21. हार्वर्ड प्रवास के अंतिम दिन


21. हार्वर्ड प्रवास के अंतिम दिन

साल भर का प्रवास पूरा होने जा रहा था। मैं विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित चीन,जापान,कोरिया के दौरे पर नहीं जा रहा था। मेरे मन में घर आने की प्रबल इच्छा थी,  इसलिए एक और महीना  बाहर रहना नहीं चाहता था। विश्वविद्यालय द्वारा हमारे लिए दीक्षांत उत्सव का आयोजन किया जा रहा था।
सैंडर्स थिएटर में हार्वर्ड  के अनेक संगीत कार्यक्रम,ऑर्केस्ट्रा और व्याख्यान का आयोजन किया गया था। राजीव गांधी ने भी यहाँ अपना व्याख्यान दिया था। मगर इन कार्यक्रमों में मेरे लिए सबसे ज्यादा स्मरणीय था अफ्रीका की रंगभेद नीति के विरोध में हार्वर्ड के छात्रों के द्वारा आयोजित संगीत कार्यक्रम,जो ठीक हमारे दीक्षांत उत्सव के पहले सम्पन्न हुआ था। दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार के साथ हार्वर्ड के सारे संबंध खत्म करने का घोषणा-पत्र बहुत पहले ही विश्वविद्यालय प्रबंधन को दिया जा चुका था। दक्षिण अफ्रीका हार्वर्ड के कई कार्यक्रमों में प्रभूत वित्तीय सहायता करता है। Harvard-Radchitte Alumni Association की तरफ से सैंडर्स थिएटर में संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिनके सहयोगी थे Folk Tree Concert आयोजन की बागडोर संभाल रहे थे सुप्रसिद्ध गायक पीट सिगर। थिएटर के भीतर और बाहर युवक-युवतियों की  भीड़ के बारे में नहीं कहा जा सकता। सभी कार्यक्रम भीतर में स्थानाभाव के कारण बाहर  बड़ी स्क्रीन पर दिखाए जा रहे थे। मेरी भी इस कार्यक्रम को देखने की प्रबल इच्छा हो रही थी। इसलिए बाहर दो घंटे खड़े होकर मैंने कार्यक्रम देखा। पीट सिगर के संगीत से मैं परिचित हूँ। उनके एल्बमों में प्रस्फुटित होती समसामयिक चेतना का आवेग मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैंने सुना था,वे अभी-अभी निकारागुआ से लौटे हैं अपना कार्यक्रम पूरा करने के बाद। रंगभेद नीति के विरुद्ध में गंभीर आवेग,दक्षिण अफ्रीका के स्वाधीनता हेतु दृढ़संकल्प और नेल्सन मंडेला को समर्पित  विशेष संगीत सब उपस्थित छात्र-छात्राओं को मंत्र-मुग्ध कर रहा था। सिगर के संगीत की धुन पर लोग हाथ ऊपर उठाकर नाच रहे थे। सबसे पहले सिगर ने अपना प्रसिद्ध लोकगीत ‘ओवियोयो’ गाया,जिसमें प्रबल प्रतापी भयानक राक्षस को छोटे बच्चे के संगीत ने परास्त कर दिया था। यह संगीत प्रतीक है स्नेह,निविड़ संबंध और सौहार्द्ता का, जो दुष्ट आसुरी शक्तियों को पराभूत कर देता है। यह गीत पीट सिगर ने बहुत सुंदर तरीके से गाया था। उनके दो सहयोगियों सी कान  अपने दादा के दिनों से अफ्रीका में रहने वाले प्रवासियों के लिए इस गीत को गाते आ रहे थे। जेन साप के प्रसिद्ध उपन्यास की पंक्ति Go,Tell it on the mountain पर आधारित संगीत भी  प्रस्तुत किया गया था। उस गीत में अपने स्वर मिलाकर सैंडर्स थिएटर के