5. हमारा सेंटर (सिफा): चार्ल्स नदी, कॉनकॉर्ड ऐवन्यू



      

5.  हमारा सेंटर (सिफा): चार्ल्स नदी, कॉनकॉर्ड ऐवन्यू

      
हमारे सेंटर में भाषण के कार्यक्रम बहुत कम थे। हर सप्ताह बड़ी मुश्किल से एक भाषण का आयोजन होता था। सप्ताह में कभी-कभी दो भाषण। वक्तागण में हमारे भीतर थे  सेंटर के डायरेक्टर सैमुअल हंटिटन, दूसरे शीर्षस्थ अध्यापक,   विश्वविद्यालय के बाहर से आमंत्रित व्यक्ति तथा विश्व राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नाम कमाने वाले व्यक्तिगण। उदाहरणस्वरूप यूरोपियन कमिशन के मुखिया, हमारे देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी, स्पेन के प्रधानमंत्री , अमेरिकन डेवलेपमेंट कमीशन के चेयरमैन, यूनेस्को के डायरेक्टर जनरल। इन सभी को  भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था। हर भाषण का आयोजन मध्यान्ह भोजन अथवा रात्रि-भोजन के साथ किया जाता था। इसके पीछे यह  उद्देश्य होता था कि भाषण सुनने के बाद अनौपचारिक वातावरण में फेलो (अर्थात् हमसब) वक्ताओं के साथ बातचीत कर सकते हैं। अन्य विश्वविद्यालय से जो वक्तागण आये थे, उनमें जहां तक मुझे याद रही है, कैम्ब्रिज  विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लिच, शिकागो विश्वविद्यालय के बर्नाड कोन, येल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख और ऐसे बहुत सारे। सारे भाषण साधारणतया सेंटर के कुलिज हॉल अथवा कावट हॉल में आयोजित किये जाते थे।हार्वर्ड  के दो विशिष्ट अर्थशास्त्रियों में जॉन केनेथ, गिलब्रथ तथा स्टीव मार्गलिन ने भाषण दिये थे। दोनों का परिचय देने का दायित्व मुझे सौंपा गया था। गिलब्रथ के भाषण का शीर्षक था- थर्ड वर्ल्ड इकोनोमिक डेवलपमेंट तथा स्टीव के भाषणका शीर्षक था- द गोल्डन एज ऑफ केपिटलिज्म 1946-70। अपने भाषण में गिलब्रथ ने धनी पाश्चात्य देशों की असहयोग मनोवृति, वर्ल्ड बैंक एवं आईएमएफ़ के अतिशय व्यवसायी मनोभाव था सबसे ज्यादा तीसरे विश्व के देशों में कार्यदक्षताओं का अभाव- इन तीनों विषयों पर उन्होंने विशद भाव से व्याख्यान दिया था। स्टीव के मतानुसार 19वीं शताब्दी में सन् 1945 से पूंजीवाद ने एक नया रूप ग्रहण किया था और वह रूप सन् 1970 में खत्म हो गया। संक्षिप्त में पूंजीवाद के विवर्तन, अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उसका प्रवाहमान तथा आधुनिक आवश्यक अनेक दृष्टिकोण पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये थे। बदलते परिप्रेक्ष में पूंजीवाद अर्थशास्त्र के भविष्य के बारे में भी उन्होंने कुछ   कहा था तथा उस अर्थशास्त्र के अवश्यंभावी बदलाव पर अपने सुझाव दिये थे। दोनों व्याख्यानों में बहुत सारे फेलो ने भाग लिया था तथा उन पर गंभीर चर्चा भी हुई थी। उपरोक्त व्याख्यानों को छोड़कर सेंटर में जितने दूसरे व्याख्यान दिये गये, उनमें से जो मुझे पसंद आये या जिसने मुझे आकर्षित किया, उनकी संक्षिप्त तालिका निम्न है :-
1) प्रोफेसर फ्रेंकलिन का व्याख्यान
Dominance and state power in Modern India
2) सर क्रिसपिन टिकेल (इंग्लैंड के UN में स्थायी प्रतिनिधि )
The value of Security Council in Today’s World Affairs
3)यूरोपीयन कम्यूनिटी के सर र डेनमान
European Community and U.S. Trade Issue
4. प्रोफेसर वाशब्रु
Class Conflict, Popular Culture and Resistance in Colonial India
5) लारेंस फ्रिडमेन
Do we need Arms Control?
