19॰ हार्वर्ड से एक और भ्रमण: मेक्सिको
19॰ हार्वर्ड से एक और भ्रमण: मेक्सिको
हार्वर्ड जाने से
पहले मैंने मैक्सिको के साहित्य, संस्कृति, परंपराओं और आधुनिकता के द्वंद्वात्मक विषयों पर बहुत कुछ
पढ़ा था और जाना था। मेक्सिको के प्रसिद्ध कवि ओक्टेवियो पाज़ जब दिल्ली में
मेक्सिको के राजदूत थे, तब उनसे मेरा परिचय हुआ था और धीरे-धीरे हमारी दोस्ती सघन होती गई। उनकी
कविताओं के साथ-साथ मेक्सिको की वर्तमान और अतीत स्थिति के बारे में भी उनसे काफी
जानकारी मिली थी। मैंने ऑक्टेविओ के साथ अपने संबंधों पर इस पुस्तक में अन्यत्र भी
चर्चा की है।
हार्वर्ड प्रवास के दौरान मेक्सिको में हमारे राजदूत श्री
के॰टी॰सातारवाला के साथ मेरा पत्राचार हुआ। वह 1973-74 में ओड़िशा में
राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल बी.डी.जत्ती के दो सलाहकारों में से एक थे। उस समय
मैं स्वास्थ्य विभाग का सचिव था। वे स्वास्थ्य विभाग के कार्यों के भी सलाहकार थे।
स्वास्थ्य विभाग जैसे जटिल विभाग के प्रबंधन में श्री सतारावाला और तत्कालीन मुख्य
सचिव श्री रामकृष्णन ने मेरी बहुत मदद की थी। कहने में कुछ संकोच नहीं है कि श्री
सतारावाला मेरा काफी आदर करते थे, एक बार राज्यपाल ने मेरी अनुपस्थिति में उनके द्वारा सराहना करने की बात
बताई थी। देखने में वह साधारण, लंबे,गोरे और स्पष्टवादी
व्यक्ति थे। भुवनेश्वर से जाने के बहुत दिनों बाद वह मैक्सिको में भारत के राजदूत
बने। पत्राचार में उन्होंने मुझे अपने
निजी अतिथि के रूप में मेक्सिको के लिए आमंत्रित किया। वह मेरी साहित्य और
संस्कृति के प्रति रुचि और कमजोरी से अवगत थे। वह खुद भी
साहित्य-प्रेमी थे,खुद भी लिखते थे। उन्होंने मुझे लिखा था कि वे मेक्सिको के लेखकों, आलोचकों और
कलाकारों के साथ मेरी भेंट कराने हेतु सारे इंतजाम कर देंगे। अंतत: मेरी भी इच्छा
हुई मैक्सिको में कम से कम आठ-दस दिन रहकर बहुत कुछ देखने, एक प्यारी संस्कृति
और एक समाज को प्रत्यक्ष रूप से समझने का प्रयास करने की। हम दोनों के चाहने पर भी, एकाध बार योजना
बनाने पर भी मैं हार्वर्ड के सरकारी कार्यक्रमों के कारण वहाँ नहीं जा सका था। श्री सतारावाला का मेक्सिको से स्थानांतरण का
समय भी हो गया था, उनके सामान-पत्र बांधने पर भी वह मुझे वहाँ खींच रहे थे। लेकिन मुझे
अच्छा नहीं लग रहा था, मन नहीं बन रहा था।
इतने उच्चकोटि के
भद्र व्यक्ति के मैक्सिको छोड़ने की तैयारी के समय मेरा वहाँ अतिथि बनना ठीक नहीं
लग रहा था। कोई बहाना बनाकर मैं वहाँ नहीं गया था। उन्होंने अंतिम पत्र में लिखा
था कि उन्होंने मेरे पसंदीदा कवि ओक्टावियो, होमेरो आरिजिस, एल्सा क्रॉस और कुछ
अन्य लोगों को मेरे आगमन के बारे में बता दिया था।
ऐसा ही हुआ। उनके मेक्सिको
छोडने एक महीने बाद मैं वहां गया था। मेरे स्वीडिश मित्र मार्टिन एल्वुड अक्सर मेक्सिको जाते थे, वे वहाँ के
साहित्यिक वातावरण से काफी परिचित थे, कभी-कभी तीन-चार महीने वहाँ रुक भी जाते थे। उनके
शब्दों में- “मेक्सिको मेरा दूसरा घर है” । उन्होंने मुझे कहा, अगर हम दोनों एक ही
समय मेक्सिको जाएंगे तो बहुत अच्छा रहेगा। ऐसा ही हुआ।वे स्टॉकहोम से आए। मैं
टेक्सास में शोधार्थी अपने भतीजे के साथ गया और हम कम किराए वाले होटल में रुके। हमारे पहुँचने
से एक दिन पहले मार्टिन वहाँ पहुंच गए थे। जितना संभव था, अलग-अलग स्थानों पर
हम एक साथ घूमने गए। हम बस से कुवारवाका गए। हमने एक साथ ग्वाडालुपे बेसिलिका का
भी दौरा किया।
मैक्सिको नगरी:
क्रांति और संस्कृति का मनोरम शहर
एक सुबह चाय-नाश्ता
करने के बाद हम तीनों कुवारवाका रवाना हुए। चार लाख की आबादी वाला यह शहर वास्तव
में पर्यटकों को लुभाता था, मार्टिन के शब्दों
में 'मैक्सिको के सबसे
आकर्षक स्थलों में से एक' था। यह समुद्र तल से पांच हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस शहर के घरों
के रंग नीले, पीले और गुलाबी हैं, जबकि छह तों पर
पीले रंग की टाइलें लगी हुई हैं। चारों तरफ हरे पेड़ों की भरमार है और शहर
रंग-बिरंगे सुंदर फूलों से सुशोभित है। घरों में बहुत सारे घर हेरिटेज हाऊस
थे, ये केवल गुरुवार के
दिन ही खुलते थे। इसलिए मार्टिन ने हमारे भ्रमण का दिन गुरुवार ही चुना था। मुझे
लग रहा था जैसे घरों के रंग, छतों के टाइलों के लाल रंग और चतुर्दिग
परिव्याप्त प्रभूत
पेड़-पौधों और फूलों के रंग, सभी एक-दूसरे के परिपूरक थे और सभी मिलकर एक अवर्णनीय सौंदर्य की सृष्टि
कर रहे थे। शहर जितना सुंदर था, उतना ही विप्लव का जन्म-स्थान भी।सन 1910 की मैक्सिको क्रांति के अन्यतम
लोकप्रिय नेता एमिलिनो जापटा का यहीं जन्म हुआ था और उनकी क्रांति का नारा था, 'भूमि, स्वतंत्रता और
हासेण्डो को मृत्यु-दंड'। 'हासेण्डो ' जमींदारों का एक
वर्ग था, जो अत्याचारी थे, जिन्होंने गरीब
लोगों की भूमि हड़पकर उन्हें बंधुआ मजदूर बना दिया था। कुवारवाका मोरेलोस प्रदेश की
राजधानी थी और इस अत्याचारी वर्ग का प्राण-केंद्र। जापटा ने अपने ओजस्वी वाणी और
आदर्श द्वारा क्रांति का सूत्रपात करते हुए भूमि सुधार और किसानों के लिए 1911 में भूमि-आंदोलन की
शुरुआत की थी। साथ ही साथ, 1914 में जापटा ने एक
और क्रांतिकारी नेता पंचोविला के साथ मिलकर मैक्सिको नगरी पर कब्ज़ा कर लिया था और
संघीय सेना के इस पर हमले को सुनकर वे पीछे हट
गए थे। शहर के मुख्य चौक पर घुड़सवार एमिलियनो जापटा की कांस्य प्रतिमा लगी हुई है।
संपूर्ण मैक्सिको और स्वाभाविक उनका अपना शहर उन्हें कृतज्ञता से याद करते है।
प्राचीन काल के
अनेक एज़्टेक सम्राट, स्पेनिश आक्रमणकारियों में हर्नन कर्टेस, मैक्सी मिलियन और
कार्लोटा और उन्नीसवीं सदी के मैक्सिको के अन्य शासक वर्ग कुवारवाका की प्रसिद्ध ‘रूपाकामर सम्राट’ होस्बोर्डा सभी के
यहाँ ग्रीष्मकालीन घर हैं। दोनों मैक्सी मिलियन और कार्लोटा के घरों को अब
संग्रहालयों में बदल दिया गया है। अभी भी यह शहर मैक्सिको के कई वरिष्ठ अधिकारियों, विदेशी राजनयिकों
और अमीर लोगों की पसंदीदा जगह है। उन्होंने शहर के बाहरी इलाकों में अपने सुंदर घर
बनाए हैं। मैं, मार्टिन और मेरा भतीजा इस अंचल में बहुत घूमे। शहर के बाहरी
इलाकों में अनेक आधुनिक ‘स्पा’ हैं, जहां शहर के समृद्ध