सारे श्रोतागणों को गाते देखकर मुझे एक अद्भूत  अनुभव हो रहा था। हार्वर्ड  के प्रथम कृष्णकाय पीएचडी WEB Du Bois के कुछ वाक्य सिगर ने उद्धृत किए थे। उन लोगों के लिए विद्रुपता थी  : लोग तुलनात्मक आराम और विलासिता में जीना चाहते हैं। यद्यपि वे जानते हैं कि यह उनके लाखों साथियों की अज्ञानता और गरीबी की कीमत पर है। अंत में एक गाना गाया गया,जिसकी रचना हार्वर्ड में पढ़नेवाले काले कुंबा गायकों और उनके कुछ   दोस्तों ने की थी। संगीतकारों ने इस समवेत गीत को नेल्सन मंडेला और दक्षिण अफ्रीका को समर्पित किया था।
प्रिटोरिया, हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं
नेल्सन, हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं।
हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं।

हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं- का समवेत स्वर  समग्र श्रोतामंडल को निनादित कर रहा था। कुछ   जानने से पहले मैं भी उस गाने की पंक्तियों को बार-बार दोहरा रहा था। कार्यक्रम बहुत देर तक चला। शुरू  हुआ था रात को 9 बजे। मैं 11 बजे तक अपने अपार्टमेंट में लौट आया।

देखते-देखते जून का महीना गया। अमेरिका में गर्मियों के दिन शुरु हो जाते हैं। चारों तरफ तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों से भरपूर दृश्य नजर आने लगते हैं। हार्वर्ड में सर्दी के दिन बहुत दुखदायी होते हैं। उत्तर से ठंडी हवा आती है, बहुत ही ठंडी। स्थानीय तापमान उससे प्रभावित होता है- जिसे कहते हैं- wind chill फेक्टर अर्थात्  हवा की वजह से ठंड का बढ़ना। जब स्थानीय तापमान 10 डिग्री होता है तो हवा के प्रभाव से वह 15 डिग्री हो जाता है। जब यह ठंडी हवा शरीर पर लगती है तो नाक-कान बहुत ठंडे हो जाते हैं, आँखों से पानी गिरने लगता है। अलग-अलग पोशाकें पहनकर एस्कीमों की तरह मैं हमारे सिफ़ा सेंटर में आता-जाता था,फिर भी ठंड लगती थी।
ऐसी अवस्था में कुछ   महीने बिताने के बाद जब हार्वर्ड  के रंग और वर्ण महोत्सव आता है,उस समय उसे छोडकर जाने का  मन नहीं होता है। दूसरी तरफ मेरा घरमुखी स्वभाव घर की तरफ खींचने लगता था। बच्चे  चिट्ठी में लिखते थे, सभी का एक ही प्रश्न- आप कब रहे हैं ? आपको वहाँ रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं। आपके आने की प्रतीक्षा में... ।
ऐसे परिवेश में हमारे कोर्स का अंतिम भ्रमण था जापान और दक्षिण कोरिया। उन देशों की सरकारों ने हमें आमंत्रित किया था। मैं जापान और दक्षिण कोरिया पहले भी गया था। मगर चीन नहीं देख पाने के कारण मन में थोड़ा दुख हो रहा था। समग्र भ्रमण तीन सप्ताह का था। फिर लौटकर आने के बाद एक और सप्ताह निर्धारित था चर्चा और सेमिनार के लिए। यह कार्यक्रम वैकल्पिक था,जाना जरूरी नहीं था। भ्रमण से पहले सिफ़ा का दीक्षांत समारोह हो गया था, तब तक मैं वहीं पर था। समारोह के बाद हंगिगटन ने बहुत