8. पुनश्च ओक्टेविओ, पुनश्च कविता और वास्तुकला की जुगलबंदी
8. पुनश्च ओक्टेविओ, पुनश्च कविता और वास्तुकला की जुगलबंदी
मुझे ऑक्टेविओ का मैक्सिको सिटी के उनके पते से लिखा गया पत्र
मिला कि यूनिवर्सिटी के कार्पेंटर सेंटर ऑफ विजुअल
आर्ट्स में उनका कविता-पाठ होगा।
इस बार उनका
कविता-पाठ अलग
शैली में होने की उम्मीद थी।कुल बीस कविताएं पढ़ी जाने वाली थीं। उनकी
पृष्ठभूमि में दस कविताएं थीं और बाकी दस अलग-अलग लोग पढ़ेंगे। ये बीस कविताएं ओक्टेवियो और
मैक्सिको के प्रसिद्ध आधुनिक चित्रकार
और वास्तुकार ब्रायन निसेन दोनों ने चुनी थी। प्रत्येक कविता
के लिए निसेन एक
या एक से अधिक पेंटिंग दर्शक-श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करते थे, जिन्हें उनके सामने रखा गया था।
कविता पाठ के लिए
मुझे विशेष निमंत्रण प्राप्त हुआ था। थोड़ा जल्दी आकर मैंने निसेन को अपना परिचय दिया। ऑक्टेविओ
ने स्वयं अपना परिचय
दिया। वे
उसी सुबह न्यूयॉर्क से आए थे। न्यूयॉर्क के
मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट (एमओएमए) में आयोजित 'मैक्सिकन कला के 2000 साल' प्रदर्शनी के लिए कैटलॉग तैयार करने की उनकी जिम्मेदारी थी। इस
काम के संबंध में उन्हें अचानक न्यूयॉर्क जाना पड़ा। इसलिए उनसे मैक्सिको सिटी में मुलाक़ात नहीं हो पाई। मैक्सिको सिटी में
जब मैं होटल
पहुंचा
तो उनका संक्षिप्त पत्र मेरा इंतजार कर रहा था।
कविता-पाठ अच्छी
तरह से सम्पन्न हुआ।
मैंने दर्शकों में सीमस
हिनि, यूनानी कवि स्ट्रैटीस हविआरास (वे
लैमोंट
लाइब्रेरी में कविता पाठ के संयोजक थे), डोनाल्ड हल और उनकी पत्नी जेन केन्यॉन आदि को देखा। निसेन अत्यंत
समझदारी से ओक्टेवियो की कविताओं की आत्माओं को दृश्य-काव्य में
रूपायित कर प्रस्तुत कर रहे थे, अगर उन्हें कोई प्रत्यक्ष नहीं देखेगा तो विश्वास
नहीं कर
पाएगा।
मुझे
पहली बार ओक्टेविओ के
अपनी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद सुनने
का अवसर मिला था। उनकी आवाज़ गंभीर और नियंत्रित थी। प्रत्येक
शब्द के
उच्चारण काव्य-विभा का स्वरूप बदल रहा था
और ब्रायन निसेन का दृश्यकाव्य काव्य-रूप में और जान
फूँक रहा था।
इस बेहद मनोरंजक कार्यक्रम के अंत में फैकल्टी
क्लब में हमें ओक्टेविओ
और निसेन के साथ डिनर पर आमंत्रित किया गया था। अगले दिन
ओक्टेवियो न्यूयॉर्क चले गए।
बाद में मेट्रोपॉलिटन
म्यूजियम ऑफ आर्ट (एमओएमए) में हुए 'मैक्सिकन
कला का 2000 साल' प्रदर्शनी के
उद्घाटन में मुझे
ओक्टेविओ द्वारा तैयार, संपादित विशाल सूची को देखने का अवसर मिला था, जिसमें मैक्सिको
के सामग्रिक कला-इतिहास
और परिवेषण की
उल्लेखनीय शैली के बारे में उनका प्रभूत
ज्ञान
परिलक्षित हो रहा था। लेकिन उन्होंने मुझे यह कहते हुए एक पत्र लिखा था, 'अब तक सबसे बड़ी
सूची तैयार करने की बदनामी मुझे
मिली है।'
ओक्टेविओ के साथ
मेरा संबंध बहुत पुराना था। छह ठे दशक
में जब वह भारत में मेक्सिको के राजदूत थे, उस समय से। तकक्षी शिवशंकर पिल्ले को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के समारोह (सन 1985) में वे मुख्य अतिथि थे । उस समय मैं ज्ञानपीठ
पुरस्कार की चयन
समिति का एक अन्यतम सदस्य था। उनका परिचय देते समय उनकी कविता 'शिव-पार्वती' के