6) सैमुअल हांटिटन
American Strategy and How it is not made ?.
7) स्पेन प्रधानमंत्री फेलिप गंजालोस -
International Economic Co-operation and the European Community.

       विश्वविद्यालय के बाकी सभी एकेडेमिक लेक्चरों में साहित्य संबंधित लेक्चरों की तरफ आपको ले जाना चाहता हूं। फ्लेचर स्कूल ऑफ डिप्लोमेसी में हम सभी निमंत्रित थे । विशेष तीन व्याख्यानो में लगभग हम सभी फेलो गये थे।  व्याख्यान का परिवेश हर समय अनौपचारिक रहता है। अनेक बार ऐसा हुआ कि वक्तागण हमारे भीतर संपर्कित विषयों से अभिज्ञ फेलो साथियों को संबंधित विषय पर कहने के लिए अनुरोध करते थे। वक्तव्य को छोड़कर प्रत्येक फेलो को एक साल में दो विषयों पर भाषण देने पड़ते हैं। मैंने स्वयं ने जिन दो विषयों पर भाषण दिया था। वे हैं -
1) अंतराष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम, यूनेस्को तथा विश्वशांति
2) अंतराष्ट्रीय अर्थनीति में सहयोग-द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग की रूपरेखा।
       व्याख्यान तथा समीक्षा के एक सत्र पूर्व वक्तव्य की प्रतिलिपि प्रस्तुत करके बाँट दी जाती थी। व्याख्यान संबंधित मेरे दोनों आलेखों में पचास के आस-पास पृष्ठ थे।दूसरे सभी फेलो के भाषण भी व्याख्या के अनुरूप शिक्षणीय थे तथा उनकी भी जमकर समीक्षा हुई। भारतवर्ष में शोधकार्य कर रहे तीन शोधार्थियों से अलग-अलग समय पर मेरा वार्तालाप हुआ। एक साल रहने के अंदर प्रत्येक फेलो अपनी जानकारी से संबंधित विषयों पर जिस प्रका शोधार्थी अपना काम करते हैं, को उनकी सहायता करने के लिए कहा जाता था।इसे छोड़कर अन्य अमेरिकन विश्वविद्यालयों में फेलो को भी वक्व्य देने के लिए आमंत्रित किया जाता था। सेंटर में हर शुक्रवार चार बजे चीज एवं वाइन की पार्टी आयोजित की जाती है। उसमें सेंटर के सारे अध्याप, अन्य कर्मचारी और सारे फेलो भाग लेते हैं। इस अवसर पर फेलो के प्रोग्राम विश्वविद्यालय की दूसरी कई बातें, अध्यापकों के शोध विषयों पर अनौपचारिक भाव से समीक्षा की जाती है।
       सेंटर की लाइब्रेरी बहुत ही बड़ी है।उसमें अंतराष्ट्रीय राजनीति, अर्थनीति, संस्कृति, आमदनी, व्यवसाय से संबंधित विषयों पर खूब सारी पुस्तकें एवं पत्र- पत्रिकायें पढ़ने की सुविधा मिती है।संक्षिप्त में कहने से सेंटर में पढने-लिखने, अलोचना करने तथा अध्यापकों से मिलने के सारे कार्य अत्यंत आन्ददायक होते थे।एक जगह मैंने  कहा है कि सेंटर में मेरा जो कमरा है,उसके ठीक बगल वाले कमरे में बैठते थे मेक्सिको के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार कार्लो फून्टेस। सेंटर में लंच के समय हम दोनों अधिकांश बार एक साथ खाते थे। कमरे में एक साथ कॉफी बना कर पीते थे। उसके बाद साहित्य, भारत और मेक्सिको का इतिहास, कला, अर्थनीति सभी विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। मध्याह्न भोजन के समय कैंटीन में लगभग सभी लोग देखने को मिलते हैं। जो विश्वविद्यालय से थोड़ी दूरी पर रहते थे और जिनके पास गाड़ी थी, वे सभी अपने घर जाकर मध्यान्ह भोजन करके लौट आते थे।