लोग अपने स्वास्थ्य बनाने के लिए आते हैं। इस तरह के स्पाओं को मैंने पहले भी
काकेशस पहाड़ी,
ब्लैक सी बिच और
हंगरी के पहाड़ी इलाकों में देखा था। बहुत से लोग गर्म पानी के झरनों में स्नान
करने और पारंपरिक दवाइयों का उपयोग करने के लिए स्पाओं में आते हैं। आसपास में कई
छोटे-छोटे होटल और खूबसूरत कैंपिंग एरिया भी हैं। गोल्फ, घुड़सवारी, टेनिस, छोटी कृत्रिम झीलों
में नौकायन और कई जल-क्रीड़ा की सुविधाओं के लिए यह जगह काफी लोकप्रिय है। क्वर्नवाका
से लेकर आसपास दस-बारह वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ये स्वास्थ्यकर स्थान स्थित
हैं। सप्ताहांत दो दिन और अन्य छुट्टियों के दिन मैक्सिको शहर की धूल, धुएं और ट्रैफिक
जाम से मुक्ति पाने के लिए मैक्सिको शहर के लोगों की कतारें लगती हैं। छुट्टियां
बिताने के बाद स्वस्थ तन-मन लेकर वे फिर से विशाल महानगरी में लौटते हैं।
कुवारवाका कैथेड्रल शहर के केंद्र में
स्थित है। यहाँ एक प्रसिद्ध स्मारक है। उसके पास ‘बोर्डा उद्यान’ है। एक फ्रांसीसी
नागरिक होसबोर्डा 1716 में मैक्सिको आए थे और खनन व्यवसाय कर अरबपति बने थे। कहा
जाता है कि उन्होंने तत्कालीन दस लाख मेक्सिको मुद्रा ‘पेसो’ खर्च कर एक
खूबसूरत उद्यान और उसके भीतर वैभव-विलासिता पूर्ण अपना घर बनाया था। उसके मृत शरीर
पास वाले गिरजाघर में सन 1760 में दफना दिया गया था। उनके बाद संभ्रांत मैक्सी
मिलियन और कार्लोटा ने होसबोर्डा की पूरी संपदा का ग्रीष्मकालीन आवास के रूप में
इस्तेमाल किया था। कैथेड्रल,समग्र उद्यान अंचल, उसके भीतर टूटे घर आदि की कुवारवाका की नगर निगम ने जीर्णोद्धार की
योजना बनाई है। नवीनीकरण का काम पहले ही शुरू हो चुका था। देखते-देखते मध्याह्न
भोजन का समय हो गया था। मेरा दोस्त मार्टिन एलवुड इस शहर का पुराना ‘मूषक’ था। पारंपरिक
मैक्सिकीय भोजन के लिए उसने एक रेस्तरां चुना। वहां हमने भोजन किया।
रेस्टोरेंट
कुवारवाका के प्रसिद्ध संग्रहालय के पास था। संग्रहालय पहले हेर्नान कोर्टेस का
महल था। कोर्टेस ने सन 1530 में इस महल की नींव रखी थी और अपनी पसंद के स्थानीय
वास्तुकारों से इसे अनुसार बनाया था। महल की वास्तुकला में स्पैनिश और एज़्टेक
दोनों शैलियां सहजता से देखी जा सकती हैं। वह महल अब अवश्य
वैसा नहीं है,जैसा उसे बनाया गया
था, समय के साथ उसमें कई बदलाव किए गए हैं। अब वहाँ, कुवारवाका और
मेक्सिको के अन्यतम प्रसिद्ध संग्रहालयों
में चित्रकला और भास्कर्य की कारीगरी देखी जा सकती है। मैक्सिको-संस्कृति के परिचायक
के रूप में बहुत सारी वस्तुएँ और उपकरणों की
यहां प्रदर्शनी लगाई गई है। अमेरिका के राजदूत ‘ड्वाइट मूरो’ ने हाल ही में
डिएगो रिवेरा के तीन मशहूर भित्तिचित्र संग्रहालयों को दान दिया है। इन तीनों में
यथा क्रम कोर्टेस द्वारा मेक्सिको सिटी पर कब्जा, मेक्सिको की
स्वतंत्रता संग्राम और सन 1910 मैक्सिको क्रांति यहाँ प्रदर्शित हैं। ‘डिएगो रिवेरा’ और ‘रूफिनो टॉमया’ निस्संदेह
मेक्सिको के सबसे बड़े आधुनिक चित्रकार हैं। भारत के प्रसिद्ध चित्रकार सतीश
गुजराल ने दोनों के बारे में बहुत कुछ लिखा है। खासकर उन्होंने डिएगो रिवेरा के
चित्रों की विशेषताओं पर विशद समालोचना की
है।
डिएगो रिवेरा
मैक्सिको के कालजयी सर्वोत्तम प्रसिद्ध चित्रकार हैं। यह तथ्य मेक्सिको
के निवासियों एवं कला समालोचकों द्वारा स्वीकार्य है। न्यूयॉर्क के महानगरीय
संग्रहालय में प्रदर्शित मेक्सिको के चित्रों के कैटेलोग में ऑक्टेविओ पाज़ ने
डिएगो को उचित सम्मान दिया था। डिएगो की पत्नी फ्रिडा कालो भी खुद प्रसिद्ध
चित्रकार थीं। फ्रिडा का बचपन से पेंटिंग के प्रति लगाव था। लगभग 30 साल पहले उनकी
रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण वह और बाहर नहीं निकल पाती थीं। डिएगो ने उससे
प्रेम विवाह किया था। फ्रिडा के दुर्भाग्य से वह बहुत मर्माहत हुआ था। डिएगो की
फ्रिडा से पहली बार मुलाकात उसके कॉलेज में पढ़ते समय हुई थी। दुर्घटना के बाद
अपने पारिवारिक ऋणों का भुगतान करने के लिए फ्रिडा ने अपने कुछ चित्र
बेचे थे।
इस बारे में उसने
डिएगो की राय मांगी थी। फ्रिडा के प्रति अपनी आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारी के
बावजूद डिएगो एक दूसरी औरत से प्यार करते थे, वह स्वयं वामपंथी दर्शन में विश्वास रखते थे।
उनके मार्क्सवादी चित्रों में कई राष्ट्र-विरोधी होने के बावजूद उन्होंने अपने
आपको भित्तिचित्रों से दूर नहीं किया था, इससे भी ज्यादा उन्होंने अपने घर में निर्वासित
रूसी दार्शनिक लियॉन ट्रॉट्स्की को आश्रय प्रदान किया था और अपने जीवन के आखिरी
चरण में फ्रिडा को तलाक देकर अन्यत्र शादी की थी। इतने बड़े कलाकार द्वारा फ्रिडा
के प्रति उनका अन्याय समकालीन कलाकारों को अच्छा नहीं लगा था। मैक्सिको प्रवास में
मैंने डिएगो और फ्रिड़ा के लगभग सारे चित्र देखे थे। उनके चित्रों में अनेक अपने
स्वयं और अपने परिवार के सदस्यों की पेन पोट्राइट थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग, उनकी रीढ़ की
हड्डी के लिए प्रयोगात्मक सर्जरी और धातु की छह ड़ से जोड़ते समय उनके चेहरे पर
व्याप्त दुःख और आँखों से बहते आंसुओं की चित्रकारी ने मुझे अभिभूत कर दिया था।
चित्रकला ही फ्रिड़ा के शारीरिक और मानसिक पीड़ा से उबरने के लिए सहारा था। बाद में
मैंने फ्रिड़ा के जीवन पर आधारित एक बहुत सुंदर फिल्म देखी थी, जिसमें मैक्सिकीय
फिल्म नायिका सलमा हायेक ने फ्रिड़ा की भूमिका निभाई थी। अल्फ्रेड मोलिना ने डिएगो
रिवेरा का अभिनय किया था और प्रसिद्ध नायक एंटोनियो बैन्डरस ने तत्कालीन प्रसिद्ध
चित्रकार की भूमिका निभाई थी। इस संग्रहालय में एक और चित्रकार रॉबर्टो रियो के चार
भित्तिचित्र लगे हुए हैं।रेस्तरां में खाने से पहले मार्टिन ने मुझे पूछा था कि
क्या मुझे मैक्सिकीय खाना पसंद है या नहीं। उत्तर में मैंने उन्हें बताया कि हार्वर्ड
प्रवास के दौरान चाइनीज खाने के बाद दूसरे
नंबर पर मैक्सिकीय खाना मुझे अच्छा लगता था। इसलिए हमने कुछ प्रसिद्ध मेक्सिकीय
व्यंजनों का आदेश दिया। मैंने मार्टिन से कह रखा था कि मैं गोमांस के अलावा सब-कुछ
