6. हार्वर्ड में पहला कदम:अकेलेपन के वे दिन

 6.  हार्वर्ड  में पहला कदम:अकेलेपन के वे दिन

              जब मैं अपने भीतर झाँकता हूँ तो लगता है कि मैं गृहासक्त हूँ। जब मैं घर-परिवार और दोस्तों की परिधि के बाहर निकलता हूँ तो मेरी अवस्था पानी से बाहर निकलने पर तड़पती मछह ली की तरह होती है।अवश्य, ऐसी भावना लगभग सार्वभौमिक है, मगर मेरे भीतर कुछ ज्यादा ही है। धीरे-धीरे उस  शून्य को भरने के लिए नए-नए तरीके मिल जाते हैं, नहीं तो कभी-कभी उन तरीकों का आविष्कार भी करना पड़ता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ।
              विजय बाबू और मैंने बोस्टन हवाई अड्डे पर मेरी पत्नी (वासंती) और बेटे (सत्यकाम) को छोड़ दिया। वे पहले मॉन्ट्रियल गए। वहाँ हमारे संबंधी अशोका (मेरी पत्नी के मौसा वकिशोर मोहंती की बेटी) और उनके पति दिलीप हरिचंदन रहते थे। अशोका मॉन्ट्रियल के मैकगिल विश्वविद्यालय में काम करती थी और दिलीप वहाँ वरिष्ठ अधिकारी थे। उनके साथ मेरी पत्नी और बेटे ने टोरंटो और बफेलो के रास्ते कनाड़ा की तरफ से नियाग्रा देखा था। उनके मॉन्ट्रियल प्रवास के अंतिम चरण में सीफा के तत्त्वावधान में कनाड़ा सरकार के निमंत्रण पर दो सप्ताह कनाड़ा घूमने का अवसर प्राप्त हुआ था, जिसका पहला ठहराव था मॉन्ट्रियल। मॉन्ट्रियल के महापौर ने होटल फोर सीजन्स में हमारा स्वागत किया। अगले दिन स्थानीय अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श, उसके बाद हम सेंटलॉरेंस नदी के तट पर स्थित कनाड़ा के सबसे पुराने और उत्तरी अमेरिका के सबसे सुंदर शहर क्यूबेक गए। अशोका और दिलीप से फिर मेरी मुलाक़ात हुईबेटे सत्यकॉम की नियाग्रा अनुभूति का वर्णन अधूरा रह गया था। मैंने उसे सलाह दी, "घर जाकर नियाग्रा समेत जो कुछ   अपनी आंखों से देखा है, उसे अपनी कॉपी में लिखनाघर लौटकर मैं उसे देखूंगा।"              वे मॉन्ट्रियल से ओहियो के काउंटी (हमारे करीबी गनी बाबू यहाँ रहते थे) से होते हुए कैलिफोर्निया के सैनहोज़ गए, जहां स्वर्गीय गोपीनाथ मोहंती और उनकी पत्नी (सगे मामा-मामी) की बेटी डॉ॰ अंजलिका (अंजली) और दामाद वरिष्ठ आईबीएम अधिकारी सूर्य रहते थे। मुझे नहीं पता था कि मैं सैनहोज़ में फिर से जाऊँगा और उनके साथ कुछ   दिन बिताऊंगा। कैलिफोर्निया की कॉलेजों के डीन  और समाजशास्त्र के प्रोफेसर सुसान सीमोर ग्राहम ने मुझे वहाँ व्याख्यान देने और कविता पाठ करने के लिए आमंत्रित किया था। सैनहोज़ स्टेट यूनिवर्सिटी के नृतत्त्वविद जेम्स फ्रीमन ('अनटचेबल के प्रसिद्ध लेखक) ने भी मुझे वहाँ व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था। मैं व्याख्यान की चर्चा बाद मैं करूंगा। लेकिन मैंने यहाँ की फाइजर कॉलेज में आठ दिन बिताए थे। उन आठ दिनों में सूर्य और मामा के साथ हम विभिन्न स्थानों पर गए। हम सैनफ्रांसिस्को में दो बार गए, एक बार स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, उसका परिसर और वहां की विशाल किताबों की दुकानें देखने के लिए। हार्वर्ड, येल के अतिरिक्त  स्टैनफोर्ड अमेरिका का प्रमुख विश्वविद्यालय है। इसका परिसर सुंदर है। विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर सड़क के दोनों किनारों पर