभागों के अनुसार ये सारी पुस्तकें दस मंजिले स्टॉक
में सजाई हुई थी तथा एक सुरंग
द्वारा लामेंट तथा प्रूसे दोनों लाइब्रेरियों से जोड़ी गई थी
जहां वाइड़न के अंश-विशेष रखे हुए थे। वाइड़न लाइब्रेरी के
साहित्य और इतिहास विभाग की संपदा अतुलनीय तथा दुनिया की किसी
भी लाइब्रेरी में नहीं मिलने वाली पुस्तकें यहां मिल जाती हैं । इसके अतिरिक्त हिब्रू
और जुडाइक भाषा की किताबें, मध्य-प्राच्य और
स्लोविक पूर्व यूरोपीय किताबों का सबसे ज्यादा व्यवहार होता है। यह लाइब्रेरी विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र, दर्शन तथा
राजनीति-विज्ञान के शोध-कार्य का केन्द्र-स्थली है।
अगर
सच कहूं तो जब मैंने पहली बार उस लाइब्रेरी
में प्रवेश किया तो मैं खुद चकित रह गया और इस आश्चर्यजनक संस्था को देखने में मन
ही मन एक अद्भूत आनंद भी आया। मेरे लिए यह
एक विशेष सौभाग्य था कि इससे पहले मुझे इंग्लैंड के सर्वप्राचीन और
दुनिया की आधुनिकतम सुप्रसिद्ध केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक साल पढ़ने
का अवसर मिला था और उसकी लाइब्रेरी से पढ़ने के लिए पुस्तकें आने और लौटाने में
विशेष आनंद का भी अनुभव किया था। वह लाइब्रेरी विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी की
तुलना में बहुत बड़ी है, मगर वाइड़न लाइब्रेरी उससे भी ज्यादा बड़ी है, इस बात का मुझे दिल
से अहसास हो गया था।
इस
लाइब्रेरी की दूसरी खास बात है- संस्कृत पुस्तकें तथा पांडुलिपियों का होना। भारत पुरातत्ववेत्ता
और संस्कृत अध्यापक
विजेल धीरे-धीरे मेरे अंतरंग मित्र बन गए। वे डिपार्टमेंट ऑफ इंडियन स्टडीज के
विभागाध्यक्ष थे।उनके मतानुसार हार्वर्ड में संस्कृत पुस्तकें दुनिया का अन्यतम सबसे बड़ा
भंडार है।उनके इस मत को गुरुत्व न देने का मेरे पास कोई कारण नहीं था। उन्होंने पहले
ही
कहा था जर्मनी के ट्यूबंगेन विश्वविद्यालय के इंडोलोजी विभाग
की संस्कृत पुस्तकों का उपयोग विश्व के अन्यतम समाहार
में आता है। एक बार मुझे ट्यूबंगेन के संकलनों को
देखने का मौका मिला था। मैंने वहां के
अध्यापक हेनेरी स्टेटनक्रान के साथ कुछ दिन उस विश्वविद्यालय में बिताए थे, इसलिए अध्यापक
विजेल का मत पूर्णतया प्रासंगिक था, इस बात का मुझे अहसास हुआ। हार्वर्ड में मेरे एक साल रहने के भीतर संस्कृत एस्थेटिक्स
की प्रमुख पुस्तक आनंदवर्धन की “ध्वन्यालोक” और उसकी समीक्षा पर
आधारित पुस्तक “लोचन” का अंग्रेजी में
अनुवाद हो रहा था। जिसमें भारतीय संस्कृत विद्वान मुख्य रूप से भाग ले रहे थे। विजेल बीच-बीच
में अपने सुझाव अनुवाद कार्य के लिए दे रहे थे। उसके बाद दो अंग्रेजी पुस्तकें ‘द लाइट
ऑफ सजेशन‘ तथा ‘द आई’ शीर्षक से
प्रकाशित हुई। प्रकाशित होकर हार्वर्ड ओरिएन्टल सीरीज में जुड़ जाने पर अध्यापक विजेल
की प्रसन्नता भरी चिट्ठी मिली। उन्होंने लिखा था कि हार्वर्ड शृंखला में यह अन्यतम अत्यंत मूल्यवान युगलबंदी
पुस्तक बनकर मान्यता प्राप्त करेगी।