       एक बार कैनेडी स्कूल के Mason Fellows,  फ्लेचर स्कूल के फेलो और  हम लोग- इस प्रकार से तीन गोष्ठियों ने  इकट्ठी होकर दो दिन के सेमिनार का आयोजन किया था। जिसमें हांटिटन, फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉं तथा डिप्लोमेसी के प्रोफेसर थॉम्पसन तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया था। तीसरी दुनिया के विकास की समस्या, सामाजिक वैषम्य तथा न्याय, गणतन्त्र एवं विकास, सांस्कृतिक परम्परा और विकास, अंतराष्ट्रीय अर्थनीति के प्रभाव आदि विषयों पर इस सेमिनार में अच्छी तरह चर्चा हुई। सेंटर के तीन प्रोफेसर श्री कूपर, श्री हागार्ड तथा नन आदि के सयुंक्त व्याख्यान If not Gatt, What ? भी शामिल है। इसके तिरिक्त एशिया पेसेफिक अर्थनीति संबंधित दो दिन के सेमिनार, एक दिवसीय यूनेस्को तथा विश्व-संस्कृति संबंधित सेमिनार (उसके लिए यूनेस्को डायरेक्टर जनरल आये थे) एवं संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी पुनर्वास संबंधित दो दिन का सेमिनार बहुत ही ज्यादा गुणात्मक एवं शिक्षणीय हुआ था। सेंटर में लंच करने का प्रायः अभ्यास हो गया था। विभिन्न खाद्य-पेयों में से अपनी आवश्यकता अनुसार ट्रे में लेकर बिल देना पड़ता था और भीतर के डायनिंग हॉल में बैठकर खाने की सारी सुविधा मिलती थी। अनेक दोस्तों के साथ एक साथ लंच करने तथा गपशप करने में बहुत ही आनंद आता था उस समय मेरे पास मेक्सिको के उपन्यासकार कार्लो फूएंटेंटस , यरिश कवि सियामस हिनी, तीन महीनों के लिए शिकागो से हार्वर्ड आये हुए मेरे दोस् ए.के रामानुबैठते थे।
       मैं रहता था विश्वविद्यालय के सबसे नजदीक कॉनकॉर्ड एवेन्यू की  छः मंजिला अपार्टमेंट की सबसे ऊँची कोठरी में। इस  बड़ी कोठरी की पार्टिन कर दो भाग कर दिये गये थे। एक भाग में ड्राइंग रूम  तथा दूसरे में बेडरुम। स्नानघर रसोईघर दोनों बहुत छोटे थे। रसोई घर में गैस तथा बिजली हीटर से लेकर सारी चीजें यहाँ तक कि प्लेट, चाकू, चम्मच इत्यादि उपलब्ध थी। यह बात अलग है कि मैंने  अपनी आवश्यकता के अऩुसार  कुछ   अतिरिक्त सामान खरीदा था।
       टेलिविजन नहीं होने के कारण मैंने एक टेलिविजन खरीदा था क्योंकि र्फ गिरते समय तथा अन्य किसी खाली समय टेलिविजन की खबरें तथा प्रोग्राम देखने  की बहुत इच्छा होती थीउस समय बाहर जाना संभव नहीं था
       अपार्टमेंट ब्लॉक में धीरे-धीरे बहुत सारे दोस्त भी दिखने लगे। ग्राउंड फ्लोर पर एक लाउंज तथा टीवी था। अधिकतर समय हम लोग वहीं पर इकट्ठे होते थे। मेरे बैठक रूम  से हमारे सेंटर तक पैदल जाने में  लगभग दस मिनट लगते थे। ओवर कोट सिर पर टोपी, कंधे पर मफ़लर, हाथ में ग्लोव्स पहनने के बावजूद  शीत के प्रभाव को ज्यादा अनुभव किया जा सकता है। खासकर दिन में ठंडी हवा बहती है, आखों से आँसू निकलना शुरु हो जाते हैंमेरे अपार्टमेंट के रास्ते की तरफ एक बालकॉनी है, जहाँ पर कुर्सी लगाकर मैं कई बार किताब पढ़ता था। बर्फ गिरते समय हवा के साथ ओले उड़कर बालकॉनी से एक-दो फूट दूरी पर जमा होने लगते थे। ठंड में मैं लगभग चार बजे सेंटर छोड़ देता था क्योंकि उस समय अंधेरा होने लगता था। कमरे में लौटते ही पहले चाय, कॉफी या गर्म सूप जब तक नहीं पी लेता था तब तक कुछ   भी अच्छा नहीं लगता था।