घने खजूर के पेड़ मन मोह रहे थे। इसके बाद खुले गगन के तले कांस्य स्थापत्य की प्रतिमाएँ नजर आईं वे प्रतिमाएँ अमेरिका के व्यक्तियों और मानवीय गुणों की स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। मैंने अमेरिकन इंडियन की  कई पुस्तकें और बांसुरी-वादन की चार कैसेट खरीदी। हम कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय के परिसर में भी गए। स्टैनफोर्ड की तुलना में बर्कले का परिसर कुछ संकीर्ण था,मगर पर्यावरण ज्यादा हरा-भरा था। हरे-भरे लॉन और फूलों की क्यारियाँ भरी हुई थीं दूसरी बार हमने सैन फ्रांसिस्को का गोल्डन गेट ब्रिज और मछुआरा-घाट देखा।वहाँ तली मछह ली खाकर हम समुद्र तट पर घूमने लगेफिर हम सैन फ्रांसिस्को की प्रसिद्ध सड़क से नीचे गए। ऊपर से नीचे ले जाने वाली सड़क में कई मोड़ थे और प्रत्येक मोड पर सुंदर-सुंदर फूलों की क्यारियाँ सजी हुई थीं              सैनफ्रांसिस्को के बाद हम मोंटेरी बे गए। बहुत ही सुंदर जगह थी। मैं मोंटेरी बे और रेडवुड पेड़ों के बारे में बाद में लिखूंगा। उस दिन मेरी पत्नी और बेटा,मामा-मामी के साथ सिंगापुर-कोलकाता के रास्ते घर लौट गए। उसके बाद मेरा एकाकीपन शुरू हुआ।
              फाइजर कॉलेज से विमान द्वारा सैनहोज पहुंचने में आधा घंटा लगता है। कॉलेज लॉस एंजेल्स शहर  के बाहरी इलाके में था। तीनों परिसर एक-दूसरे के आस-पास थे। वहां के व्याख्यान और कविता-पाठ के बारे में बाद में लिखूंगा। यहाँ मैं अपने व्यक्तिगत दुर्भाग्य के बारे में थोड़ा-बहुत कहूँगा। उस समय शरद ऋतु समाप्त हो चुकी थी। कैलिफ़ोर्निया में सर्दी बहुत कष्टप्रद नहीं थी। वहाँ बहुत ठंड नहीं पड़ती थी। इसलिए एक स्वेटर से काम चल जाता था। सभी कार्यक्रमों के पूरा होने के बाद मैं विमान से बोस्टन लौट आया। बोस्टन हवाई अड्डे पर विमान उतरने से ठीक पहले घोषणा की गई थी:  'रन-वे पर काफी बर्फ है। यहाँ कल से बर्फ़ गिर रही है। रन-वे साफ किया जा रहा है। इसलिए दस मिनट लगेंगे' हमारा विमान तब तक आकाश में चक्कर काटता रहा। अंत में, नीचे उतरा। टैक्सी के लिए मैं भी बाकी यात्रियों के साथ कतार में खड़ा रहा। जब तक मैं जिंदा रहूँगा, तब तक मैं उसे भूल नहीं पाऊँगा। जब तक टैक्सी नहीं आई, तब तक मैं खुले में खड़ा रहा। मेरी आंखों और नाक से पानी बहने लगा। मेरे कान मानो फट जा रहे थे। मैंने अपनी उंगलियों से अपने कान बंद कर दि थे। टैक्सी लेकर मैं अपार्टमेंट पहुंचा। उस रात मुझे 104 डिग्री सेल्सियस का बुखार आया। ठंड से कंप-कंपी छूटी, बिस्तर से उठकर बाथरूम जाते समय मेरा सिर भयंकर रूप से घूमने लगामेरा फोन पाते ही विजय वहाँ पहुंचे। वह अपने परिवार के साथ चैन्सी स्ट्रीट पर रहते थे, मेरे अपार्टमेंट से सात मिनट की पैदल दूरी पर। वह कहने लगे, "आप अकेले हैं । यूनिवर्सिटी के अस्पताल में भर्ती हो जाना ठीक रहेगा।" मैंने वैसा ही किया। अस्पताल में पहले मेरे रक्तचाप की जांच की गई। वह सामान्य था।