वाइडनेर के सिवाय हार्वर्ड
विश्वविद्यालय के अन्य लाइब्रेरियों के बारे में
अगर कुछ न कहा जाए तो समीक्षा अपूर्ण रह जाएगी। उनके अंतर्गत एक खास हार्वर्ड कॉलेज लाइब्रेरी भी है। यह कला
और विज्ञान संकाय की लाइब्रेरी है और उसके चौवालीस भाग है।
अन्य संकायों की तरह लाइब्रेरी और खासकर शोधकार्य में लगे विद्वानों के लिए छत्तीस
लाइब्रेरियाँ हैं। हार्वर्ड में भर्ती होते ही छात्रों को परिचय पत्र दिया
जाता है, जो विश्वविद्यालय की मुख्य
लाइब्रेरियों का उपयोग के लिए पर्याप्त
है। हमारे कोर्स अर्थात् सेंटर फॉर
इंटरनेशनल अफेयर के फेलो को एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में
नियुक्त किया जाता है, जिसके लिए हमारे पास एक अलग से कार्ड होता है और किसी भी लाइब्रेरी से एक
साथ तीस पुस्तकें ले जाने की सुविधा प्रदान की जाती है।
विश्वविद्यालय की तरफ से
लाइब्रेरी विषय पर तथा उनके साधारण एवं शोध-कार्य के लिए दो पुस्तकें लाइब्रेरी के
छात्रों को मिलती हैं। पहली- गाइड टू हार्वर्ड लाइब्रेरीज तथा दूसरी-रिसर्च सीरीज एट हार्वर्ड लाइब्रेरीज। कई लाइब्रेरी स्टॉफ सदस्यों के
परिवार को भी कार्ड तथा पुस्तकें दी जाती है। हमारे
कोर्स के सभी प्रत्याशियों को यह सुयोग मिलता है। हार्वर्ड की अन्यतम प्रमुख लाइब्रेरियों में एक हैं हाऊटन लाइब्रेरी, जिसमें पांच लाख है
विरल पुस्तकें तथा पांडुलिपियों की संख्या चालीस लाख होगी । पूरे अमेरिका तथा विश्व
की सबसे बड़ी
पांडुलिपि लाइब्रेरी यह है। यहां मैंने देखे
थे न्यू इंग्लैंड के लेखकों (एमसर्न, मेलविली, लंगफेलो, जेम्स इत्यादि) की
पांडुलिपियों समेत अन्य यूरोपिय लेखकों की पांडुलिपियां। इसके अतिरिक्त सन
1501 से
पहले प्रकाशित हुई
पुस्तकों का भंडार। इन पुस्तकों को विश्वविद्यालय ने नाम दिया था
इनकुनबाला।पहले ही कहा जा चुहा है कि वाइडन लाइब्रेरी के दो हिस्से हैं- लामेंट
लाइब्रेरी और प्रूसे लाइब्रेरी। पहले भाग में आधुनिक कविताओं
(अंग्रेजी और यूरोपीय लेटिन अमेरिका, अफ्रीका, चीन, भारत इत्यादि) का विशाल भंडार और हर महीने यहां
कविता पाठ किया जाता है। मेरा यह सौभाग्य रहा है कि एक बार मैंने भी अपनी कविता (मूल ओड़िया समेत अँग्रेजी अनुवाद) यहां
सुनाई थी। मेरे रहते समय यहां सिआमस हिनी, डोनाल्ड हॉल, राबर्ट ब्लाई, थॉमस ट्रांस ट्रोमर
इत्यादि ने भी अपना कविता-पाठ किया था।
पूरे लाइब्रेरी में हार्वर्ड
के तीन सौ से ज्यादा पुराने आर्चिव, मानचित्र, थिएटर, संगीत कलेक्शन सभी
देखने को मिलते हैं। इन प्रमुख लाइब्रेरियों
के अतिरिक्त अंडर ग्रेजुएट छात्रों के लिए और छ
लाइब्रेरी हैं और आखिर पन्द्रह खास लाइब्रेरी (कानून, फाइन आर्टस, डिजायन, इंजिनियरिंग
इत्यादि) तथा डिवनिटी स्कूल की लाइब्रेरी तथा वूमेन स्टडीज लाइब्रेरी भी है।
कभी-कभी
मुझे लगता है,
वास्तव में हार्वर्ड
की लाइब्रोरियों में सारे विश्व
का सबसे बड़ा ज्ञान