अंग्रेजी और हिंदी अनुवाद पढे गए
थे। बाद में उन्होंने कहा कि वह अपनी कविता से बहुत खुश हैं। इसलिए नहीं कि कविता भारत में उनके प्रवास के दौरान लिखी गई थी,बल्कि यह उनकी पसंदीदा कविताओं में से एक थी। कविता इस प्रकार है:-
“ शिव और पार्वती
वह महिला जो मेरी पत्नी है, और मैं
नहीं मांगते कुछ भी
उसके बारे में
जो दूसरी दुनिया से
आता है;
केवल इतना रहने दो
प्रकाश समुद्र वक्ष पर
नंगे पांव पर प्रकाश
निद्रित धरती और समुद्र के
ऊपर।”
(शिव और पार्वती)
पुरस्कार समारोह के
बाद मैंने उनसे इस कविता के प्रेरणा-स्रोत के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि
इस कविता के दो स्रोत थे। पहला स्रोत था, हार्दिक प्रार्थना, दूसरा मेरी विदायी के अनुभव। कविता भारत से लडेरा एस्टे (उनकी पूर्व भूमि) लौटने से ठीक पहले ही बनाई गई थी। उस समय उन्होंने मैक्सिको
सिटी के छात्रों पर मैक्सिकन सरकार के फायरिंग के विरोध में भारत के राजदूत के पद
से इस्तीफा दे दिया था। कविता पढ़ते समय
मेरी आँखों के सामने फिर से एलीफेंटा नाचने लगी। शिव-पार्वती के
विवाह की सुंदर तस्वीर एलीफेंटा की गुफाओं में अभी भी अक्षुण्ण है।मुझे निम्न पंक्तियां याद आ गईं, जो मेरे अंदर प्रतिध्वनित
हो रही थीं :-
"हे जगन्नाथ,
मैं तुमसे कुछ नहीं मांगता,
न
धन मांगता हूँ, न जन,
मांगता हूँ सिर्फ हाथ भर
श्रद्धा बालू । "
हमें
पता था कि उन्होंने भारत में अपने प्रवास के दौरान कई
जगहों ('वृंदावन', 'हिमाचल प्रदेश', 'ऋषिकेश') पर कविताएं एवं समय और घटनाओं के बारे में लिखा था ।
भारत उनकी नजरों में
प्रिय भूमि थी, जो इतिहास की निर्जनता में खो गई थी। उन्होंने मुझसे
कहा था कि उनकी किताब 'इन
दी लाइट ऑफ इंडिया' उनके कर्ज को चुकाने का एक छोटा प्रयास था।
भारतीय आत्मा का द्वंद्व और विरोधाभास, जिन्हें उन्होंने देखा था, उनकी पुस्तक में साफ झलकते हैं। एक बार बातचीत
के दौरान उन्होंने कहा
था,
"मैक्सिको का भी यही हाल है। हम मेक्सिकोवासी एक-दूसरे और दुनिया के लिए अबोध्य हैं। "
इस पुस्तक में, मैं उनके साथ अपने
रिश्ते के लंबे इतिहास के बारे में नहीं लिख पाऊँगा। खास-खास बातें लिख रहा हूँ।
मैंने हार्वर्ड कारपेंटर सेंटर में कविता-पाठ के बारे में पहले
कहा है। निसेन की प्रदर्शनी का नाम था "ओक्टेविओ पाज़ की ऑब्सीडियन तितली" । उनकी कविताओं
में कई जगहों पर मैक्सिकन सभ्यता की परंपरा का चित्रण है,इसलिए मैंने उनसे और निसेन से कहा था कि प्रदर्शनी का शीर्षक वास्तव में काफी सोच-समझकर रखा गया है।
पठित
कविताओं में सामग्रिक भाव से कविता और मेक्सिको के बारे में उनका दृष्टिकोण था। हमेशा कवि का भाग्य ऐसा ही
होता है। उन्हें अपने समाज और समय के साथ बहुत करीबी रिश्ता
बनाए रखने पर भी अपने आपको इतिहास के बोझ और उसके
कोमल अत्याचार से बचाना पड़ता है। कवि और उनके उच्चारित शब्द एक और अभिन्न होने पर ही उच्च कोटि की कविता बनती
है।उनकी भाषा में कविता एक परित्यक्त आँगन है। मेरे
मन पसंद की तीन कविताएं उदधृत हैं :-
यौवन :-
तरंगों की उछह लकूद
और..... श्वेत-धवल
समय-समय पर अधिक हरा
दिन-ब-दिन और बचपना
मृत्यु
रचना:-
ये सारे अक्षर लिखता हूँ मैं
जैसे दिन आँकता है अपनी छह बियाँ सारी