खाता हूँ। पहले जो सूप हम पी रहे थे, उनमें शकरकंद, मूली, कटे प्याज, हरी मिर्च, काली मिर्च और कुछ स्थानीय
सब्जियां डाली हुई थीं। यह शाकाहारी सूप मुझे बहुत स्वादिष्ट लगा था। मेक्सिकीय
खाद्यों में टोर्टिला सबसे प्रिय और अपरिहार्य था। यह मक्का के चूर्ण से तैयार
किया जाता है, इसे बनाते समय
स्थानीय तेल का प्रयोग किया जाता है। गर्म-गर्म खाने पर बहुत अच्छा लगता है। उसके
साथ हमने 'रिफ्रोटो' खाया, जिसमें बिन और अन्य सब्जियां मिली हुई थीं। सलाद में 'साल्सा’ डालकर कटे प्याज, टमाटर, मिर्च और काली
मिर्च दी गई थी। 'साल्सा' तेज मिर्ची का सॉस होता है।
मार्टिन की सलाह से टोर्टिला में तरल पनीर मिलाकर खाया। मार्टिन खुद शाकाहारी था,मगर उसने मेरे लिए
बहुत समय से नींबू निचोड़ कर रखे झींगे और छोटी मछह लियों की सब्जी मँगवाई,जिसमें टमाटर, प्याज, धनिया के पत्ते और
एवोकादो भी डाले गए थे। मार्टिन ने बताया कि
यह मैक्सिको की लोकप्रिय मछह ली की तरकारी थी।
बहुत पहले से मार्टिन को पता था कि मुझे मछह ली पसंद है। अंत में उसने प्रसिद्ध मैक्सिकीय खाद्य 'एनचिलडा ' का आदेश दिया। टोर्टिला
में प्याज, टमाटर और पनीर
डालकर शाकाहारी एनचिलडा तैयार किया जाता है। मांसाहारी एनचिलडा में चिकन डाला जाता
है।खाने में कुछ हद तक हमारे शाकाहारी और मांसाहारी रोल की तरह
लगते है। ये सब खाने के बाद पेट में और जगह नहीं बची थी। मार्टिन ने मुझे
मैक्सिकीय मिठाई खाने के लिए उकसाया। किन्तु वहाँ की मिठाई के बारे में मेरी अच्छी
धारणा नहीं थी। शाकाहारी मार्टिन से मैंने अनुरोध किया
कि वह अपनी पसंद की कुछ मिठाई खा लें। उसने टिन वाले मिश्रित फल मंगवाया, जिसे चीनी की चाशनी
के साथ खाया जाता है। दोपहर के भोजन में
हमें काफी समय लगा। यह खुला रेस्तरां था, कुछ हिस्सा छह त के नीचे था और तो कुछ बाहर।
अच्छी हवा बहने के कारण हमने बाहर बैठकर खाना खाया। खाना खाते समय सड़क के किनारे
छोटे-छोटे दल बाजे बजाते हुए आ-जा रहे थे। अंत में, अंजीर की छाल पर
बनी पेंटिंग लेकर एक हॉकर हमारे पास आया। उसके पास छोटे-बड़े कई ऐसे चित्र थे।
मुझे पहली बार पता चला कि यह मैक्सिको की एक स्थानीय कला है।जिसे 'आमाते' चित्रकला के नाम से
जाना जाता है। मार्टिन ने कहा कि नृतत्व विशेषज्ञ स्ट्रोमबर्ग ने ‘आमाते ' चित्रकला पर एक
बहुत बड़ी पुस्तक लिखी है। इन चित्रों को फ्रेम में जड़कर दीवारों पर लटकाया जाता है। कुछ हद तक
हमारे देश की पट्टचित्र की तरह इस ‘लोक चित्रकला’ का आधुनिक रूप मैक्सिको में काफी लोकप्रिय है एवं विदेशों में बहुतायत
से इनका निर्यात किया जाता है। इनके स्थानीय चित्रकार युगों से कुवारवाका और उसके
आस-पास के इलाकों में रह रहे हैं। कुवारवाका की सड़कों पर वे घूम-घूमकर इन्हें बेचते
हैं। मार्टिन ने कहा कि प्राचीन काल में 'नहुआ' संप्रदाय ‘आमाते ‘ चित्रकारी में
पारंगत हुआ करता था, उनकी चित्रकला अभी भी संग्रहालयों में देखी जा सकती है। मैंने थोड़े
पैसों से अपने लिए एक पेंटिंग खरीदी।
मेक्सिको सिटी से लौटने के बाद मुझे आधुनिक कला दीर्घाओं में बड़ी संख्या में ‘आमाते ' चित्र देखने को
मिले। ऑक्टेविओ पाज़ ने 'मैक्सिकन आर्ट के तीन हजार साल’ नामक कैटलॉग का
संपादन किया था, जिसमें इस चित्रकला के बारे में बहुत कुछ जानकारी
दी गई है। खाना खाने के बाद हमने बस पकड़ ली, मार्टिन ने कह रखा
था ग्वाडालुपे बेसिलिका की तरफ जाने से अच्छा होगा, क्योंकि वह
मैक्सिको नगरी का अन्यतम प्रसिद्ध स्थान है।
गुआडालूपे बेसिलिका
मार्टिन, मैं
और मेरा भतीजा गुआडालूपे में बस से नीचे उतरे। यह जगह शहर के
केंद्र से उत्तर में चार मील की दूरी पर है। हर साल 12 दिसंबर को लगभग तीन-चार लाख मेक्सिको के निवासी गुआडालूपे बेसिलिका में इकट्ठा होते
हैं, सोलहवीं सदी के एक
मिराकल (चमत्कार) जयंती
दिवस पर त्योहार मनाने के लिए। सोलहवीं शताब्दी
में एक अति साधारण
पारंपरिक इंडियन
किसान ‘जुआन डिएगो’ को
‘वर्जिन मैरी’ के दर्शन हुए थे।
12 दिसंबर को हमारे
देश के तीर्थयात्रियों की तरह पूरे मेक्सिको से गुआडालूपे के शिष्य वर्जिन मैरी के एक विशिष्ट चित्रपट्ट के सामने सिर नवाने के लिए बेसिलिका आते हैं। जुआन डिएगो ने उस मिराकल को देखने के बाद मन ही मन वर्जिन मैरी के
बारे में सोचा था और अगली सुबह उनकी तस्वीर
उसके छोटे कुटीर में मिली थी। जुआन डिएगो का विश्वास था
कि यह वहीं चित्र
था,
जो उसने मिराकल में देखा था। मार्टिन ने कहा, "केवल मेक्सिको के ही
नहीं वरन लैटिन अमेरिका के प्राय सभी देशों से 12 दिसंबर को बहुत
पर्यटक यहां इकट्ठा होते हैं, साल भर बहुत यात्री गुआडालूपे
में आते हैं। जैसे हर धार्मिक मुसलमान
की उनके जीवन में कम से कम एक बार हज करने की इच्छा को होती है, मुसलमानों की मक्का-यात्रा की तरह हर
मैक्सिकन कैथोलिक अपने जीवन में कम से कम एक बार गुआडालूपे की यात्रा करने की इच्छा रखते हैं।" साधारण मेक्सिकोवासी स्पेनियों के आक्रमण से मेक्सिको में ईसाई
धर्म आया है, इस पर विश्वास नहीं करते
हैं। मेक्सिको के प्रसिद्ध कवि होमेरो आरिडिहिस के घर में रात्रिभोज में कवयित्री
एल्सा क्रॉस ने कहा था, "वर्जिन, गुआडालूपे ने मेक्सिको के लोगों को ईसाई धर्म दिया है।अर्थात् ईसाई धर्म यूरोप
के स्पेनियों ने मेक्सिको में नहीं लाया था, यह
मेक्सिको का अपना और गुआडालूपे ‘वर्जिन’
का उपहार है।"
मेक्सिको के
निवासियों के धार्मिक विश्वासों को
समझना आसान नहीं है। कैथोलिक उपन्यासकार ग्राहम ग्रीन
मेक्सिको में आकर वहां
के ईसाई लोगों के प्रति हुए अन्याय का विशद अध्ययन किया था। वे अपनी पुस्तक 'द लॉ-लेस
रोड्स' में कहते हैं : "अधिकांश पादरी चर्च
का काम छोडकर दूसरे काम करने लगे थे। 1938 में पूरे मेक्सिको में केवल
पाँच सौ पादरी थे,जो धर्मयाजक काम देखते थे।
यहां तक कि रविवार का मास
(maas) कार्य भी
गुप्त रूप से आयोजित किया जाता था।"
इस प्रकार मेक्सिको
में ईसाई धर्म विस्मयकारी और कुछ हद तक दुर्बोध
था। अधिकांश अंचलों में स्थानीय देवी-देवताओं उनके चमत्कार लोगों के जीवन को
प्रभावित करते थे।
हमारे देश की तरह मेक्सिको वासी अक्सर अपने बहुत से कार्यों के लिए अपने देवी-देवताओं से मन्नतें मांगते थे। बीमारियों का इलाज, लड़की के लिए अच्छा वर, बांझ महिला के लिए बच्चे, अपने