का भंडार है। बच्चों, छात्रों, अध्यापकों, शोधार्थियों को इतनी पुस्तकों और पत्रिकाओं की
सुविधाएं कहीं और मिलती हैं, मेरी नजर में नहीं आई।
अंत में इंग्लैंड की केम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड दो प्रमुख लाइब्रेरियों
तथा अमेरिका के हार्वर्ड के अलावा और चार
प्रमुख विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरियों
(येल, स्टेनफोर्ड, एमआईटी और शिकागो)
के संबंध में मेरे कुछ प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर मेरी यह धारणा बनी
है।
विश्वविद्यालय के संग्रहालय
विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा
म्यूजियम है ‘यूनिवर्सिटी म्यूजियम’। वास्तव में यह
चार संग्रहालयों का समूह है। ‘बाटोनिकल म्यूजियम’ जिसमें अमेरिका के मुख्य खाद्य-पदार्थ वाले पेड़ (औषधि-पत्र और आदिवासी
समाज के पेड़ों के साथ साथ पुराने और लुप्त होने वाले पेड़-पौधों का समूह) तथा
आर्किड के हरबेरियम जिस पर शोध-कार्य चालू है, तीसरा, अलग-अलग श्रेणियों
में बांटे गए सबसे बड़े पेड़ों की गवेषणा (केलोफोर्निया के असुरनुमा ऊंचे रेडवुड देखकर उनकी याद
ताजा हो गई) और चौथा, पृथ्वी के सबसे बड़े प्लांट फॉसिल का संग्रह।
इसके साथ-साथ है शोध-कार्य के लिए अमेरिका में पाए जाने वाले सभी प्रकार की
लकड़ियों के नमूने और पृथ्वी के सबसे प्राचीन एल्जी हेल्जेलाइक वस्तुओं के जीवाश्म।
उस संग्रहालय में मेरे लिए सबसे ज्यादा चित्ताकर्षक वस्तु थी- वेयर कलेक्शन ऑफ
ग्लास मॉडल्स ऑफ प्लांटस, जिनका साधारण लोकप्रिय नाम है काँच के फूल। ये सारे खासकर
1887 सदी में हार्वर्ड के लिए जर्मनी में
तैयार किए गए थे और उनको प्रस्तुत करने वाले तत्कालीन दो कलाकारों का नाम था
लियोपाल्ड और रूडोल्फ व्लास्का।
उसके
बाद खनिज पदार्थ का
संग्रहालय, जो कि दुनिया का
सबसे बड़ा एक आदर्श संग्रहालय जिसमें डेढ़ लाख नमूने संग्रहित और सुरक्षित रखे गए
हैं। यहां पर सोने तथा यूरेनियम खनिज के बहुत सारे
प्रकार दर्शाए गए हैं।
तीसरा
है तुलनात्मक प्राणीविज्ञान का संग्रहालय, जिनमें असंख्य
प्रदर्शित नमूनों के विशेष लक्षण, 1932 में आविष्कृत सी-सरपेन्ट , गोलापगोस द्वीप के विविध नमूने। मेरे लिए
सबसे ज्यादा आकर्षणीय था लोलिता उपन्यास के रचयिता वाल्दमीर नबाकोव द्वारा अपने हाथ
से पकडी हुई अलग-अलग तितलियों के जीवाश्म। शेष विषय पर मैं बाद में लिखूंगा। चौथे
संग्रहालय का नाम ता पीबॉडी म्यूजियम ऑफ आर्यिओलॉजी
एंड एथनोलॉजी। इसमें स्वाभाविक रूप से मेरी ज्यादा रूचि थी और वहां मैं कई बार गया
था और उनके निर्देशक पुरातत्वविद श्रीमती मोनी एडाम्स मेरी व्यक्तिगत मित्र बन गई
थी। इस संग्रहालय का ऑडिटोरियम बहुत बड़ा था, जिसमें खास-खास
भाषणों का आयोजन भी किया जाता था। हार्वर्ड पुरातत्व विभाग और उनके प्रमुख डेविज मे-वरि
लुइस की अध्यक्षता में मैंने भी अपना एक
भाषण दिया था,
जिसका उल्लेख मैं
बाद में करूंगा । इस संग्रहालय में पांच विशिष्ट मंजिलें हैं। यह सन् 1866 में