              प्रारंभिक चिकित्सकीय राय यह बनी, भयानक ठंड के कारण मुझे चक्कर आ रहे हैं। डरने की जरूरत  नहीं है। मुझे अस्पताल में तीन दिन रहना पड़ेगा, पूरी जांच के लिएमैंने वैसा ही किया। मुझे बुरा लगा कि मेरी पत्नी के जाने के बाद मैं बीमार हो गया। अगले दिन मैंने अस्पताल से भुवनेश्वर अपने घर फोन कर बता दिया कि मैं ठीक हूँ। मैंने फोन इस उद्देश्य से किया था कि कल अगर वे मेरे अपार्टमेंट में फोन करते हैं और उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता है तो वे चिंतित होंगे               मेडिकल जांच खत्म हो गई। रक्त परीक्षण, ईसीजी और यहां तक ​​कि ब्रेन स्कैन भी।आखिरकार निष्कर्ष यह निकला कि अत्यधिक ठंड के कारण दोनों कानों की नसें बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैंहियरिंग एड लगाना पड़ेगा, जो आज तक बाएँ कान में लगा हुआ है। लेकिन नसें खराब हो जाने से भविष्य में स्पष्ट नहीं सुन पाऊँगा। हियरिंग एड केवल ध्वनि को बढ़ाता है,सुनने के लिएकान के गह्वर का माप लिया गया और मुझे हियरिंग एड पहनाया गया। ईएनटी विशेषज्ञ नीग्रो की मधुर बातें आज भी याद हैं। मैं अपार्टमेंट वापस आ गया। ये सारी बातें अब मेरा इतिहास बन गई हैं।
 एकाकी रहने के दिन शुरू हुए।मेरी पत्नी ने फ्रिज में सब्जी, मछह ली और मांस भर दिया था। मुझे  समय निकालकर खाना बनाना सीखना पड़ेगा। विजय की पत्नी सुवर्ण ने मुझे कुछ   खाना पकाना  सिखा दिया था। उसका बेटा गिटार बजाता था। दिन बीतते चले गए। मैंने अपनी पसंद के सभी तरह के सूप खरीदकर रख लिए थे। सूप के मामले में विशेषज्ञ बन गया था मैं। सूप बनाना आसान था। इसके अलावा, मैं सूप का बहुत शौकीन था। मेरा दूसरा मुख्य भोजन चिकन पैरों का पैकेट था, उसका नाम था ड्रम स्टिक (सजना की छिमी की तरह दिखता था)। दही, उपयुक्त मसालों के साथ मिश्रित कर मैं फ्रिज में रख देता था, फिर जरूरत पड़ने पर उसका तंदूरी चिकन तैयार करता था। लंच करता था सिफ़ा के स्वयं सेवा वाले कैंटीन में, नहीं तो हार्वर्ड  स्क्वायर के चीनी या मैक्सिकन रेस्तरां (उस क्रम में) में। पच्चीस किस्मों वाले कॉफ़ी हाउस में कॉफी पीता थाअपने प्रवास के दौरान मैंने बीस किस्मों की कॉफी का स्वाद लिया था। सबसे अच्छी लगी कोलंबिया की कॉफी। दक्षिण भारत की मिश्रित कॉफी को भी कई लोग पसंद करते थे। तुर्की कॉफी बहुत कड़वी होती थी, उसमें न तो दूध डाला जाता था और न ही शक्कर, मुझे वह कॉफी बिलकुल पसंद नहीं आती थीफिर भी एक बार मैंने इसे चखा था। जब ज्यादा सर्दी होती थी, सड़कों पर हिमपात होने लगता था,तब मैं जल्दी से  अपार्टमेंट में जाकर खाना पकाने लगता था। खाने के बाद संगीत सुनता था या फिर टीवी देखने बैठ जाता था या फोन पर दोस्तों से बात करने लगता थाखालीपन धीरे-धीरे भरने लगा था।              बीच-बीच में सुवर्ण मुझे भारतीय या पाकिस्तानी दुकान में ले जाती थीवहाँ सारी चीजें थीं। कंदमूल से लेकर केले तक। मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। मेरा उन चीजों से क्या लेना-देना? उनके घर भूनी मछह ली और तरकारी खाता था। मशरूम   बनाता था रसोईघर में। चिकन करी के रेडीमेड मसालें   खरीदकर एक दिन उसने मुझे चिकन करी बनाना सिखाया। मेरा पहला प्रयास भयंकर तरीके से विफल रहा। बाद में मुझे पता चला कि जिस बर्तन का मैंने इस्तेमाल किया था, वह इलेक्ट्रिक स्टोव के लिए नहीं था। चिकन करी की खुशबू का आनंद लेते समय तेज आवाज के साथ बर्तन के टुकड़े-टुकड़े हो गए,  चिकन स्टोव पर गिर गया, मेरे लिए बच गया रसोईघर की सफाई का काम।