       रहने के दौरान मैंने हर फेलो दोस्त तथा अध्यापकों को एक बार खाने पर  घर में बुलाया था। जो फेलो वहां के रहने वाले थे, उनके घर में रात्रि-भोजन के समय उनके देश का खाना खाने का अवसर मिला था।अकेले होने के कारण मैंने  रात्रि-भोज फेकल्टी क्लब में दिया था, इसलिए वहां भारतीय खाद्य खिलाना संभव नहीं हुआ। बीच-बीच में अपने परिवार के साथ रहने वाले फेलो के घर भी मुझे आमंत्रित किया गया था, जिसमें मुख्य थे दक्षिण कोरिया, इटली, जर्मनी और यूरोपिन यूनियन के चार दोस्त। इनके घर मुझे बहुत बार आमंत्रित किया गया था। मुझे आज भी याद है, सबसे स्वादिष्ट भोजन मिला था मेरे स्वीडिश दोस्त के घर में। सही पूछा जाए तो मुझे स्वीडन के खाने के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी। मुझे खाने के टेबल पर रखी सारी चीजों का नाम पूछह ना पड़ा था। स्वीडिश दोस्त की लंबाई थी 6 फीट 2 इंच,  हम सारे फेलो में वह सबसे ऊंचा था। उसका नाम था मिटकाशल। मजाक-मजाक में हम उसे केंडल-स्टीक कहकर पुकारते थे। सबसे कम ऊंचाई वाला दोस्त था जापान का सोटारो याचिंकर।
       कॉनकॉर्ड ऐवन्यू तथा हमारे सेंटर से चार्ल्स नदी पास में थी। नदी के दोनों किनारे रास्ते और रास्तों से नदी के पानी तक घास के लॉन लगे हुए थे। नदी के पुल पार कर थोड़ी दूर जाने पर पड़ता था बोस्टन विश्वविद्यालय का कैम्पस। हमारे विश्वविद्यालय के पास नदी के किनारे आधा किलोमीटर दूरी तय करने पर आता था मैसेच्यूट इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी। तीनों विश्वविद्यालय के अध्यापकों में से उस समय 9 अध्यापक नोबल पुरस्कार विजेता थे। हार्वर्ड और एमआइटी दोनों विश्वविद्यालय दुनिया भर में सुपरिचित हैं । किसी एक विश्वविद्यालय में जब कभी किसी एक विशिष्ट विषय पर लेक्चर होता है, तब दूसरे विश्वविद्यालय के फेकल्टी सदस्यों को भी निमंत्रण-पत्र मिलता है।
       चार्ल्स नदी के किनारे भ्रमण, वहां बेंच पर देर समय तक बैठना और पढ़ना, छोटी-छोटी नौकाओं में बैठकर नदी में विहार रना, ये सारी बातें हमेशा याद रहेगी। अप्रेल और मई महीने में लॉन के फूलों का प्राचुर्य मन को मोहित करता है।
       विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के व्यायाम के दौरान दौड़ते समय कानों में सोनी वॉकमेन लगाकर गाने सुनते हुए देखना आम दृश्य था। हार्वर्ड  स्केवयर और वहां से दोनों तरफ जाने वाले रास्तों में किताबों की खूब सारी दुकानें पड़ती हैं। एक ही जगह पर इतनी सारी किताबों की दुकानें तथा किताबों का संग्रह मैंने अन्यत्र  बहुत ही कम देखा है। इस तरह की दुकानें  तथा किताबों का संग्रह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और कॉलेज के सामने यहां की तुलना में पांचवा हिस्सा भी नहीं होगा, ऐसी मेरी धारणा है।अनेक किताबों की दुकानों में पढ़ने के लिए अलग से कमरा भी बना हुआ होता है, लाइब्रेरी की तरह। मैंने अपने देश में किताबों की दुकानों में ऐसी व्यवस्था कहीं नहीं देखी है। एक किताब की दुकान पर प्राचीन जमाने की किताबों का विशेष अंश संग्रहित है। सत्तरहवीं और अठारवीं सदी की पुरानी किताबों तथा कई पुराने संस्करण वहां देखने को मिलते हैं। किताबों की दुकानों के बीच हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रेस का शोरूम एक बहुत बड़ी दुकान में लगा हुआ है। हार्वर्ड  स्केवयर में पत्रिका की दुकान से लेकर दुनिया के