स्थापित विश्व का सबसे पुराना पुरातत्व संग्रहालय है।
यूनिवर्सिटी संग्रहालय के
नीचे एक और बहुत बड़ा संग्रहालय है- विलियम हेयस फॉग आर्ट म्यूजियम। संक्षेप में
फॉग आर्ट म्यूजियम। प्राचीन पाश्चात्य कला की उत्पत्ति, अलग-अलग समय के
चित्र, स्थापत्य और
भास्कर्य कला का उल्लेखनीय प्रदर्शन यहां किया गया है। जिन चीजों ने मुझे इस
संग्रहालय में सबसे ज्यादा आकर्षित किया वे हैं
चाइनीज ब्रान्ज और जेड़, ग्रीक फूल दान, जिसे मैंने
एलेन्स के
संग्रहालय में देखा था - रोमन कलाकृति फ्रेंच उन्नीसवीं शताब्दी और इम्प्रेसनिष्ट
पेंटिग में। एक साथ एक ही विश्वविद्यालय के संग्रहालय में
इतने प्रकार और इतने ज्यादा सामान को संग्रहित कर प्रदर्शनी के रूप में
काम में लाया जा सकता है, इस बात का मुझे आश्चर्य हुआ था। मन में तुलना के लिए भुवनेश्वर
के स्टेट म्यूजियम
का ख्याल आया था।
एक
और दर्शनीय महत्वपूर्ण जगह है कारपेन्टर सेंटर फॉर
विजुअल आर्ट। फॉग संग्रहालय के पास ली कारबुजीअर द्वारा इसका निर्माण
किया गया है। विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ
विजुअल
एनवायरनमेंटल स्टडीज़ केंद्र-स्थल है। यहां आक्टोविओ पॉज
के काव्य-पाठ की
चर्चा बाद में करूंगा ।
यहां
केम्ब्रिज शहर के सबसे बड़ी आधुनिक चित्रकला और स्थापत्य कला के नमूने
प्रदर्शित किए गए हैं।
उसके
बाद एक दर्शनीय संग्रहालय, जो मुझे बहुत अच्छा लगा, जिसका नाम था बुश्य-रिसिंग का संग्रहालय। जहां मुक्त होती है भास्कर्य
चित्रकला, डेकोरेटिव आर्ट, जो आस्ट्रिया, जर्मनी, स्केंडनेविया, स्विटरजलैंड, नीदरलैंड और बेल्जियम
की। यह संग्रहालय युक्तिसंगत तरीके से दावा करता है कि यह अमेरिका का इस विशिष्ट
विषय का सर्वोत्कृष्ट संग्रहालय है।
फिर से मध्य-प्राचीन
जमाने की बहुविध कलावस्तुओं को एकत्रित कर
सेमेटिक संग्रहालय में खासकर 1889 से हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विद्वानों के
विभागीय एक्सपीडीशन और उत्खनन से प्राप्त कर रखा गया है। मध्य-प्राचीन की
इतनी ज्यादा कला वस्तुओं को मैंने येरुशलम के विश्वविद्यालय संग्रहालय और
येरुशलम शहर के संग्रहालय में देखा था। न्यूयार्क के मेट्रोपोलिटियन म्यूजियम ऑफ
आर्ट के अधिकारियों के मतानुसार यह एक अति मूल्यवान संग्रह तथा प्रदर्शनी योग्य
है।
हार्वर्ड
कलानुष्ठान के बारे में एक और बात लिखना जरूरी
है। वह लोएब ड्रामा सेंटर। जिसमें दो स्टेज और एक ऑडिटोरियम
हॉल है। एक फ्लेक्जिबल स्टेज के साथ 556 विशिष्ट सीटें, दूसरा छात्रों के
परीक्षामूलक नाटक एकांकी इत्यादि के प्रदर्शन के लिए 100 विशेष सीटें बनी हुई हैं। यहीं से अमेरिकन रिपारेटॉरी
कंपनी अपने
कार्यक्रम प्रस्तुत करती है, छात्र-छात्राओं को
शिक्षा देती है,
उनके सारे
प्रोग्राम हार्वर्ड गजट, इंडिपेंडेंट
क्रिमसन और आर्ट स्पैक्ट्रम में प्रकाशित होते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे
छात्र इन