 फिर भी, मैंने धीरे-धीरे बहुत कुछ सीखा। पास की दुकान से दो बड़े बैग में सभी आवश्यक सामान लेकर आता था और उन्हें फ्रिज में रख देता थाआलसवश मैंने स्नो-बूट नहीं खरीदे थे। एक दिन जब मैं शॉपिंग कर अपार्टमेंट लौट रहा था, बर्फ पर फिसल गया था।जैसे-तैसे सामान लेकर मैं  अपार्टमेंट पहुंचा। इस तरह से मेरे दिन कट रहे थे। बीच-बीच में कई दिन खाना पकाने से राहत मिल जाती थीकोर्स के विविध टूर, अन्य विश्वविद्यालयों का भ्रमण, दोस्तों के घर खाने का आमंत्रण मिल जाता था        देखते-देखते हार्वर्ड  में दिन पार हो रहे थे। सब-कुछ धीरे-धीरे अपनी जगह ले रहा था। विश्वविद्यालय के हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा कार्ड प्राप्त करना पड़ता था। अमेरिका में हर नागरिक के लिए सामाजिक सुरक्षा आवश्यक है। मुझे अपने प्रवास के पहले महीने में कैम्ब्रिज शहर जाकर निर्धारित  सोशल सिक्योरिटी ऑफिस से यह कार्ड लेना पड़ा था। अमेरिका के नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा पद्धति और उसके लिए वार्षिक देय, सीमित दिनों के लिए बाहर से आए हुए लोगों की सुरक्षा पद्धति और उसके लिए वार्षिक देय बिलकुल अलग है। मगर अमेरिका में रहने वाले हर आदमी को अपने साथ यह कार्ड रखना पड़ता है।       हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की अपनी स्वास्थ्य सेवा है। बहुत बड़े अस्पताल में विधिबद्ध वार्ड, ऑपरेशन थिएटर, पोषण तथा विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं। स्वास्थ्य सेवा के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक है। अपेक्षित शुल्क जमा करने के बाद एक स्वास्थ्य कार्ड मिलता है। बेशक,  फ़ेलोशिप की व्यवस्था करने वाला संगठन ही ऐसी फीस का भुगतान करता है। फोर्ड फाउंडेशन ने मेरे फैलोशिप की सिफ़ारिश  की थी। विश्वविद्यालय के सभी प्रोफेसरों, छात्रों और दोस्तों को एक निर्दिष्ट डॉक्टर के साथ जोड़ा जाता है। हर किसी को स्वस्थ हाल में पहली बार अपने डॉक्टर से मिलना आवश्यक था। संबंधित चिकित्सक व्यक्ति का इलाज करता है और यदि आवश्यकता पड़ती है तो अन्य विशेषज्ञों की सलाह भी लेता है। विश्वविद्यालय स्वास्थ्य सेवा के लिए आवश्यक दवाइयाँ खुद को खरीदनी पड़ती है। वहाँ के अधिकांश चिकित्सक हार्वर्ड  मेडिकल स्कूल से प्रशिक्षित हैं। मुझे देखने का प्रभार डॉ॰कस्तूरी नागराज को सौंपा गया था। वे 1978 से यूनिवर्सिटी की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हुई थीं । दिल्ली से एमडी करने के बाद वे लेडी हार्डिंगे मेडिकल कॉलेज में सहायक  प्रोफेसर के पद पर थीं । बाद में, उन्होंने 1978 में हार्वर्ड स्वास्थ्य सेवा में शामिल होने से पहले हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