क्षेत्रों में भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं घटित
नहीं होने जैसे सभी कार्यों के लिए मन्नतें मांगी जाती थीं। अनेक गिरजाघरों में
एक-एक बॉक्स रखा जाता था, जिसमें श्रदालु अपनी मन्नत कागज पर लिखकर बॉक्स
में डाल देते थे। उस कागज को लेकर पुजारी स्थानीय देवी-देवताओं के पाँव के नीचे रख
देते थे और भक्त की मनोकामना पूर्ण हो, कहकर आशीर्वाद मांगते थे।
मार्टिन ने कहा कि कुछ अंचलों में स्थानीय लोगों
की अगर
इच्छाएं पूरी नहीं होती हैं तो वे देवी-देवताओं के प्रति अपना
व्यवहार बदल देते हैं। स्थानीय निवासियों की इच्छा-पूर्ति
नहीं करने
के कारण मेक्सिको के
केन्द्रांचल में ‘सेंट एंटनी’
की मूर्ति उल्टी कर दी गई,अर्थात् सिर नीचे और
पैर ऊपर। दूसरे शब्दों में, भक्त भी देवी-देवताओं को दंडित
कर सकते हैं।
‘गुआडालूपे' स्थानीय
ईसाईयों की सर्वोच्च देवी है। गुआडालूपे के वर्जिन को समझे बिना मेक्सिको के
धार्मिक विश्वासों और कैथोलिक ईसाई धर्म को नहीं समझा जा सकता है। उसकी तस्वीर
मेक्सिको में हर जगह पर है
- रेलवे स्टेशनों पर, बसस्टैंड में बसों और कारों के
अंदर, रेस्तरां में, शराब की दुकानों पर, विभागीय दुकानों
में। इसलिए गुआडालूपे'
का बेसिलिका अजीब तीर्थ है। जुआन डिएगो के वर्जिन मैरी मिराकल का पोप अलेक्जेंडर सप्तम ने सन 1663 में प्रत्यक्ष सत्य कहकर
घोषणा की थी। इस जगह का नाम "टेपेयाक" था। छोटी पहाड़ी पर जहां जुआन डिएगो
सैंटियागो चर्च में प्रार्थना करने
गया था। अचानक उसने आकाशवाणी सुनी एक प्रश्न
के साथ: "हे मेरे बेटे जुआन, तुम कहाँ जा रहे हो?" उसका
उत्तर सुनने के बाद जुआन ने देखा समग्र पहाड़ी अंचल एक अद्भूत रोशनी से चमक उठा था।
वह उस प्रकाश के स्रोत की ओर बढ़ा। फिर से आकाशवाणी हुई, "मैं वर्जिन मैरी हूँ, पवित्र भगवान की
मां।" उस आवाज ने उस जगह पर
चर्च बनाने और मेक्सिको सिटी के तत्कालीन बिशप को अवगत कराने का आदेश दिया। जब
बिशप ने इस बात का
सबूत मांगा तो जुआन
टेपेयाक पहाड़ी पर फिर से प्रार्थना करने गया।
प्रार्थना के जवाब में पूरी पहाड़ी गुलाब उद्यान में बदल गई। उस बगीचे से आवाज़ आई, इन गुलाब
फूलों का गुच्छा तोड़कर तुम बिशप को उपहार दो। जुआन ने ऐसा ही किया, बिशप जुआन से पुष्प-गुच्छ स्वीकार
करते समय वर्जिन
मैरी का एक
चित्रपट्ट बाहर
निकला।
अभी भी बेसिलिका
में वर्जिन मैरी का वह चित्र है। बेसिलिका में बहुत बार बैठकर हमने आते-जाते
यात्रियों की ओर देखा। चित्र में वर्जिन मेरी प्रतिपदा के चाँद के ऊपर खड़ी हुई है,उसके चारों ओर आलोक
आभा, नीली पोशाक, यहाँ-वहां चमकते
सितारे, एक तरफ झुका सिर, अधखुली आँखें और चेहरे पर करुणा और दया के सुंदर भाव। इस
मूर्ति को लेकर पहले एक बेसिलिका का निर्माण हुआ था। उधर यह चित्र रखा गया था।
टेपेयाक पहाड़ी पर मेट्रोपॉलिटन कैथेड्रल मेक्सिकोवासियों के लिए तीर्थ-स्थल बन
गया। यह कैथेड्रल बहुत छोटा था और उसके खंडहर अभी भी हैं। सन 1709 में टेपेयाक
पहाड़ी की तलहटी में एक बड़ा और भव्य कैथेड्रल बनाया गया। सन 1895 में पेरिस में
सोने और बहुमूल्य रत्नजड़ित मुकुट बनाकर यूरोपीय कैथोलिकों द्वारा मेक्सिको को दान
किया गया। वह सुंदर मुकुट अब वर्जिन मैरी के मस्तक की शोभा बढ़ा रहा है। 1904 में
गुआडालूपे चर्च को रोम के वेटिकन ने बेसिलिका की मर्यादा दी। टेपेयाका पहाड़ी की
तलहटी में जिस भित्तिभूमि पर बेसिलिका खड़ी थी, वह धीरे-धीरे दबने
लगी। प्रतिवर्ष अधिक से अधिक दबने के कारण बेसिलिका एक ओर झुक गई, लाखों मुद्रा
(पेसो) खर्च करने पर भी इसे सीधा नहीं किया जा सका। मेक्सिको के लोगों के लिए जमीन
का दबना एक अन्यतम अभिशाप था। यह पहले भी ही कहा गया है कि मेक्सिको सिटी एज़्टेक
युग की प्रसिद्ध झील और टेनोच्टिट्लान शहर के खंडहरों पर खड़ा है। जो भी हो, मेक्सिको वासियों
ने 1970 में निर्णय लिया कि वर्जिन मैरी या वर्जिन गुआडालूपे के लिए नए बेसिलिका
का निर्माण करना आवश्यक है। पुराने बेसिलिका से कुछ दूरी पर
नए बेसिलिका का निर्माण 1976 में पूरा हुआ, वेटिकन की अनुमति
के बाद अब यहाँ पूजा-पाठ होता है। भीतर में गर्भगृह बहुत ही विशाल है। मैंने
दुनिया में कहीं और ऐसा बेसिलिका नहीं देखा। वृत्ताकार गर्भगृह की वास्तुकला
अत्याधुनिक है। यहाँ दस हजार लोग एक साथ प्रार्थना कर सकते हैं। मुझे लगा कि यह एक
विशाल कॉन्सर्ट हॉल है और देवी का मंडप एक मंच। फर्श सुंदर संगमरमर से बनी है, कई दीवारों पर
स्वर्ण प्रलेपित पत्ते देखे जा सकते हैं।
कृत्रिम रोशनी की सजावट भीतर
में ऐसी है कि क्या दिन,क्या रात- हर समय चंद्रमा की चाँदनी की तरह लगता है। प्रवेश द्वार से देवी-मंडप स्पष्ट दिखाई
देता है और हाल
के भीतर के अनेक खंभों में से कोई भी खंभा इस दृश्य में रुकावट नहीं बनता है।
अनेक विज्ञ लोगों
का मानना है कि गुआडालुपे
बेसिलिका ईसाई धर्म के सामान्य चर्चों की
तुलना में भिन्न पवित्र स्थान है। यह अत्याधुनिक और भव्य है एवं इसके निर्माण में विपुल धनराशि खर्च
हुई है,जिसमें यूरोप और अमेरिका
की भूमिका अनन्य है। रोम के सेंट पीटर, लंदन के सेंट पॉल और जर्मनी में कोलोन शहर के कैथेड्रल की तुलना में गुआडालुपे बेसिलिका अत्यंत विशाल,अत्याधुनिक
और कभी-कभी लगता है कि यह चर्च न होकर कुछ और है।
नया बेसिलिका
पुराने चर्च के पश्चिम में है। पुराने चर्च के दबने के कारणों पर पहले चर्चा हुई है। संपूर्ण
मेक्सिको सिटी एज़्टेक युग की टेक्सकोको झील पर स्थित है। नई बेसिलिका की डिजाइन पूरी तरह से अपारंपरिक है। बेसिलिका के भीतर किए गए रंग काफी
उज्ज्वल हैं और ध्वनिकी भी बहुत
उच्च कोटी की हैं।
बेसिलिका का निर्माण पादरी रैमिरेज़ वास्क्वेज के
निर्देशन में किया गया था। वह नृतत्व राष्ट्रीय संग्रहालय के भी आर्किटेक्ट थे।
गुआडालुपे बेसिलिका मेक्सिको
का सबसे पवित्र स्थान है। रोम के पोप ने 1945 में गुआडालुपे की वर्जिन को 'अमेरिकियों
की आस्था' की
संज्ञा दी है। कई किंवदंतियां और चमत्कार गुडालुपे की वर्जिन से जुड़े
हुए हैं। इतिहास कहता है कि 1629 में मेक्सिको सिटी में एक भयानक बाढ़ आई थी। पूरा शहर पानी से भर गया था, कई मकान ध्वस्त हो गए,