अच्छा भोज दिया था। उनके अलावा दो-तीन सलाहकारों ने अपने विचार  रखे थे। सामाजिक नृतत्व में पीएचडी करने वाले कई छात्रों की मैंने बहुत मदद की थी। उनकी थीसिस पर विशद चर्चा कर उन्हें सलाह भी दी थी। इस बारे में हंगिगटन ने अपनी रिपोर्ट में अलग से उल्लेख किया था। हमारे अंदर से चार लोगों ने(मुझे लेकर) हमारे प्रवास,हमारे कोर्स और सिफ़ा के भविष्य के बारे में अपने विचार प्रकट किए थे।हमने इस कोर्स में किए जाने वाले परिवर्तन के बारे में लिखित राय भी दी थी।   
सिफ़ा के फ़ेलो होने के कारण मिलने वाली सुविधाओं के बारे में हंगिंगटन ने उल्लेख किया था कि भविष्य में विशेष गवेषणा या अध्ययन हेतु आने पर सिफ़ा उनका स्वागत करेगी। फ़ेलो को सिफ़ा में उच्च अध्यापन कार्य दिया जाता है और उनके रहने तथा अध्ययन की पर्याप्त सुविधा प्रदान की जाती है। हंगिंगटन और सिफ़ा को हमारी तरफ से मिस लुईस हुक संयुक्त राष्ट्रसंघ  और 159 देशों  के ध्वज(हमारे कोर्स में सभी देशों के राष्ट्रीय ध्वज प्रथम पंक्ति में लगाए गए थे) को एक स्क्रीन में लगाकर उपहार के रूप में प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा था सिफ़ा के तीसवीं फ़ेलो के हार्वर्ड  और सिफ़ा सहित दीर्घस्थायी सम्बन्धों का प्रतीक है। ड्रूक इस पाठ्यक्रम की प्रवक्ता थी। वह बहुत भद्र,मिलनसार और बहुत सुंदर महिला थी। केनेडी स्कूल से उन्होंने एम.. किया था और इस वर्ष के अंत में(1988)पीएचडी थीसिस जमा करनी थी। उससे ज्यादा उन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ के शरणार्थियों के काम का दायित्व शीघ्र लेना था। (वह UNHCR की सीनियर ऑफिसर के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल हुई थी) उन्होंने कहा -शरणार्थी’ काम का मतलब आपातकालीन कार्य,चौबीसों घंटे। अब मुझे अपनी पीएचडी जल्दी पूरी कर लेनी चाहिए। सीताकान्त की तरह काम के दबाव मैं सुदूर पूर्व दौरे पर नहीं जा पाई  हम दोनों के अलावा दो अन्य प्रतिभागियों ने भी इस दौरे पर नहीं गए थे। सैम हंगिंगटन(हार्वर्ड  विश्वविद्यालय सिफ़ा के निर्देशक),लेस ब्राउन(फ़ेलो कार्यक्रम के निर्देशक), हमारे पाठ्यक्रम के निर्देशक,हमारे पाठ्यक्रम के छह ह प्रमुख प्रोफेसर,ऑफिस के छह ह स्टाफ ने  प्रमाणपत्र वितरण वाले इस विदाई समारोह में भाग लिया। हर्मन हेस की कविता की कई पंक्तियाँ मुझे याद आने लगी :-
 As each flower blooms and each youth yields to age
each step of life blooms,
each wisdom as well and each virtue blooms
in its time, and cannot last for ever.
The heart has to be nearly at each call of life
and say goodbye and to start afresh.
And within each new start there is enchantment
that protects us and helps us live.
The spirit of the cowed does not want
to constrain or narrow us;
it wants to lift us, broaden us, step by step.