फिर फूँक मारकर मिटा देता है
और आता नहीं वापस
संगीत:-
ऊपर नीला अंबर
नीचे पेड़ों के झुंड
रास्ते भर हवा
सुनसान कुआं
काली बाल्टी
स्थिर पानी
पानी
उतर आता है पेड़ों पर
आसमान
छा जाता है होठों पर
मैंने
उनसे कुछ समय के लिए चित्रकार जे॰ स्वामीनाथन और कवि श्रीकांत वर्मा के बारे में बात की थी। वे दोनों हमारे दोस्त थे और
दोनों इस दुनिया से विदा हो गए। स्वामीनाथन ने मेरे कविता-संग्रह 'चढ़ेईरे तू कि जाणू' के हिंदी अनुवाद ‘चिरईरे तू क्या जाने’ के
लिए उनके द्वारा चयनित एक पेंटिंग की स्लाइड तैयार करके भेजी थी, मुझे
याद आ गया। मुझे स्वामीनाथन के साथ मेरी पुरानी दोस्ती और उनकी मृत्यु
शैय्या के शेष दिन याद आने लगे।
इस तरह सब-कुछ खो जाता है। मृत्यु का कोहरे हर
किसी को डूबा देता है - उसके बाद कुछ भी दिखाई नहीं देता। जब मुझे ऑक्टेविओ की दारुण
मृत्यु की खबर मिली तो मेरा मन छह टपटाने लगा था। अनजाने में इस दूर स्थित दोस्त के लिए मेरी
आँखें नम हो गई थीं ।
एक बार वह अमेरिकी
शिखर समिति की बैठक में भाग लेने के बाद चिली से विमान द्वारा लौट रहे थे। मुझे उनकी कविता ओब्सीडियन
तितली याद आई, जिसे मिट्टी और फूलों
की सुगंध से प्यार था फिर अपने पंखों को हिलाते हुए दूर चली गई। मुझे उनकी कविता 'शिव पार्वती' भी याद आई।
क्या यह मृत्यु भी सभी से ‘विदाई, विदाई' कहने की शैली नहीं है?
ओक्टेवियो स्मृति
और प्रेम के
कवि थे।
उनकी कविता
'सन स्टोन' की कुछ पंक्तियां नीचे उद्धृत है:
मैं अपनी उंगलियों
से देखता हूं:
मेरी आँखें क्या
छूती हैं:
दुनिया की छाया पर छाया डालती हैं।
मैं दुनिया को
आकर्षित करता हूँ।
मैं
दुनिया को छाया के साथ छिन्न-भिन्न करता हूँ।
मैक्सिको के राष्ट्रपति अर्नेस्टो ज़ेडिलो ने
ओक्टेविओ की मौत की खबर पर संवेदना व्यक्त की थी, "उनकी
मृत्यु समकालीन विचार और संस्कृति के लिए
एक अपूरणीय क्षति है, न
केवल लैटिन अमेरिका के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए।"
उनकी मृत्यु में कविता ने खो दिया है उस कवि
को, जिसने सूनसान एस्प्लेनेड
से हमें दुखद समय में कविता और कला के सूक्ष्म स्वर सुनाए थे। क्लांतिहीन पथिक बनकर, जिसने हमें चहुंमुखी निराशा और अवक्षय के भीतर आशा और नए सपनों
का संचार किया था।सारा जीवन वह अथय यात्री थे, लौटना चाहते थे "प्रारम्भ के विस्मृत शब्दों में"
उन्होंने अपनी पुस्तक "द लिब्रिन्थ ऑफ सॉलिट्यूड" में एज़्टेक-
माया सभ्यताओं और मेक्सिको
के इतिहास और परंपरा के बारे में बहुत कुछ लिखा है। टेनोचिट्लान के खंडहरों पर
स्थित ढाई करोड़ लोगों की दुनिया
की सबसे बड़ी बस्ती मैक्सिको सिटी है, जिसके चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ है, जिसकी वजह से वह दुनिया
का सबसे प्रदूषित शहर है। बारबाटी के खंडहरों पर स्थित कटक शहर और क्या है!
पेंगुइन से
प्रकाशित अपना कविता-संग्रह मुझे उपहार देते समय उन्होंने
स्पैनिश में दो पंक्तियां लिखीं: 'ए
सीताकान्त
दी पोएटा ए
पोएटा' (सीताकांत को, कवि से, कवि को)।
जब मैं अपनी पुस्तक के पन्नों को पलटता हूं तो उनकी ये पंक्तियाँ याद आती है:-
"लेखक को एकांत में रहना चाहिए। यह अभिशाप भी है तो आशीर्वाद भी। इसलिए हम लेखकगण सीमांत पर होते हैं।"
Comments
Post a Comment