       रोगियों के प्रति उनका व्यवहार और दृष्टिकोण  बेहद अच्छा था। जब उन्हें पता चला कि मैं भारत के ओड़िशा राज्य से हूं तो वे अक्सर अपने डाक्टरी अनुभवों तथा अपने परिवार के बारे में मुझे बताती थीं । उनके पति का नाम श्री शिव नागराज था और उनके तीन बच्चे थे। दो लड़कियां थीं, अर्चना और ज्योति। सबसे छोटा लड़का था, जिसका नाम आधि था। सबसे बड़ी अर्चना, जिसकी उम्र, सोलह साल थी।       अलग-अलग समय पर मैंने उनसे मुलाकात कर चिकित्सा-सलाह और उपचार प्राप्त किया। मुझे याद है कि एक दिन सुबह ग्यारह बजे मुझे उनसे मिलना था। उससे पूर्व मुझे शाम को भुवनेश्वर से मेरी मौसी के निधन का समाचार मिला। वह ज्यादा बूढ़ी नहीं थी। वह मुझे और मेरी पत्नी को माँ की तरह प्यार करती थी। मैं अपनी पत्नी से टेलीफोन पर यह खबर सुनकर बेहद दुखी हुआ था। दूसरे दिन सुबह सबसे पहले मैं सेंटर गया,जैसे मैं हर दिन जाया करता था। मैंने हर रोज की तरह लेटर-बॉक्स से अपने पत्र लिए, पुस्तकालय में कुछ   समय पढ़ाई की और दोस्तों के साथ गपशप करने लगा। कमरे में चाय पीकर सभी अपने-अपने काम में लग गए। उस दिन मेरे लेटर-बॉक्स में एक पत्र था। यह बीजिंग विश्वविद्यालय से आया था। मैंने लिफाफा खोला और देखा, मेरे पत्र के साथ एक छोटा  नोट लिखा हुआ था। पत्र बीजिंग विश्वविद्यालय के नृतत्व विभाग के प्रोफेसर का था, जिनसे मेरा  लगभग दस सालों से घनिष्ठ संबंध था। संयोग से, हार्वर्ड  आने से पहले उनसे मेरी दिल्ली में भी मुलाक़ात हुई थी। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि संकाय के तौर पर आमंत्रित किया गया था। मेरे पत्र के साथ लगे छोटे नोट पर लिखा हुआ था, 'हमारे प्रोफेसर मित्र की दिल का दौरा पड़ने से अचानक मृत्यु हो गई।' इसलिए मेरा पत्र मुझे लौटा दिया गया। मुझे अपनी मौसी की मौत की खबर शाम को पहले मिल चुकी थी। एक और मौत की खबर से मुझे गहरा दुख हुआ। कुछ  समय सेंटर में रहकर  मैं  11 बजे डॉ॰ कस्तुरी नागराज से मिलने के लिए अस्पताल गया। मैं नियमानुसार पहले उनके सचिव से मिला।उसने कहा, "डॉ॰ महापात्रा, शायद आपको पता नहीं हैं। दिल का दौरा पड़ने से आज सुबह कुछ समय पहले ही श्रीमती नागराज का निधन हो गया है और कल 12.30 बजे यूनिवर्सिटी के मेमोरियल चर्च में उनके लिए शोक-सभा का आयोजन होगा।”अपने जीवन में मैंने कई मौतों का सामना एक साथ कभी नहीं किया था, उसके बाद एक साथ तीन अत्यंत करीबी लोगों की मृत्यु। दुखी मन से सेंटर लौट आया। वहां कुछ   समय तक रहा। फिर अपने  अपार्टमेंट चला गया। सोते-सोते पंडित जसराज के भजन सुनने लगा, कुछ   हद तक अपने आपको  आश्वस्त किया। मैंने बाहर खाने की बजाय घर पर कुछ सूप बनाया। सूप पीकर चार्ल्स नदी के तट पर चला गया। वहां कुछ   समय बैठा और फिर अपार्टमेंट लौट आया। हार्वर्ड  के एक साल प्रवास में  24 मार्च, शुक्रवार मेरे लिए सबसे दुखद दिन था। अगले दिन मैं मेमोरियल चर्च में शोक-सभा में गया। मैं वहां पहली बार उनके पति श्री शिव नागराज और उनकी सबसे बड़ी बेटी अर्चना से मिला। उससे पहले उनके घर में उनकी छोटी बेटी और बेटे से मिल चुका था। एक ही दिन, एक के बाद तीन मौतों की खबर ने मुझे विचलित कर दिया था। दो-चार दिन किसी भी चीज में मेरा मन नहीं लग रहा था। कुछ समय बाद मुझे एक अन्य चिकित्सक के साथ जोड़ दिया गया। वह अमेरिकी नीग्रो थे और कस्तूरी नागराज को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। अक्सर स्वर्गीय नागराज के बारे में मेरी उनके साथ चर्चा होती थी। उनके सहयोगी के हिसाब से वे भी अपने अनुभव सुनाते थे।                    
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