मैंने बहुत सोच समझकर निर्णय लिया कि हमें विश्वविद्यालय और हमारे दीक्षांत समारोह के बाद लौट जाना चाहिए। विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह केवल तीन दिनों के बाद था। इसके अलावा, मुझे इस प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को देखने की बहुत इच्छा थी। मेरे बाकी दोस्तों को विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दो दिन बाद चीन,जापान और कोरिया के दौरे पर जाना था।
जून महीने के  हार्वर्ड का यह दृश्य मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा। कोहरा,बूँदाबाँदीहाड़कंपाती सर्दी अतीत की बातें हो गई थीं। इस देश की गर्मियों में हल्के कपड़े पहन कर छात्र -छात्राओं के समूह चार्ल्स नदी के किनारे ग्रेजुएट सेंटर पर घूमने जाते हैं, हार्वर्ड स्क्वेयर रेस्टोरेन्ट और कॉफी क्लब पर एकत्रित होते हैं। कॉफी क्लब के बारे में एक और वाक्य यहाँ कहना उचित रहेगा। वहाँ पर बत्तीस क़िस्म की कॉफी मिलती है,जहां तक मुझे याद है। मैंने अवश्य कोलम्बिया की दो-तीन  क़िस्मों की कॉफी को बहुत ऊंचा स्थान दिया था। भारतीय कॉफी की तीन किस्में वहाँ उपलब्ध थीं। कॉफी क्लब में हमेशा भीड़ लगी रहती थी। छात्र-छात्राओं,अध्यापकों और बाहरी लोगों की भीड़ के बारे में कहने के लिए शब्द नहीं है।
चार्ल्स नदी में पुंटिंग मैंने कभी नहीं किया था। इस अवसर पर हमारे कोर्स के दो दोस्तों के साथ नाव में बैठकर नौकाविहार करने का आनंद लिया।
सर्दियों में चार्ल्स नदी का पानी नहीं जमता था,भले ही, दोनों किनारों पर कुछ   मात्रा में बर्फ जमती थी। हार्वर्ड  यूनिवर्सिटी  वाले किनारे की तरफ रास्ते से 200 फुट लंबाई वाला सुंदर लान में हरी-भरी  सुंदर घास, तरह-तरह के फूल,नदी की  छोटी-छोटी लहरेंसब मिलकर बहुत सुंदर परिवेश की सृष्टि कर रही थी। मैं कई बार चार्ल्स नदी के किनारे पर ऐसे ही बैठे रहता था। नदी,फूलों की क्यारी,छोटी-छोटी नावों में पुंटिंग कर रहे छात्र-छात्राओं को देखना अच्छा लगता था।
यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में छात्र-छात्राओं को डिग्री प्रदान की जाती है। वह दिन भी गया। अतिथिगण,छात्रों के माता-पिता को गिनने से लगभग 25 हजार हो रहे थे,जबकि स्नातकों की संख्या 5000 विश्वविद्यालय में अलग-अलग  टोपी वाले लगभग 200 मार्शल अतिथियों के आवाभगत और अन्यान्य कार्यों में हाथ बंटा रहे थे। मेमोरियल चर्च और वाइडनर लाइब्रेरी के बीच वाली जगह पर तीन सौवीं वर्षगांठ मनाने के उपलक्ष में बनाए गए थिएटर में खचाखच भीड़ थी। सन 1936 में तीन सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में इस थिएटर में पहली बार दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया था। हार्वर्ड  कालेज और रेड्क्लिफ कालेज के लाल,नीले,सफ़ेद,सुनहरे रंग के झंडे बहुत आकर्षक लग रहे थे। 3 नारंगी रंग के झंडे भी फहराए गए थे। तीन किताबें उनके साथ थीं,जिस पर सन 1643 का विश्वविद्यालय का मोटों वेरिटस(veritas)अर्थात्  ‘सत्यलिपिवद्ध था। उसके साथ झंडे पर 1643 की प्राचीन शील्ड भी अंकित थी।