कार्यक्रमों में अपना नाम दर्ज कराते हैं। अपनी पढ़ाई के साथ साथ इस ज्ञान की
निपुणता को भी प्राप्त करते हैं।
अलग-अलग
भाषाओं की फिल्में देखने के लिए विश्वविद्यालय में बहुत अच्छी व्यवस्था
है। जिसमें दुनिया
के कई देशों की फिल्मों (विशेष रूप से हंगरी, जापान और स्वीडन के
मिकलोस जानस्को,
कुरोसावा और बर्गमान
इत्यादि ) को देखने का निमंत्रण, लगभग सारे मैंने स्वीकार किए
हैं। विश्वविद्यालय के विज्ञापन के अनुरूप ‘फॉर
फॉरेन फिल्म और फिल्म क्लासिक एडिक्ट, या नथिंग
शार्ट ऑफ पैराडाइज’। सही मायने में
फिल्में देखने का नशा मुझ पर सवार था और मैंने
उन्हें देखकर स्वर्ग-तुल्य सुख पाया।
संगीत, आर्केस्ट्रा इन सब
की व्यवस्था के लिए छात्रों द्वारा पांच-छह संस्थाएं चलाई जाती हैं। वे हैं- हार्वर्ड
रेडक्लिफ आर्केस्ट्रा, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी बैंड, रेडक्लिफ कोराल
सोसायटी, कोलेजियम म्यूजिअम
और हार्वर्ड ग्ली क्लब। साल भर चल रहे इन
सारे आयोजनों में किसी के लिए भी पूरी तरह योगदान देना संभव नहीं है। मैंने पहले अर्थात्
आर्केस्ट्रा ग्रुप और यूनिवर्सिटी बेंड के सब
मिलाकर चार-पांच प्रोग्राम एक साल के भीतर देखे होंगे। उनमें से तीन विश्वविद्यालय के बच्चों का और
दो बाहर से आए हुए दलों का।
सांडर्स
थिएटर यूनिवर्सिटी का केंद्र स्थल है और यहां सारे वर्ष विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित
होने वाले खूब सारे आर्केस्ट्रा, संगीत-संध्या, भाषण इत्यादि में मैंने भाग लिया
है। यहां मैंने राजीव गांधी का भाषण सुना
था। इसी तरह अनेक दूसरे लोगों का। विश्वविद्यालय की ओर से यहां
पिओडी-मेसन म्यूजिक फाउंडेशऩ औऱ केंब्रिज सोसाइटी फॉर अर्ली म्यूजिक
ने कई बार उल्लेखनीय संध्याओं का आयोजन किया है।
हार्वर्ड
विश्वविद्यालय में कई विख्यात
वार्षिक लेक्चर सीरीज है एवं हार्वर्ड मैगज़ीन जैसी साहित्यिक
पत्रिका है। उसके अतिरिक्त हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस और उनका प्रकाशन समूह भी है।
इन
तीनों के विषय पर पृथक से कुछ लिखूंगा। मगर यहां यूनिवर्सिटी के इतिहास से और कुछ
।
हार्वर्ड
यूनिवर्सिटी प्रेस ने यूनिवर्सिटी के
इतिहास की अनेक
पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उनमें से जो किताब मुझे सबसे ज्यादा
मूल्यवान लगी, वह है सैमुअल इलियट मॉरिस कृत थ्री सेंचुरी ऑफ हार्वर्ड , हार्वर्ड
इन सेवनटीन्थ सेंचुरी ( दो
भाग) तथा तीसरी द
डेवलपमेंट ऑफ हार्वर्ड
यूनिवर्सिटी (1869-1929), इसके अतिरिक्त
क्लिटन के॰ सिप्टन रचित न्यू इंग्लैंड लाइफ इन द एटीन्थ सेंचुरी।
इन
इतिहासों को पढने के बाद मुझे लगा कि हार्वर्ड के लंबे इतिहास में विश्वविद्यालय के पांच अध्यक्षों
का कार्यकाल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है। सबसे पहले, हेनेरी डनस्टर, जिन्होंने सन 1640
में कार्यभार ग्रहण किया था- उनके कार्यकाल में कुछ कक्षाएं