कई लोगों की मृत्यु हो गई थी, इस ऐतिहासिक घटना के
साथ एक अलौकिक मिथक जुड़ा हुआ है। मेक्सिको नगरी के आर्कबिशप ने गुआडालुपे से वर्जिन का चित्र लाकर
मेट्रोपोलिटन कैथेड्रल में पूजा-आराधना की। ऐसा कहा जाता
है कि बारिश बंद हो गई और बाढ़ का
पानी कम होने लगा, शहर को और अधिक नुकसान से बचा दिया गया। ऐसे कई चमत्कार और विलक्षण घटनाएं
वर्जिन के नाम से
जुड़ी हुई हैं।
उन्हें मेक्सिको की अप्रतिद्वंद्वी देवी माना जाता है और उसकी पीठस्थली
को श्रेष्ठ धर्मपीठ के रूप में सर्वसम्मति से माना
जाता है।
टेनोक्चिटलन और
आज़्टेक सभ्यता
सन 1502
में मोक्तेजुमा द्वितीय टेनोक्चिटलन
का सम्राट बने थे।
उन्हें अपने
पूर्ववर्ती सम्राटों की तरह युद्ध करने का शौक नहीं था। इसके
विपरीत,उन्हें
युद्धविमुख,शांति प्रिय और कई पारंपरिक मंदिरों के निर्माता के रूप में जाना जाता था। सन 1519-20, इन
दो वर्षों के दौरान हर्नान कोर्टेस क्यूबा से अपने सैन्य-सामंत के साथ
पहुंचकर आज़्टेक
का
विरोध कर रहे छोटे-छोटे राज्यों की सहायता से टेनोक्चिटलन पर कब्जा करने का प्रयास किया। आज़्टेकों का धार्मिक विश्वास था
कि उनका श्रेष्ठ देवता पूर्व दिशा से आएगा, वह श्वेतकाय होगा और उनका वाहन होगा पंखों वाला घोडा। सरल धार्मिक मोक्तेजुमा
ने पहले आक्रमणकारियों के दल और उनके मुखिया हर्नान को देवता मान लिया। बहुत देर बाद उनका यह भ्रम खत्म हुआ। हर्नान ने मोक्तेजुमा को शांति-संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। शांतिप्रिय राजा ने
इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति व्यक्त की तो
उनकी प्रजा ने भयंकर उत्तेजित होकर अपने सम्राट पर पत्थर,ढेले,तीर-भाले फेंके। इतिहासकारों
के अनुसार इस घटना से सम्राट का दिल टूट गया था और
मर्माहत होने से उनकी मृत्यु हो गई। प्रजा आक्रमणकारियों से छः महीने तक घमासान लड़ाई करती रही।30
जून, 1520 की रात के
दौरान लड़ी गई भयानक लड़ाई में लगभग दो-तिहाई
स्पेनिश सेना को मौत के घाट उतार दी गई।
इतिहासकारों का कहना है कि उनमें से ज्यादातर झील में कूदकर मर गए थे क्योंकि वे लूटपाट में मिले प्रचुर सोने को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। इतिहासकाज्ञ उस रात को 'द
सेड़ नाइट या दुखद रात' की संज्ञा देते है।
हर्नान ने हिम्मत नहीं हारी, फिर
से अपनी सेना इकट्ठी की, अधिक से अधिक हथियार और गोला-बारूद की व्यवस्था की और आज़्टेक
विरोधी छोटे-छोटे राज्यों के मुखियाओं को अपने पक्ष में करने में सफल रहे। 28 दिसंबर, 1520 को उस समय के हिसाब से सबसे बड़ी लड़ाई
हुई। हजारों मेक्सिको वासी मारे गए। सम्राट के भाई और उत्तराधिकारी क्विट-ला-हुअक, जिन्होंने
केवल अस्सी दिन शासन किया था, वे भी युद्ध में मारे गए।
छह ह सप्ताह तक टेनोक्चिटलन के लिए
आक्रमणकारी सेना के खिलाफ मोर्चा
संभाला। झील और शहर को चारों ओर आक्रमणकारी सेना ने
डेरा डाल दिया था। आखिरकार सन 1521 के अप्रैल
में अनाहार और
साहसी लड़ाई में असंख्य मेक्सिकोवासियों की मृत्यु हो गईं। उसके
बावजूद नए सम्राट क्वाटोम, मोक्तेजुमा
के दामाद , आक्रमणकारियों से लोहा लेते रहे।
हर्नान ने शहर में पानी और भोजन की आपूर्ति बंद कर दी। अंत में, 13 अगस्त, 1521 ई॰
को स्पेनिश सेना शहर पर कब्जा करने में कामयाब रही। इतिहासकार बर्नाल डाएज ने पराजय
के बाद टेनोक्चिटलन के परिदृश्य का इन शब्दों में वर्णन
किया है, "हमने लाशों से भरे घर देखे और
कुछ बेचारे बचे हुए मेक्सिको वासी
अब भी उनमें थे, जो चल नहीं पा रहे थे। शहर
ऐसा दिख रहा था मानो वहाँ किसी ने
हल चला
दिया हो। सामने आए किसी भी हरे खाद्य पदार्थ की
जड़ों को खोदकर, उबालकर खाया गया था और
यहाँ तक कि कुछ पेड़ों की छाल को भी। .... "
क्वाटेमोक की दुर्दशा वहीं से शुरू
हुई थी। नाव से
झील को पार करते समय विपक्ष सेना द्वारा
वह पकड़ा गया और बंदी बनाकर उसे हर्नान के सामने लाया गया। 24
वर्षीय उस वीर नायक
और इतिहास प्रसिद्ध
आज़्टेक
सभ्यता के अंतिम
सम्राट ने
अनुरोध किया कि
उसे अपनी तलवार से मारा जाए, मगर उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।
चतुर हर्नान ने उसे गले से लगा
लिया और उसकी
बहादुरी की प्रशंसा
करने लगा। उसका असली मकसद था सम्राट मोक्तेजुमा के विशाल खजाने के ठिकाने का पता करना। शायद उस खजाने को ‘द
सेड़
नाइट’ को लूट लिया गया।
इतिहास
के अन्य युद्धों की तरह आज़्टेक केवल पराजित ही नहीं हुए थे,
वरन प्राचीन इतिहास और पश्चिमी गोलार्ध की अन्यतम प्रसिद्ध सभ्यता समूल नष्ट हो गई थी। सभ्यता का कोई नामोनिशान नहीं बचा
था। इतिहासकारों का कहना है कि 1519 ई॰ से युद्ध के अंत तक शहर के लगभग 95
प्रतिशत लोग युद्ध, प्यास
और आत्महत्या के कारण मर गए थे। इस युद्ध का विवरण सोलहवीं सदी की एक पांडुलिपि में उपलब्ध है। उसमें हर्नान कोर्टेस, आज़्टेक सेना और उनकी पारंपरिक पोशाकें देखने को मिलती हैं।
इतिहास
के पन्नों में नष्ट हुई बहु प्राचीन सभ्यताओं
के कुछ उपादान भविष्य के लिए मिट्टी के नीचे मिल जाते
हैं, आज की
मैक्सिको नगरी टेनोक्चिटलन
के वक्ष-स्थल पर बनी है। लेकिन उस
सभ्यता का
कोई निशान नहीं मिल रहा है। आज़्टेक
और यूरोपीय स्रोतों से बहुत कम सबूत उपलब्ध हुए हैं। आज़्टेक ने टैक्स रजिस्टर, हिसाब खाता,समकालीन
अनेक रिकॉर्ड
बनाकर रखे थे,लेकिन
उनकी लिपि चित्रात्मक थी। इसलिए स्पेनियों के अत्याचारों से बहुत कम बच पाई, बाकी ज्यादातर उन्होंने जला दिए थे।आज़्टेक का साहित्य, संगीत, पारंपरिक गाथा, प्रार्थना-श्लोक सभी मौखिक,अलिखित थे।
इस तरह आज़्टेक
सभ्यता पूरी तरह से मिट गई।सम्राट
मोक्तेजुमा
के गैर-ईसाई होने की आशंका सत्य साबित हुई। हर्नान कोर्टेस के आगमन ने आज़्टेक की
दुनिया और उसका
समृद्ध इतिहास नष्ट कर दिया। सौभाग्यवश स्पेनिश
कब्जे के बाद यूरोपीय लिखित
वर्णमाला की सहायता से स्पेन भाषा और आज़्टेक की 'नहुआटल' भाषा में कुछ हद तक आज़्टेक सभ्यता की परंपरा और संस्कृति लिपिबद्ध की जा सकी। जीवित आज़टेकों ने अपनी मौखिक परंपराओं का
उनके आगे
वर्णन किया। कुछ स्पेनियों ने भी 'नहुआटल' आज़्टेक भाषा सीखकर
अनेक शोध निष्कर्ष लिखे। मगर
वास्तव में अफसोस की बात यह है कि एथेंस के एक्रोपोलिस या