सितंबर 1943 में सुप्रसिद्ध लेखक डेविड मार्ककर्ड ने हार्वर्ड एलूमनी बुलेटिन में लिखा था : डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों द्वारा पहनी गई पोशाकें और उनके माथों को ढकती रेशमी टोपियाँ असंख्य इंद्रधनुष की आभा चारों तरफ फैला रही थी।” हमारे दीक्षांत समारोह की तरह यहाँ के डिग्री धारक काली पोशाकें नहीं पहनते हैं। इमर्शन ने हार्वर्ड की 250वीं वर्षगांठ पर कहा था, “शायद इस शोभायात्रा में अदृश्य,निराकार लोग चल रहे है, जो भविष्य के निराकार लोगों के साथ मिलकर अनंत काल तक लंबी कतार बनाएँगे।”
दीक्षांत समारोह के उपलक्ष में विशिष्ट संगीत गायक दल  समवेत गान गाते हैं-उत्सव के प्रारम्भ तथा भिन्न-भिन्न डिग्री प्रदान करने वाले कार्यक्रम के पूर्व में। ग्रेजुएट डिग्री पाने वाले छात्रों को डिग्री प्रदान करने से पहले सभापति (हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति) घोषणा करते हैं। आज से आप लोग शिक्षित लोगों की गोष्ठी में शामिल होने जा रहे हो।
उसके बाद हार्वर्ड  परंपरा की सबसे महत्वपूर्ण डिग्री प्रदान की जाती है। इन्हें Honorary Degree(मानद डिग्री) कहा जाता है। हमारे Honoris cause की डिग्री की तरह हार्वर्ड के इतिहास में अनेक विशिष्ट लोगों को यह डिग्री दी गई है। उनमें से कई नाम है। बेंजामिन फ़्रेंकलिन को पहली मास्टर ऑफ आर्ट्स डिग्री वाली मानद डिग्री दी गई। जार्ज वाशिंगटन इस डिग्री को पाने वाले द्वितीय व्यक्ति थे। उन्हें विश्वविद्यालय ने डॉ ऑफ लॉं की उपाधि प्रदान की थी। पहली बार किसी महिला को यह सम्मान 1955 में दिया गया था,जिसका नाम था हेलेन किलर।
डिग्री प्रदान करने के बाद सभी डिग्रीधारी अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर समवेत स्वर में हार्वर्ड- प्रार्थना गाते हैं। यह प्रार्थना लैटिन में लिखी गई है और विगत 300 वर्षों से यही परंपरा चली रही है। जिसमें विश्वनियंता से तीन आशीर्वाद मांगे जाते हैं :-
 (1)विश्वविद्यालय के ट्रस्टी नैतिक हो,
(2)अध्यापकवृंद बड़े विद्वान हों एवं
(3)विश्वविद्यालय की विविध योजना के लिए भामाशाह और अधिक उदार हों।

दीक्षांत समारोह के तीन सौ साल का इतिहास की लिखने वाली सिंथिया रोसाना कहती है: उपनिवेश शासन काल में डिग्री वितरण समारोह समापन के बाद इस समारोह में भाग लेने वाले अतिथिगण,अध्यापक और डिग्री पाने वाले विद्यार्थी केंब्रिज कॉमन(एक छोटा सा सर्वसाधारण पार्क)में खोले गए खाने-पीने के बूथों में जाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और प्रचुर मात्रा में परोसी गई दारू का लुत्फ उठाते थे। बहुत छोटे-छोटे नाटक भी छोटे-छोटे मंचों पर बच्चों द्वारा अभिनीत होते रहते थे।”
अब और विश्वविद्यालय के बाहर केंब्रिज कॉमन में जाने  की आवश्यकता नहीं है। रो सन्नो कहती है,”बहुत शृंखलित इस समारोह में मुर्गों का प्रचुर मांस,आलुओं के ढेर,सलाद,पहाड़ जैसे आइसक्रीम और समुद्र तुल्य शराब और मृदुपानीय द्वारा अध्यापक,छात्र,समवेत अतिथि वृंद को प्रसन्न किया जाता है। सन 1811 में रेवरेंड गिलमेन की उक्ति चरितार्थ होती है-  इस प्रकार अनवरत प्रवाह बहता जाता है अतीत के इतिहास से नए युग की ओर, बहता जाता है अतीत के इतिहास से नए युग की ओर,जिस युग की सभी को प्रतीक्षा है।”