तथा छात्रावासों का निर्माण हुआ था। दूसरे ख्याति प्राप्त अध्यक्ष रहे हैं जान
लेवरेट,जिन्होंने सन 1708
में कार्यभार ग्रहण किया था। चार्ल्स विलियम इलियट (1869 में अध्यक्ष
बने थे) और लारेन्स लायल (1909 में पदभार ग्रहण किया था)। उन
दोनों को
हार्वर्ड के इतिहास में सबसे ज्यादा समर्थ, कर्मठ और दूरदर्शी
कहकर सम्मानित किया जाता है, जिनके कार्यकाल में सभी तरफ से हार्वर्ड की उन्नति हुई और उसके नाम को विश्व के अन्यतम प्रसिद्ध
विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता
प्राप्त हुई। इलियट (इतिहासज्ञ मारीसन के शब्दों में) स्ट्रक्चरड़ द मॉडर्न
यूनिवर्सिटी
अर्थात् आधुनिक हार्वर्ड की रूपरेखा
प्रदान की। पाठ्यक्रम, लाइब्रेरी, संकाय निर्माण, सबसे अच्छे-अच्छे
छात्रों को एडमिशन देना- सभी तरफ से उन्हें नूतन हार्वर्ड के निर्माता के रूप में
जाना जाता है। उनके
समकक्ष और एक थे लारेन्स लोयल (1909), जिन्होंने अपने
चौबीस साल के कार्यकाल के भीतर सौ मिलियन डॉलर का एण्डावमेंट
तैयार किया। हार्वर्ड के 273 वर्ष के
इतिहास में जितने भवन निर्माण हुए थे, उनके मात्र 24 साल के कार्यक्रम में उनसे ज्यादा
निर्माण कार्य हुआ। वर्तमान अध्यक्ष डेरेक कुर्टिस वाक (1971 से, केलिफोर्निया के पश्चिमी
तट के रहने वाले, स्टेनफॉर्ड विश्वविद्यालय के स्नातक, हार्वर्ड लॉ स्कूल से 1954 में स्नातक) के समय में हार्वर्ड
वास्तव में विश्व का प्रमुख शिक्षा
केन्द्र बन गया। अपनी दूरदर्शिता से विश्व के सारे कुलपतियों
के साथ अच्छे संबंध बनाकर उन्होंने हार्वर्ड में गैर-अमेरिकन छात्रों की संख्या को ज्यादा से
ज्यादा बढ़ाया है। सन 1988 में सारे छात्रों की संख्या का यह एक तृतीयांश हुआ, जो दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय में
संभव नहीं हुआ था।
साल की शुरुआत हम सभी फेलों से वे एक छोटे से रिसेप्शन में मिले थे। तब व्यक्तिगत रूप
से हमारा परिचय हुआ था। एक बार फिर मिलेंगे, कहकर उन्होंने अपनी
खुशी जाहिर की थी। दूसरा, उनके समय में हार्वर्ड में मल्टी डिसप्लिनरी रिसर्च सेंटर के
कार्य में काफी अभिवृद्धि हुई थी। केवल एमआईटी, येल या स्टेनफॉर्ड
ही नहीं, विश्व
के दूसरे अनेक विश्वविद्यालयों के साथ परिवेश, जनसंख्या नियंत्रण, एड्स रिसर्च, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के साथ आई॰आई॰एम, अहमदाबाद इत्यादि
के साथ अनेक स्तर के कालोबरेटिव रिसर्च प्रोग्रामों को हार्वर्ड ने हाथ में लिया। परिमार्जित रुचि, ज्ञानी तथा खुले
विचारों वाले मनुष्य वाली दृढ़ धारणा उनके प्रति प्रथम साक्षात्कार में बन गई थी।
हार्वर्ड
में नौ संकाय हैं और प्रत्येक में एक
एक डीन है। डिग्री प्रोग्राम और रिसर्च के 12 स्कूलों और कॉलेजो का संचालन होता है
जिनमें प्रमुख हार्वर्ड कॉलेज तथा रेडक्लीफ़
कॉलेज सबसे पुराने हैं।
ये दोनों विश्वविद्यालय शुरु से हैं।