रोम के रोमनफोरम की तुलना में मेक्सिको
नगरी के टेनोक्चिटलन समय की बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। केवल 1960 ई॰ में खुदाई में एक मंदिर-पिरामिड मिला था, जो उनके
देवता ' हिव्जिल पोकटली' के मंदिर का एक हिस्सा था। इस अंचल को ‘तीन संस्कृतियों का प्लाजा’ कहा
जाता है, जिसके आस-पास कई आधुनिक इमारतों का निर्माण किया गया है।
पेरिस की विश्व
प्रसिद्ध सड़क है
‘सांजेलिजे’।
रिफार्मा इस सड़क से अधिक चौड़ी है, और अधिक सुंदर भी। यह सड़क 1860 ई॰ में पेरिस में उसके अनुकरण में बनी थी।
इस विस्तृत
सड़क पर रात को आलोकमालाएँ सुसज्जित
होती हैं और इसका
पार्श्ववर्ती इलाका परियों के देश की तरह लगने लगता है। मेक्सिको
राज्यों का संघ है। इस सड़क
पर प्रत्येक राज्य
को अपने सबसे
प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन मूर्तियों में से अनेकों को मेक्सिको के अधिकांश लोग शायद भूल गए हैं लेकिन उन्हें
अभी भी दो हतभागे,मगर क्रांतिकारी सम्राट
याद हैं, जिन्होंने आज़्टेक
सभ्यता की रक्षा के
लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। उपरोक्त दोनों सड़कों के
चौराहे, जो मैक्सिको शहर की सबसे प्रशस्त और सबसे सुंदर जगह हैं, वहाँ पर है मोक्तेजुमा के छोटे भाई की मूर्ति।
इतिहासकारों का कहना है कि हमलावर स्पेनियों ने 21 अगस्त को सम्राट पर बहुत अत्याचार किए थे और उन्होंने आज़्टेक साम्राज्य
के स्वर्णभंडार के बारे में जानकारी लेने
की बहुत कोशिश की थी, मगर नाकाम रहे थे। इसलिए
21 अगस्त मैक्सिको वासियों
के लिए बहुत बड़ा दिन है और वे मानते हैं कि दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण करने
की बजाय मृत्यु वरण करना ज्यादा श्रेयस्कर
है।
इतने कम समय में इतनी महान सभ्यता कैसे
नष्ट हो गई ? इस विषय पर मेक्सिको के
इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, दार्शनिकों
और लेखकों में तर्क-वितर्क चलते रहते है। यह सच है कि हमलावर स्पेनियों ने आज़्टेक
विरोधी
कई छोटे आदिम समुदायों को अपने पक्ष में ले लिया
था और उनकी संयुक्त ताकत बहुत उच्च स्तर की थी। इसके अलावा,
आज़्टेक लोगों ने जो वीरता का प्रदर्शन किया था,
वह बेहद असंगठित थी और सम्राट मोक्तेजुमा द्वितीय अपनी प्रजा को उचित
नेतृत्व नहीं दे पाए थे। इस पराजय के बारे में मैक्सिको
तथा लैटिन
अमेरिका के महान कवि ओक्टेविओ पाज़ ने कई बातें कही हैं। उनके मत के अनुसार आज़्टेक सभ्यता ने अपने गौरवमय मध्याह्न में ही आत्महत्या
का रास्ता चुन लिया था। मोक्तेजुमा द्वितीय ने स्पेनियों के इस
हमले को दैविक घटना समझा था। उन्होंने यह भी
सोचा कि यह इतिहास के एक अध्याय का अंत था और दूसरे की शुरुआत। ओक्टेविओ की भाषा
में, " वे देवता चले गए क्योंकि उनका
समय समाप्त हो गया था, लेकिन
दूसरी अवधि लौट आई और इसके साथ, दूसरे देवता और दूसरा युग भी। जब हम नवजात आज़्टेक प्रदेश के
युवाओं और शक्तियों पर विचार करते हैं, तो दिव्य विसर्जन
अधिक दयनीय लगता है।"
उनका मानना था कि
लंबे समय तक रोमन या बाइजेमनितयम साम्राज्य दीर्घसमय अतिक्रांत होने
के बाद शायद थक गए थे और मृत्यु का आह्वान सुन पाए थे। दूसरी ओर, ऐसा लगता है आज़्टेक सभ्यता मध्याह्न लग्न में अचानक आगे बढ़ने की प्रवृत्ति,शक्ति, सामर्थ्य की स्मृति को पूरी तरह से भूल गई थी। यह प्रतीत होता है कि स्पेनियों की उपस्थिति ने आज़्टेक समाज, उनके देवताओं का समाज, धार्मिक परंपराओं को नष्ट कर दिया हो। उन्होंने अपनी
प्रसिद्ध पुस्तक 'द लेबरिंथ ऑफ सॉलिट्यूड' में इसके विशद दार्शनिक कारण दर्शाए है:"आज़्टेक लोगों के
एक भाग ने हिम्मत खो दी और आक्रमणकर्ता की शरण
लेने लगे।"
आज़्टेक धार्मिक मान्यताओं में द्वैतवाद हमेशा से रहा है। एक तरफ, प्राचीन आदि देवता ह्यूत्ज़िल पोचटली
युद्ध-बलिदान के
देवता थे,
जिन्होंने कभी हार नहीं मानी। दूसरी ओर, पुरोहितों और सामाजिक वर्गों के
देवता थे कुएतजल कोटल अर्थात् सूर्य देवता, जो स्वैच्छिक मृत्यु को जीवन और समाज का सर्वोत्तम गुण मानते थे। ह्यूत्ज़िल
पोचटली वीरता, शौर्य, आत्मविश्वास और संग्रामी मनोभावों के प्रतिनिधि थे। क्रूरता और बर्बरता
भी उनके कुछ
हद तक दूसरे
गुण थे। दूसरी ओर, पुरोहितों के देवता
युद्ध-विमुख और समर्पण
के देवता थे।
दूसरा मोक्तेजुमा
और उसके दरबारी दूसरे देवता के भक्त बन गए। ऐसे
द्वन्द्वात्मक परिवेश के कारण आज़्टेक सभ्यता इतनी गौरवशाली और इतने विशाल साम्राज्य की हकदार होने
के बाद भी साधारण फूल की तरह मुरझा गई।
इस
विषय पर इतनी लंबी व्याख्या करने का कारण मैं जितनी बार सोचता हूँ आज़्टेक
सभ्यता पूरी तरह से नष्ट हो गई है और
इतिहास के पन्नों में एक झलक भी नहीं तो मुझे हमेशा
अजीब लगता है। ओक्टेविओ पाज़ का विश्लेषण मुझे तर्क-संगत लगता है।
मैक्सिको शहर दुनिया का सबसे बड़ा शहर है। बीसवीं सदी अर्थात् 2000 ई॰ में इस शहर
की आबादी (अपने उपनगरों
को लेकर) दो
करोड़ से अधिक थी।पश्चिमी गोलार्ध में यह
सबसे प्राचीन शहर है। सोलहवीं शताब्दी में जब
हेरनान कोर्टेस और उसकी सेना ने इस शहर पर कब्जा कर लिया था,तब इसकी
आबादी तीन लाख थी। उस समय भी यह दुनिया का सबसे बड़ा शहर था। मैक्सिको नगरी तीन अलग-अलग संस्कृतियों का संगम-स्थल है। चौदहवीं
शताब्दी में आज़्टेक
ने इस शहर को स्थापित किया था, नाम था ‘टेनोक्चिटलन’ । अमेरिकी-इंडियनों को आमतौर पर यहाँ आज़्टेक कहा जाता है। उनमें भी कई समुदाय थे। चौदहवीं शताब्दी में जिस आज्टेक समुदाय ने जिस शहर की स्थापना की थी, उसका नाम था ‘मैक्सिका’।
उसी नाम के आधार पर देश और नगरी का नाम मेक्सिको पड़ा। चौदहवीं शताब्दी में टेनोक्चिटलन शहर की
स्थापना से पूर्व इस
अंचल में
एक से अधिक आदिम जनजातियाँ रहती थीं। मेक्सिका समुदाय के लोगों ने उन्हें टेनोक्चिटलन शहर से खदेड़कर अपने शहर की स्थापना की। मैक्सिका ने पूरे मेक्सिको
घाटी अंचल पर
शासन किया। उस समय घाटी का नाम आनाहुआका था। मेक्सिका लोगों का साम्राज्य मध्य अमेरिका में अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर तक फैल गया था।
‘टेनोक्चिटलन’ की छोटी-छोटी और परस्पर जुड़ी हुई झीलों से घिरे एक द्वीप पर स्थापना हुई