किसी भी कोने में अंग्रेजी में प्रकाशित सारी पत्रिकाएं वहां उपलब्ध होती है। स्केवयर से थोडी दूरी पर तरह-तरह के रेस्टोरेंट बने हुए हैं, उनमें से मुझे चाइनीज और मेक्सिकोन रेस्टोरेंट बहुत अच्छे लगते थे। उसके आगे था एक बहुत बड़ा कॉफी हाऊस। यहां पर दुनिया के विभिन्न अंचलों की तरह-तरह कॉफियों में से कम से कम बीस तरह की कॉफियो का मैंने  यहां रसास्वादन किया है। स्केवयर से थोड़ी दूरी पर एक सिनेमा घर बना हुआ है, जिसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी, क्योंकि उसमें दुनिया के सबसे बड़े निर्देशकों की फिल्में प्रदर्शित होती हैं । पढ़ाई समाप्त होने के बाद शास्त्रीय संगीत सुनना तथा अच्छी फिल्में देखना मेरा सबसे बड़ा शौक था। एक साल के वहां रहने के दौरान कम से कम चालीस अच्छी फिल्में देखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
       हमारे सेंटर की तरह केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट भी बहुत विख्यात था। वहां दुनिया के अलग-अलग देशों के अपेक्षाकृत कनीय सरकारी अधिकारी, अर्थशास्त्री तथा राजनीतिज्ञ सभी पढ़ने आते हैं। हमारे सेंटर तथा केनेडी स्कूल परस्पर काफी संश्लिष्ट थे। बहुत सारे अध्यापक दोनों जगहों पर पढ़ाते हैं। मेरे सेंटर के बाहर अर्थशास्त्र-विभाग, पुरातत् विभाग और फाईन आर्ट विभाग में मैं कई बार गया हूं। अर्थशास्त्र विभाग में मेरे मित्र स्टीव मार्गलीन के साथ रूम में बैठकर बहुत सारे विषयों पर चर्चा करते थे। उनके रूम से सटकर एमरिटस अध्यापक गिलब्रेथ का रूम था, वे विभाग में बहुत ही कम समय आते थे। सिर्फ उनसे मेरी दो बार मुलाकातें हुईं। पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डेविड मेचूटीलुइस के साथ मेरी ज्यादा दोस्ती थी। वे विभागाध्यक्ष थे और दक्षिण अमेरिका के ब्राजिल के विभिन्न अंचलों खासकर अमेजन नदी के अववाहिका अंचल में विकास-योजना की प्रभावशालीता तथा पारंपरिक सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था के अवक्षय के संबंध में खास ज्ञान रखते थे। प्रोफेसर डेविड के साथ कई बार उनकी फेकल्टी में बैठकर बातचीत करने में बहु अच्छा लगता था।
       ऐसे फाइन आर्ट विभाग तथा उससे जुड़े कारपेंटर सेंटर में साहित्य, कला और संगीत इत्यादि विषयों पर मैंने कई बार वक्तव्य दिए हैं। अंग्रेजी विभाग में सिआमस हिनी के आने के बाद मेरा उनसे गहरा जुडाव हो गया। हमारे विभाग की ओर से लेमेंट लाइब्रेरी में महीने में एक बार कविता पाठ का आयोजन होता है। वहां एक बार मुझे भी कविता पाठ करने का सुअवसर मिला। हिनी की सांध्य-कविता पाठ में मैंने  हिस्सा लिया था। तब उन्हें साहित्य का नोल पुरस्कार नहीं मिला था। मगर उनकी कविताएं विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में बहुत ज्यादा चर्चित हो गई थी। विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ वर्ल्ड रिलीजन एक अन्यतम प्रसिद्ध अनुष्ठान है। इस संस्था के निर्देशक मोनी एडामस अफ्रीका की धार्मिक परंपरा पर विशेष ज्ञान रखते हैं।उनकी अफ्रीका के पारंपरिक धर्म  तथा कला विषयों पर खूब सारी पुस्तकें लिखी हुई है। मेरे मित्र ए.