सन 1642 के प्रथम दीक्षांत समारोह में तत्कालीन विश्वविद्यालय के सभापति रेवरेंड हेनरी डंस्टर ने घोषणा की थी,     हमने जो लक्ष्य रखे थे,आज उसका कुछ   अंश पूरा करने जा रहे हैं।  उस वर्ष से रो सन्नो के इतिहास के अनुसार 9 स्नातक डिग्री प्राप्त कर रहे थे14 नए छात्र और उनके माता-पिता तथा अतिथि समेत कुल मिलाकर समारोह में 50 लोग उपस्थित थे। डंस्टर ने कहा: आज हम सभी मिलकर सीखने के आनंद का उत्सव मना रहे हैं।” जिन लोगों को डिग्री मिली उन्हें कुछ  शब्द बोलने के लिए आमंत्रित किया गया- केवल अंग्रेजी में नहींलैटिन,ग्रीक या हिब्रू भाषा में भी।
सैमुएल इलियट मारिसन की भाषा में, सब खाना,आमोद-प्रमोद और उत्सवमुखर दिन सभी को याद दिलाता है कि हार्वर्ड  से डिग्री प्राप्ति की है “ a rite of passage”-अर्थात्  जीवन का एक विशेष अध्याय।”
वास्तव में विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह देखने और उनमें भाग लेने वाले,माता-पिता,डिग्रीधारी अध्यापक सभी से बातचीत करने का अवसर पाना मेरे लिए अविस्मरणीय स्मृति बनकर रहेगी।
हार्वर्ड पर मेरा लेख खत्म होने से पहले आपका ध्यान दो घटनाओं की तरफ आकर्षित करना चाहूँगा। पहला,हार्वर्ड  के पहले निर्वाचित अध्यक्ष(हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति) लरेंस समर्स निश्चित रूप से सुदक्ष कुलपति थे,मगर महिलाओं के बारे में उनके किसी मंतव्य के कारण उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा था और उनके खिलाफ बढ़ते विरोध के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। मगर अध्यापन दक्षता,हार्वर्ड  के लिए कोष-संग्रह की दक्षता और शैक्षिक प्रशासन क्षेत्र में ऐसे बहुत ही कम प्रेसिडेंट हार्वर्ड में हुए होंगे। सन 1987-88 अर्थात् मेरे प्रवास के दौरान वहाँ के प्रेसिडेंट बोक भी हार्वर्ड  के दीर्घ इतिहास में अन्यतम सुदक्ष प्रेसिडेंट थे। लरेंस समर्स के इस्तीफे के बाद कोई महिला अध्यक्षा बनी थी। अखबार,टेलीविज़न आदि के संवादों में बहुत चर्चा में आई थी क्योंकि वह चार सौ से अधिक वर्षों के इतिहास में पहली महिला अध्यक्षा थीं।
दूसरी घटना थी हार्वर्ड  में नए खोले गए पाठ्यक्रम पॉज़िटिव साइकॉलजीकी अभूतपूर्व छात्रप्रियता। आठ सौ  विद्यार्थियों ने इस कोर्स में नामांकन किया है और अनेक विद्यार्थियों को सीट भी नहीं मिल पाई है। सैंडर्स थिएटर(विश्व के सबसे बड़ा प्रेक्षागृह जहां चर्चिल,रुसवेल्ट,मार्टिन लूथर किंग ने व्याख्यान दिए थे,जहां मेरे समय में राजीव गांधी ने व्याख्यान दिया था) टी-शर्ट पहने इस कोर्स के डायरेक्टर को सर्वसाधारण बैठने की जगह नहीं मिलने के कारण  बाहर में  बड़ी स्क्रीन और माइक पर सुन रहे थे। वे टाल-बेन-साहा के पूर्वतन इस्राइल के पूर्व सैनिक और हार्वर्ड के पूर्व छात्र हैं। उनका कोर्स शुरू किए केवल तीन वर्ष हुए थे।
सकारात्मक मनोविज्ञान पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आनंद या सुख की तलाश करना है। पहले तो मेरे मन में आया कि  हमारे समय के बहुत बुद्धिमान जिम्मेदार और आध्यात्मिक गुरुओं के उपदेशों का मूलसार भी यही है, तो फिर यह कोर्स किस तरह से उनके उपदेश, प्रवचन या रचनाओं से भिन्न या महत्त्वपूर्ण है?