थी। ऐसा कहा जाता है कि मैक्सिको वासियों ने इस जगह की सामूहिक सुंदरता से अभिभूत
होकर इसे
अपनी राजधानी बनाया था। आज़्टेक
(मेक्सिका)
लोगों का
साम्राज्य और संस्कृति विश्व-संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा है। सोलहवीं शताब्दी में हर्नन कोर्टेस और
उसकी स्पैनिश सेना के कब्जे में
आने के बाद वर्तमान
मेक्सिको स्पेनिश संस्कृति का विशेष हिस्सा बन गया।
सोलहवीं शताब्दी में ‘टेनोक्चिटलन’ शहर मलबे के ढेर में बदल गया और आज़्टेक साम्राज्य का पतन हो गया। मेक्सिको नगरी
आज़्टेक
और स्पेनिश संस्कृतियों का एक अद्भूत
सम्मिश्रण है।
शहर के उत्तर-पूर्व में है-तीन संस्कृतियों का प्लाजा। इस प्रकार वर्तमान
मैक्सिको नगरी दफन हुई
झीलों पर स्थित है। शहर समुद्र तल से 7,500 फीट ऊपर है। साधारणतया इसकी जलवायु अच्छी है। यहाँ न तो बहुत गर्म है
और न ही बहुत ठंड। एक दृष्टि से यहाँ की
जलवायु को नित्य बसंत की क्रीड़ाभूमि कहा जाता है। मेक्सिको की
आजादी के बाद उनकी अपनी संस्कृति ‘आज़्टेक’ परंपरा
और ‘स्पेनिश’ परंपरा सहित पश्चिमी सभ्यता से घुल-मिलकर एक सामूहिक
संस्कृति को जन्म देती है। यह समग्र विश्व में बिरल है।
जिन्होंने भी मैक्सिकन सभ्यता और संस्कृति पर लिखा हैं, उन्होंने हमेशा इन तीनों समीकरणों का उल्लेख किया
है। ओक्टेविओ पाज़ ने भी इसके
बारे में उल्लेख किया है। उनका मानना है कि स्पेनिश और आज़्टेक संस्कृतियों के पीछे एक और
संस्कृति है, जिसका परिप्रकाश मैक्सिको नगरी से
30 मील दूर एक परित्यक्त शहर ‘टोओटिहुआना’ हुआ
है। शहर प्राक-आज़्टेक
युग से संबंधित है।
आज़्टेक सभ्यता और टेनोक्चिटलन की महिमा लंबे समय तक नहीं चल सकी। इस सभ्यता की विलुप्त चेतना
आधुनिक मेक्सिकोवासियों को विव्रत करती है।
मुझे लगता है
कि वे लोग हार
और विनाश के दुखद इतिहास को भूलना चाहते हैं। इसलिए शायद राष्ट्रीय संग्रहालय में ही
नहीं या मेक्सिको
की मुख्य सड़क रिफार्मा पर स्थापित मूर्तियों
में ही नहीं बल्कि मैक्सिको में सर्वत्र आज़्टेक और पूर्व
सभ्यताओं को इतिहास का
स्वर्ण युग कहा जाता है। दूसरी तरफ पराजय के
इतिहास को भूलने की चेष्टा जारी है।उदाहरण के लिए, मोक्तेजुमा द्वितीय की मूर्तियां कहीं भी रिफॉर्मा पर नहीं देखी जा सकतीं। जबकि अपेक्षाकृत कम समय
के लिए शासन करने वाले और अपने देश की रक्षा में अपना जीवन बलिदान करने वाले दोनों सम्राटों की
प्रतिमाएं शहर के दोनों
मुख्य सड़कों के चौक पर
देखी जा
सकती हैं।
ऐसा लगता है
कि मेक्सिको के लोग इस बात को
नहीं भूल पा रहे हैं
कि मोक्तेजुमा
द्वितीय भीरु सम्राट की मौत मरा था।
मेक्सिको नगरी में
दो मुख्य सड़कें
हैं। एक रिफार्मा है, जिसका पूरा नाम पैसियो डे ला रिफार्मा है। दूसरे को ‘एवेनिडा इन्सर्जेंट’ कहते है अर्थात् विप्लव एवेन्यू । ये दोनों
सड़कें
लगभग आठ से दस किलोमीटर लंबी हैं और वे शहर के केंद्र में एक-दूसरे को काटती हैं।
आज़्टेक समाज का दृढ़ विश्वास था कि
मानव जीवन की प्रत्येक घटना एक अदृश्य और अलौकिक शक्ति द्वारा नियंत्रित और संचालित होती है।
आज़्टेक
ने इन शक्तियों के चित्रों को पेड़ों की छाल या हिरण या कुछ अन्य
जानवरों के चमड़े पर
बनाकर एकत्रित कर पुस्तकाकार रूप में
बांधते थे। इन चित्रों को विभिन्न शक्तियों का प्रतीक माना जाता था, इनको बनाने वाले चित्रकारों को आज़्टेक समाज
में उच्च स्थान मिलता था। इन चित्रों को साधारण
लोगों को समझाने के लिए समाज नियोजित
करता था- ‘कैलेंडर पुरोहित’ या दिनलिपि पाठक। बच्चे पैदा होने के बाद माता-पिता उनके भविष्य के बारे में जानने के लिए उनके
पास जाते थे। विवाह के लिए दुल्हन, दूर
देश जाने की योजना
आदि में पुरोहित की राय ली जाती थी।
तुलाने
विश्वविद्यालय की एलिजाबेथ बोन ने इस विषय पर
विशेष शोध किया है। वह कहती है कि कभी आज़्टेक समुदाय में ऐसी नौ किताबें हुआ करती थीं। कालक्रम में सात
पुस्तकें नष्ट
हो गई,
फिलहाल केवल दो ही पुस्तकें बची हैं, जिन्हें उसने खुद संग्रह किया है। आज़्टेकों के सप्ताह में तेरह दिन हुआ
करते थे। लेकिन वर्ष के हर दिन के लिए निर्दिष्ट देवी-देवता के द्वारा नियंत्रित कथावस्तु की जानकारी इसी पुस्तक में मिलती थी। श्रीमती बोने ने इस किताब का नाम दिया है 'कोडेक्स बोर्गिया'। हमारी भविष्य वाणी या कुंडली देखने की तरह ही आज्टेक समाज प्रतीकों के चित्रों
की इस पुस्तक से व्यक्ति के भविष्य जानने में सक्षम थे। श्रीमती
बोने ने अपने शोध निष्कर्ष 'डिकोडिंग डेस्टिनी'
शीर्षक से
प्रकाशित किए हैं। उनके शोध से स्पष्ट है कि आज़्टेक लोग अपने
भविष्य के बारे में जानने के लिए इन पुस्तकों पर भरोसा करते थे और उनका मानना था
कि उनकी नियति कुछ अदृश्य शक्तियों द्वारा प्रभावित
होती थी।
राष्ट्रीय नृतत्व संग्रहालय
1964 ई॰ में राष्ट्रीय नृतत्व संग्रहालय साधारण जनता के लिए खोला गया था। मैंने
दुनिया के कई संग्रहालय देखे थे, लेकिन ऐसा कहीं नहीं, जिसमें इतने सारे
मूल्यवान दस्तावेज और वस्तुएँ रखी गई हों। मैंने अपने रहते समय जितनी बार संग्रहालय का दौरा किया था, मैंने देखा कि वहाँ संग्रहालय को किसी पवित्र स्थान से कम नहीं माना जाता था। हर
साल लगभग 15 लाख लोग इस संग्रहालय को
देखने आते हैं अर्थात्
लगभग 50 प्रतिशत भारतीय पर्यटक इस
संग्रहालय की यात्रा करते है।
पुरातत्वविदों द्वारा शहर के सबसे बड़े चौराहे जोकोलो की खुदाई में आज़्टेक सभ्यता और सुप्रसिद्ध शहर टेनोक्चिटलन के इतिहास प्रसिद्ध अभूतपूर्व स्वर्ण भंडार का एक
टुकड़ा भी नहीं मिला था। टेनोक्चिटलन पर अधिकार सम्राट मोक्तेजुमा के महल और घंटाघर में रखा हुआ विपुल
सोने का भंडार कहाँ चला गया, इस बात पर पुरातत्वविदों और
इतिहासकारों को आश्चर्य होता है। जोकोलो की
खुदाई इस विषय पर कोई प्रकाश डाल
नहीं पाई। सोने का भंडार भले ही नहीं
मिला हो, मगर आज़्टेक युग की तीन
सौ वस्तुएं
खुदाई में अवश्य
मिलीं। जमीन के नीचे से पत्थरों की
छुरियाँ, समुद्री शंख,
मोतियों के हार और पत्थर की कई भग्न मूर्तियाँ मिली। ये सारी चीजें राष्ट्रीय
संग्रहालय में रखी गई है। पुरातत्वविदों का मानना है कि जोकोलो के
जिस हिस्से से ये प्राचीन वस्तुएं पाई गईं, वह जगह टेनोक्चिटलन की