के. रामानुजन वहाँ तीन महीने के लिए आमंत्रित हुए थे। कुछ दिनों के लिए भात के दार्शनिक मतिलाल आए थे। प्रोफेसर विमल तिलाल तब ऑल सॉल कॉलेज, क्सफोर्ड में थे Spading Professor of Eastern Religions and Ethics थे, ओड़िशा के दर्शन शास्त्र के सुप्रसिद्ध अद्यापक श्री जितेन मोहंती की रचनाओं का उन्होंने संपादन किया था। यही नहीं, अमेरिका तथा इंग्लैंड के जाने-माने दर्शन-शास्त्र के अध्यापकों में उन्हें गिना जाता था। विश्वविद्यालय में रहने के दौरान मैं हार्वर्ड  बिजनेस स्कूल तथा हार्वर्ड  मेडिकल स्कूल देखने गया था, क्योंकि उनकी ख्याति न केवल भारत में वरन् सारे विश्व में फैली हुई थी। एम.आई.टी॰ का अर्थशास्त्र विभाग तथा बोस्टन विश्वविद्यालय का पुरातत्व विभाग भी बहुत ही नामी विभाग है। बोस्टन के पुरातत्व विभाग में मुझे एक बार लेक्चर देने के लिए आमंत्रित किया गया था।
       सेंटर की प्रशासनिक संस्था बहुत ही दक्ष मगर छोटी थी। सारे फेलों के हार्वर्ड  में पहुंचने से पहले उनके पूर्व सूचित निवास-स्थान में रहने के लिए गृह उपयोगी सहायता से लेकर स्वास्थ्य, सोशियल सिक्योरिटी आईडी नं., कोपरेटिव सोसायटी के सदस्य के रूप में जोडने, विभिन्न बाहर की यात्राओं की सुविधा करने, विभिन्न अनुदान (स्वास्थ्य, पुस्तक-क्र, घर पहुंचने के बाद गृह प्रवेश अनुदान) और सिफा के बजट इत्यादि के लिए कई अधिकारी थे। इटालियन फाइनेंसिल उपदेष्टा माइकल टियोरानो बहुही कौतूहल-प्रेमी इंसान थे, सभी के साथ हंसी-मजाक रके उन्हें खुश कर देते थे। श्रीमती जॉन सेक्रेटरी थी तथा उनके दो सहायक थे इवा और करोल। लेस ब्राउन फेलो प्रोग्राम के डायरेक्टर थे। इन पांच व्यक्तियों के हाथों में हमारे प्रोग्राम का सारा दायित्व था। चेयरमैन थे सैमुअल हंटिटन हमारे सै। सिफा में अनेक विशेष प्रोग्राम उल्लेखनीय थे। उनमें से कुछ का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूं :-
राकेल कारसन तथा साइलेंट स्प्रिंग (1962) की रौप्य-जयंती :-
       राकेल कारसन ने सन 1962 में अपनी नामी पुस्तक साइलेंट स्प्रिंग लिखी थी। बड़े आदर के साथ मैंने  वह किताब पढ़ी थी, मुझे बहुत अच्छी लगी थी। पर्यावरण वैज्ञानिक, विकास, अर्थशास्त्री, विभिन्न देशों के योजना बनाने वाले अधिकारीगण तथा कॉलेज, विश्वविद्यालय स्तरीय छात्रों एवं अध्यापकों में वह किताब बहुत चर्चित तथा प्रशंसित हुई थी। अमेरिका में इस किताब को बहुत ही आदर की दृष्टि से देखा गया। अमेरिका के जनसामान् को उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण संबंधित खतरों से अवगत कराया था। समय रहते अगर सावधानी नहीं रती गई तो वह समय दूर नहीं है जब बसंत ऋतु आने पर कोयल की कूक सुनाई नहीं देगी, गीत गाने वाली चिडियां नहीं होगी। उस नीरव बसंतमें हम जिंदा रहेंगे।
       इस किताब के प्रकाशित होने के ठीक दो साल बाद अर्थात् 1964 में राकेल कैंसर से मर गए। सन् 1987 में उनकी साइलेंट स्प्रिंग पुस्तक की रजत जयंती मनाई गई। हार्वर्ड  में सेटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर की तरफ से कई परिचर्चा-चक्रों  का आयोजन किया गया। इसके 25 साल बाद राकेल की स्मृति में कोर्स में भाग लेने वाले हमारे देश में उसके प्रभाव और साधारण भाव से पर्यावरण परिस्थिति के संबंध में परिचर्चाएं होने लगीं । राकेल की शोध पुस्तक मुख्यत: रासायनिक प्रदूषण के बारे में थी। इस विषय पर परिचर्चा करने के लिए स्थानीय अध्यापकों तथा दूसरे गणमान्य लोगों को भी बुलाया गया था। आमंत्रित अतिथियों में थी पर्यावरणविद राकेल जी की मित्र और शोधार्थी श्रीमती शिरले ब्रिग। उस समय उनकी उम्र 69 वर्ष थी। वह थी रॉकेल कारसन काउंसिल की एक्जूकिटिव डायरेक्टर। ब्रिगस और रॉकेल, दोनों ने चौथे दशक में यू॰एस॰ फिश एंड वाइल्ड लाइफ सर्विस में एक साथ काम किया था। रॉकेल के शोधकार्य में उनका बहुत सहयोग था। उनकी मौत के उपरांत श्रीमती ब्रिगस ने एक काउंसिल का निर्माण करके अमेरिका के जनसाधारण को रासायनिक  प्रदूषण खासकर विषैले रासायनिक द्रव्यों के प्रयोग के संबंध में जानकारी देने की कोशिश की थी। इस काउंसिल के बहुत बडे-बड़े ज्ञानी लोग सदस्य थे। कीड़े मारने की दवाइयां तथा रासायनिक  वस्तुओं के उपयोग के संबंध में यह काउंसिल अमेरिका में सबसे ज्यादा काम करती है। लंच के समय ब्रिगस से मुलाकात करके मैंने  उनसे काफी बातची की। रॉकेल के संबंध में अपने व्यक्तिगत अनुभूतियों के बारे में उन्होंने बहुत बताया था।
       इस काउंसिल के अलावा श्रीमती ब्रिगस औडोबोर्न नेचुरलिस्ट सोसायटी से साथ प्रगाढ़ तरीके से जुड़ी हुई थी, इसलिए वे अमेरिका की अनेक नेचुरल सोसायटी को देख चुकी थीं और उनके बारे में उन्होंने बताया था । इस संदर्भ में इस सोसायटी के प्रकाशनों के संपादन का सारा दायित्व उनके कंधे पर था। पर्यावरण संरक्षण पर संकलन करने के अलावा बांधों के निर्माण, हाइवे द्वारा चिड़ियों पर पने वाले प्रभाव के बारे में बर्ड काउंट स्टडी का कार्यक्रम प्रारंभ किया था। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि सन् 1962 में जब स्टर्लिंग चिड़ियाँ की गणना शुरु हुई थी, वाशिंगटन-पोस्ट के संवाददाता के प्रश् का उत्तर देते हुए मैंने  कहा था –
You do not know how many of those little rascals there are until you stand and count them on a cold night.
       राजनीति शास्त्र के सुप्रसिद्ध प्रोफेसर ब्रिशत की बेटी शिरले आवा विश्वविद्यालय की छात्रा थी, स्थपति विद्या में एम.ए. पास किया था। उसके बाद वह Smithsonian के नेशनल म्यूजियम ऑफ नेशनल हिस्ट्री के साथ जुड़ गई। इस रौप्य जयंती (रॉकेल कारसेन के साइलेंट स्प्रिंग) सेमिनार और उसमें हिस्सा लेना मेरे हिसाब से बहुत ही शिक्षाप्रद और उपयोगी था। खासकर कई देशों के और अमेरिका के पर्यावरण प्रदूषण के संबंध में विशेष ज्ञान रखने वाली श्रीमती ब्रिगस के साथ साक्षातकार एवं व्यक्तिगत बातचीत करने का अवसर मिला था।
फेलों के ब्रेफास्ट तथा लंच मीटिंग :-
       महीने के दूसरे सप्ताह में हम लोग एक फेलों-ब्रेफास्ट का आयोजन करते थे। वहां हम सभी अपने निजी जीवन, रिवा, व्यक्तिगत अभिरुचियों तथा प्रोफेशनल जीवन के विषय में संक्षेप में बताते थे। कोर्स समाप्त होने से पहले तीन दोस्तों को कहीं जाना था, इसलिए उन्हें पहले कहने का अवसर दिया गया। दक्षिण अफ्रीका में इंग्लैंड के राष्ट्रदूत सर पैट्रिक मोबर्ली ने पहले अपने विचार रखे। मुझे उनके विचार बहुत अच्छे लग रहे थे।
       दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरन उनका नेलसन मंडेला के साथ साक्षात्कार के अनुभव जीवंत लग रहे थे। वह सरउपाधि प्राप्त बहुत सीनियर थे। विदेशी सेवा में कार्यरत होने के बाद भी लिखने का कुछ काम करते थे। दूसरे मलेशिया के भूतपूर्व उप-प्रधानमंत्री डातु मूसा बिन हातम ने अपने देश, संस्कृति, राजनीति तथा अपने राजनैतिक अनुभवों के बारे में बहुत कुछ बताया। तीसरे जॉन कोलान जिनका विशेषज्ञ  के रूप में योगदान देना निश्चित हो गया था। उन्होंने अमेरिका की राजनीति और धर्म के समानान्तरता तथा अमेरिका, यूरोप की तुलना में किस प्रकार ज्यादा धार्मिक है, इस विषय पर अपने व्याख्यान दिया था। एक गैल-अप पोल में 70 प्रतिशत अमेरिकन अपने को धर्मविश्वासी मानते थे, 60 प्रतिशत गिरजाघरों में मास (Mass) तथा रविवार को पूजा करते हैं, इस संबंध में उन्होंने ज्यादा तथ्य-परक भाषण दिया था। हमने अपने व्यक्तिगत जीवन तथा कर्मक्षेत्र के इतिहास के बारे में बताया। कितने सारे तथ्य, कितने विचार, कितने देशों के समाज, संस्कृति, इतिहास, राजनीति और अर्थनीति की स्थिति का आकलन आंखों के सामने आया था। अनौपचारिक तौर पर ब्रेकफास्ट के दौरान फेकेल्टी क्लब के एक अलग कमरे में ये सारी जानने का अवसर मिला था, वह आज भी शिक्षणीय, उपभोग्य तथा अविस्मरणीय होकर मन में समाई हुई है। हमारे द्वारा दिए गए पेपर (सी.आई.एफ.ए कोर्स की अन्यतम मुख्य दिशा) बहुत ही उपभोग्य तथा ज्ञानवर्धक थे, जिसमें सी.आई.एफ.ए के सीनीयर प्रोफेसरों तथा शोधकर्ताओं ने योगदान दिया था। उनके अलावा जो अपने पेपर प्रस्तुत करते हैं, वे जिन्हें चाहें उन्हें आमंत्रित कर सकते हैं। जैसे मैंने अपने पेपर के लिए स्टीव मार्गलिन को आमंत्रित किया था, दो पेपर सभी को देने थे। मगर समय के अभाव के कारण सभी को एक पेपर पढ़ने का ही अवसर दिया गया। यह सारा कार्यक्रम सी.आई.एफ.ए के सेमिनार हॉल में हुआ। पहले-पहल प्रत्येक श्रोता और वक्ता पास के  सेल्फ र्विस केफेटेरिआ से अपना लंच लेकर आते हैं। बैठने की व्यवस्था एक विशाल दीर्घवृत्तीय टेबल के कोने में वृताकार भाग में खाने के समय अनौपचारिक तरीके से बातचीत शुरु करने के लिए की गई थी। अपरिचित आगंतुक अपना परिचय देते हैं। पेपर पहले से ही दिया जाता है। लंच खत्म होने के बाद वक्ता आंधे घंटे के भीतर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करता है, उस पर एक घंटे तक चर्चा होती है।
पेपर निम्न विषयों पर आधारित थे :-
       मध्यप्राच्य, चीन-जापान संबंध, अमेरिका-जापान संबंध, अंतराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध तथा यूनेस्को, अमेरिका में उच्च शिक्षा की  स्थिति और (समस्याएं, अंतराष्ट्रीय युद्ध समस्या, शरणार्थी समस्या की सामग्रिक समस्या और विश्व-शांति  का भविष्य, मानवाधिकार को नई दिशा, अंतराष्ट्रीय विकास सहयोग में गैर-सरकारी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका इत्यादि।अंत में, सुप्रसिद्ध अध्यापक आर्केस्ट वोगेल ने सुदूर प्राच्य (फार ईस्ट) के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने इस विषयों के पारंगत फेलों के चीन-जापान-कोरिया जाने से पूर्व सी.आई.एफ.ए॰ में यह आयोजन किया था।
       फेलों के लंच तथा आलेख-पाठ तथा ब्रेकफास्ट के दौरान अनौपचारिक चर्चाएं बहुत ही शिक्षाप्रद होती थीं


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