स्कूल का अर्थ हमारी स्कूलों की तरह नहीं है। प्रमुख स्कूले हैं- हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, लॉ स्कूल, मेडिकल स्कूल, डिविनिटी स्कूल, केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट
एवं एक और स्कूल जिसका नाम है- सेंटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर (सीआईएफ़ए)। इनमें से सबसे
पुराना मेडिकल स्कूल (1780) है, उसके बाद डिविनिटी स्कूल (1811) तथा
लॉ स्कूल (1817) है।
मैसेच्युसेट प्रशासन के
ग्रांट से विश्वविद्यालय पहली बार शुरु हुआ
था। पहला ग्रांट कितना कम मिला था, पहले लिखा जा चुका है। धीरे-धीरे विश्वविद्यालय आत्मनिर्भर होने
लगे-एण्डावमेंट, प्राइवेट ग्रांट तथा भीतरी आय के द्वारा। इसलिए दोनों
पक्षों (विश्वविद्यालय प्रशासन और
मैसेच्युसेट प्रशासन) ने सन 1833 में आम सहमति द्वारा यह तय
किया कि और विश्वविद्यालय को किसी भी प्रकार
के ग्रांट की कोई आवश्यकता नहीं है, तब से बोर्ड ऑफ ओवरसीअर्स (विश्वविद्यालय प्रशासन), जो मैसेच्यूसेट प्रशासन द्वारा मनोनीत
किया जा रहा था,
वह कर दिया गया। हार्वर्ड
डिग्रीधारियों ने इस हेतु चुनाव
करना प्रारंभ किया
अर्थात् सन् 1833 से (150 वर्ष पूर्व) हार्वर्ड आर्थिक तौर पर स्वावलंबी हो चुका था तथा वहां
स्वायत्त शासन प्रारंभ हो गया था। मुझे ऐसा लगता है, सारे विश्व
को, खासकर हमारे देश
तथा ओड़िशा के लिए इससे कुछ सबक सीखने चाहिए।
विश्वविद्यालय के स्वाबलंबी होने तथा स्वायत्त शासन चलाने, दोनों एक दूसरे के
संपूरक हैं, कहने का कोई अर्थ नहीं होगा। यहां एक छोटा-सा उदाहरण देना उचित समझता हूँ। मेरे
अपार्टमेंट से थोड़ी दूरी पर कानकोर्ड ऐवन्यू में विश्वविद्यालय पुलिस का तीन
मंजिला विशिष्ट मुख्यालय है। उनकी पोशाकें
स्वतंत्र हैं। पुलिस अधिकारियों के भीतर हार्वर्ड डिग्रीधारी चालीस लोग हैं। विश्वविद्यालय के आंतरिक शांति, सुरक्षा और पुलिस
संस्था का सारा खर्च विश्वविद्यालय उठाता है। उसके
बाहर स्थानीय मेसेच्यूसेट खर्च करता है। मगर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के आर्थिक समृद्धि का कारण बहुत
सारे दानशील अनुष्ठान एवं व्यक्तियों के अर्थ उपहार (गिफ्ट) है। भूतपूर्व छात्रों, शोधार्थियों तथा
अध्यापकों द्वारा ऐसे उपहार दिए जाते हैं, अनेकों फाउंडेशन
खोली जाती हैं और बहुत सारा मूलधन विश्वविद्यालय के उस फंड में जमा
करते हैं जिसके ब्याज से निर्दिष्ट शोधकार्य, वृत्ति अथवा अन्य
योजनाएं हाथ में ली जा सकती हैं। संक्षेप में
सिविल सोसायटी के अवदान विश्वविद्यालय की समृद्धि का
सबसे बड़ कारण है। हार्वर्ड की तरह अन्य
विख्यात विश्वविद्यालयों (येल, एम.आई.टी, स्टेनफोर्ड, कर्कली, चिकागो, कर्णेल) में ऐसे ही
अवदान मिलते हैं। मगर हार्वर्ड के
ऐतिहासिक गुणात्मक उत्कर्ष के कारण सबसे
ज्यादा धन मिलता है। अभी-अभी की बात है
कॉरपोरेशन के मुख्य ने 115 अयुत डॉलर दान
देने की प्रतिश्रुति दी थी। यह था विश्वविद्यालय के इतिहास में
सबसे बड़ा दान। मगर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष
लारेन्स समर के इस्तीफा देने के कारण वे देने अथवा न देने के बारे में
फिर एक बार सोच रहे हैं। लोरेंस समर उनका व्यक्तिगत दोस्त हैं और उनका इस्तीफा
देने के कारण उन्होंने कहा था “there are fewer women than men in science because of
intrinsic attitude ”
विश्वविद्यालय का प्रमुख अध्यक्ष
होता है। अध्यक्ष की सहायता करने के लिए उनकी अध्यक्षता में काऊंसिल ऑफ डींस
बनाई जाती है
जिसमें सभी फ़ैकल्टियों के डीन तथा रेडक्लिफ का अध्यक्ष सदस्य
होता है। सभी प्रमुख स्कूलो के संचालन हेतु एक उच्चस्तरीय
विजिटिंग कमेटी होती है सी.आई.एफ.ए के लिए जिस प्रकार से सदस्यों की समिति
हैं और निर्देशक हैं सेमुअल हरिटन(संक्षेप में साम- हम सभी उन्हें इसी नाम से
बुलाए, ऐसा उन्होंने
अनुरोध किया है) तब तक उनकी बहुचर्चित पुस्तक ‘द क्लास
ऑफ सिविलाइजेशन’ नहीं लिखी गई थी। मगर
उन्होंने जितने भी उदबोधन दिए या सेमिनार या बाहर प्रमुख वक्ता के
रूप में सभापतित्व ग्रहण किया था, उनके भाषण में उनके ज्ञान, विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की प्रशंसा करने के साथ-साथ मैंने उनके
विरोधाभासी व्यक्तित्व की आलोचना भी की थी। निश्चित तौर पर
उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया था, नहीं तो मुझे नहीं कहते, “ एस॰के॰ इज माय वेटेरन क्रिटिक ”। अपनी आलोचना का भी
वे स्वागत करते थे। स्पर्शकातर बिलकुल नहीं थे। सी.आई.एफ.ए
की विजिटिंग कमेटी में बहुत उच्च स्तरीय कारपोरेट
चीफ सदस्य हैं तथा चैयरमेन हैं जाने-माने
विज्ञान हेनेरी स्लेशींजर (सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के
उपदेष्टा)। सदस्यों के भीतर प्रमुख फ्रेंक बाओस, स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन्स, ग्राहम स्टूअर्ट, सुप्रसिद्ध वाशिंगटन पोस्ट अखबार
के अध्यक्ष कैथेरिन ग्राहम, आई.बी.एम के सेवानिवृत
वरिष्ठ उपाध्यक्ष डीन फाईपर्स, टोयाटो मोटर कंपनी
के अध्यक्ष सोइचिरा टोयाडा, मोबिल ऑयल कंपनी के कानून विशेषज्ञ, केन्या में अमेरिका
के पूर्व राष्ट्रदूत गेरालन थॉमसए, अपोलो टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष इरा लूकिन, आर्थ ईस्टर्न विश्वविद्यालय के बिजनेस
एडमिनिस्ट्रेशन के प्रोफेसर चार्ल्स वेकर, अमेरिका के डिप्टी
सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, ड्रेफस कारपोरेशन के सलाहकार वारेन मानसेल एवं
ओईसीडी (ओर्गनाइजेशन फॉर यूरोपियन को-आपरेशन एंड डेवलपमेंट के पूर्व अमेरिकन
राष्ट्रदूत हर्बट सालजमान। मोटा-मोटी विजिटिंग कमेटी बहु उच्चस्तरीय व्यक्तियों
द्वारा गठित की जाती है। सभी को एक साथ मैं कभी नहीं मिला। बीच-बीच में उनमें से
कईयों ने हमें रात्रि-भोज पर जरूर बुलाया है। अनेक
संदर्भित विषयों, आर्थिक-नीति, राजनीति, शिक्षा और विश्वविद्यालय के विषय में चर्चा
की है।
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