समकालीन व्यक्ति और समाज की निराशाजनक स्थिति के बारे में बहुत कुछ   चर्चा हो चुकी है। दोनों व्यक्ति और समाज जीवन में आशा और आनंद की पुनः प्रतिष्ठा करना ही आध्यात्मिक चिंता और चेतना का मुख्य लक्ष्य है। श्री श्री रविशंकर की जीवन जीने की कला (आर्ट ऑफ लिविंग) में उसी सत्य पर ज़ोर देने की चेष्टा की गई है।
बेन साहार के कोर्स का मुख्य उद्देश्य है-हम जीवन के प्रति निराशावादी,वितृष्णासंपन्न,अत्यधिक भौतिकवादी दृष्टिकोण के शिकार हो गए हैं। जीवन ने हमें जो कुछ दिया है,उसके लिए पहले उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। विषाद आत्म-सर्वस्व या हमारे अहंकार से ही पैदा होता है। व्यक्ति के हिसाब से हमें अपने जीवन में आशावाद को यथोचित स्थान देना चाहिए,दूसरे लोगों की तरफ भी देखना चाहिए और अपने भीतर सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करना चाहिए।
बेन साहार का कहना है कि विगत 50 सालों में सारे विश्व में ‘अवसाद’ सबसे खतरनाक मानसिक रोग बन गया है। इसलिए इतने अधिक डाक्टर,चिकित्सा पद्धति और खर्च हो रहा है जो हृदयरोग,कैंसर या एड्स के इलाज के समतुल्य है। पिछह ले 50 सालों में यह बीमारी लगभग 30 गुना बढ़ गई है। पाठ्यक्रम में विभिन्न विषय-वस्तु इस प्रकार है :-  
·         पहला, दूसरों को देना सीखो,दूसरों की सहायता करना सीखो। वास्तव में,यही मानवता है।
·         दूसरा,जीवन में आपको जो भी काम करना पड़े,उसे आनंद से करते हुए जीवन का अर्थ खोजना चाहिए।
·         तीसरा,जीवन ने हमें जो खुशी दी है और जो दूसरों से मिली है,उनकी सहायता करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। बल्कि यह नहीं सोचना चाहिए कि आपको जो मिलना चाहिए था, उससे कम मिला है। आपको अपने जीवन तथा दूसरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहिए।
·         चौथा,हमारा जीवन,कर्मप्रणाली और रिश्तों को अधिक से अधिक सरल बनाने चाहिए।
·         पाँचवाँ,शरीर और मन के पारस्परिक संबन्धों के बारे में गहन अध्ययन करना और समझना जरूरी है। हमें यह याद रखना चाहिए कि आनंद अपने भीतर से पैदा होता है। हमारा बैंक अकाउंट,संपत्ति या शक्ति पर यह बिलकुल निर्भर नहीं करता है। बेन साहार जब हार्वर्ड में पढ़ रहे थे,तब वह अपने जीवन के कुशल खिलाड़ी थे। उनके जीवन में दुखी होने का कोई भी कारण नहीं था। ऐसा वे खुद कहते हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह इज़राइली वायु सेना में भर्ती हो गए। सामाजिक जीवन में उनकी खूब इज्जत थीउनके बहुत दोस्त भी थे। वे कहते हैं कि इतना सब-कुछ   होने के बावजूद उन्हें अपना जीवन कुछ अपूर्ण लग रहा था। कुछ दुख की छाया,अवसाद की छाया मन के आकाश पर हमेशा छाई रहती थी। मानसिक मेघमुक्ति और जीवन में आनंद पाने के लिए उस दिन से उन्होंने आत्मानुशीलन और अध्ययन द्वारा ज्ञान अर्जित करने में अपने आपको निमग्न कर दिया।         





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