प्रसिद्ध ग्रटे टीकोली है। 1970 ई॰ में की गई खुदाई में उपर्युक्त वस्तुएं मिलीं, उनमें सबसे ज्यादा अद्भूत
चीज
थी आज़्टेक स्मारक: एक विशाल वृत्ताकार चट्टान था, जिसका वजन 24 टन, व्यास 12 फीट और मोटाई चार फीट थी। इस चट्टान पर खुदा हुआ
था सूर्य भगवान टोंटियुह का मुंह, जिसके चारों ओर बहुत से अद्भूत अबोध्य
प्रतीक थे। पुरातत्वविदों ने अपने शोध के आधार पर गहरे भूरे रंग के बेसाल्ट के इस मोनोलिथ को आज्टेक कैलेंडर रॉक नाम दिया। प्रतीकों में मुख्यत: आज़्टेक शैली में प्रति 52
वर्ष में संगठित हुए पुण्य समय चक्र और आज़्टेक
वर्ष के 18
महीने और 20 दिन शामिल थे। मेक्सिको का सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय यह चट्टान पूर्व हिस्पैनिक
युग की
है। सूर्य भगवान के
चेहरे को केंद्र में रखकर चारों ओर वृतमाला और उनमें कई चित्रलेख पर्यटक सोवेनियर
में अंकित है। मैंने सुना है कि यह मैक्सिको शहर और अन्य
बड़े शहरों और यहां तक कि गांवों की चमड़े की वस्तुएं, चांदी के हार, तांबें की प्लेट, लकड़ी के विभिन्न आकार के बर्तन, टी-शर्ट आदि आदि यहाँ पर अंकित हैं। नेशनल म्यूजियम का यह विशाल मोनोलिथ पत्थर सबसे ज्यादा आकर्षक है।
राष्ट्रीय
संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर शोभायमान
हो रहा है अमेरिकी महाद्वीप का सबसे विशाल मोनोलिथ बेसाल्ट की स्थापित ट्लालोक की
23 फुट ऊंची और 168
टन वजनी पत्थर की मूर्ति। इसके पीछे 175 फीट * 265 फीट क्षेत्रफल की कंक्रीट
और स्टील की एक विशाल छह त है, जो कांस्य और पत्थर से बने एक स्तंभ पर टिकी हुई है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी कैंटीलीवर
छह त माना जाता
है। स्तंभ के चारों तरफ सुंदर झरना बनाया गया है। ऑक्टेविओ पाज़ सहित कई लेखकों, स्थापत्यकारों, पुरातत्वविदों ने इस संग्रहालय को आधुनिक मेक्सिको का 'द ग्रेट टीकाली' नाम
दिया है। संग्रहालय में कई हॉल, गैलेरी, ईसा के पूर्व देवी-देवताओं और कई अन्य
स्मारक देखने के बाद मुझे इस चीज का आभास हुआ कि
यह आधुनिक मैक्सिको के उस प्राचीन
टेनोक्चिटलन शहर के
देव-मंदिर के समांतराल अनुष्ठान
है।
संग्रहालय में
विस्तार से प्राक् कोलंबियाई संस्कृति और प्राचीन मेक्सिको की विरासत प्रदर्शित की गई। सोलहवीं शताब्दी में हर्नान कोर्टेस के आक्रमण
से पहले प्राचीन मेक्सिको में पाए जाने वाली छह ह अलग-अलग संस्कृतियां अलग-अलग हॉल में प्रदर्शित की गई हैं। ओल्मेक, मिक्टेक, जेपटेक, मायन, टॉलटेक और अंत में आज़्टेक संस्कृति। संग्रहालय के
विभिन्न हॉलों में घूमने के बाद मुझे पता चला कि आज़्टेक संस्कृति प्राचीन मेक्सिको की सबसे
महत्वपूर्ण संस्कृति थी। यह संस्कृति प्राचीन मेक्सिको के सांस्कृतिक इतिहास के
शिखर पर थी। आज़्टेक
संस्कृति केवल वास्तुकला और मूर्तिकला तक ही सीमित नहीं थी, वरन्
उस संस्कृति के अंत:स्थल में भयानक नृशंसता भी मौजूद थी।
संग्रहालय के आज़्टेक
हॉल में बलिवेदी पर एक जीवित व्यक्ति को सोया
हुआ दिखाया है और एक पुरोहित उसके जीवंत हृदय को छुरी से बाहर निकाल रहा है। इसे तत्कालीन प्रचलित भयानक मध्ययुगीन बर्बरता मानी जा सकती है। मैक्सिको के प्रसिद्ध कवि ओक्टेविओ
पाज़ की भाषा में, "नृतत्व संग्रहालय
में प्रवेश करने का मतलब मिथकीय वास्तुशिल्प को
भेदना है।" ओक्टेविओ पाज़ का यह कथन बिलकुल सही था। मैक्सिको के सबसे महान उपन्यासकार
कार्लो फुएंटेस ने मुझे हार्वर्ड में कहा
था, "मिथ-बनाना मैक्सिको सिटी का सबसे प्रमुख उद्योग है।" मैक्सिको वासी खुद चुनते हैं कि वे किस पर विश्वास करेंगे और किस पर नहीं।
वे यह भी चुनते हैं कि उन्हें किसको याद रखना है
और किसको नहीं।जब
उनकी इच्छा होती है, वे कल्पित घटनाओं
को भी स्वीकार कर लेते
हैं।
संग्रहालय में
प्रवेश करते ही हमारी पहली मुलाक़ात हो गई आज़्टेक के वर्षा-देवता ‘टियैलोक’ से। एक पत्थर से बनी, 25
फीट ऊंची मूर्ति जिसका वजन 197 मैट्रिक
टन है। मुख्य लॉबी की दीवार पर आप देख
सकते हैं, मेक्सिको के अन्यतम प्रसिद्ध कलाकार रफिनो
तामायो का विशाल म्यूरोम। संग्रहालय में कुल मिलाकर बारह प्रदर्शनी हॉल हैं। इन सभी से दर्शकों को आधुनिक
संस्कृति की पृष्ठभूमि और देश की प्राचीन सभ्यताओं के बारे में जानकारी मिलती है।
मुझे आज़्टेक
हॉल सबसे ज्यादा पसंद आया। आज़्टेक कैलेंडर रॉक, मोक्षेजुमा के सिर का प्राचीन आवरण (मूल ऑस्ट्रिया के
वियना संग्रहालय में संरक्षित है, यहाँ उसकी कॉपी है) यहां देखे
जा सकते हैं और टेनोक्चिटलन का एक
पूर्व हिस्पैनिक मॉडल भी। जिस झील के
ऊपर प्राचीन सभ्यता की स्थापना हुई थी, उसका भित्ति-चित्र भी लगाया गया है।
हमने आज़्टेक हॉल के बाद
टियोटिहुआकन
हॉल देखा। यह बहुत ही और विशाल था। इस हॉल के अंदर प्रदर्शित है मुख्यतः टियोटिहुआकन में मेरे देखे हुए क्वाट्जल
कोएटल
मंदिर के
मॉडल। कई अन्य देवी-देवता की मूर्तियाँ और खुदाई के समय जमीन के नीचे से निकली वस्तुएं भी यहां देख सकते हैं। अन्य दस हॉल में
कई बहुमूल्य दर्शनीय वस्तुएं रखी गई हैं,जो
आज्टेक
के पहले वाली संस्कृति के बारे में जानकारी
देती हैं। उनमें ज्यादातर मायान, टॉलटेक, मिक्टेक और जपानटेक समय की वास्तुकला, प्राचीन फर्नीचर,
गहने, हस्तशिल्प आदि से संबंधित वस्तुएँ
हैं। सबसे पहले 20 मिनट की एक डाक्यूमेंटरी फिल्म
दर्शकों को दिखाई जाती है, जिसमें मैक्सिको की
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से लेकर 1521 ई॰ में
हर्नन कोर्टेस के आक्रमण तक की पूरी तस्वीर दिखाई जाती है।
मैंने राष्ट्रीय संग्रहालय में कुल सात घंटे
बिताए। मैक्सिको की प्राचीन संस्कृति और खासकर आज़्टेक संस्कृति के बारे में मेरी एक धारणा बनाई। और
ज्यादा पढ़ने के लिए मैक्सिको की प्रकाशित एक बड़ी किताब खरीदी।
जोकोलो- संविधान प्लाजा
मैक्सिको में रहने
के दौरान हम एक पूरे दिन के लिए
जोकोलो चले गए। जोकोलो मेक्सिको का अन्यतम प्रसिद्ध स्थान है।
स्पेनिश में, इसका मतलब है कि संविधान प्लाज़ा।यह
शहर के केंद्र में स्थित है। जो दुनिया का अन्यतम विशाल चौराहा है।
संविधान प्लाजा के एक तरफ नेशनल पैलेस है। इतिहास कहता है आज्टेक सम्राट मोक्तेजुमा द्वितीय का महल इस स्थान पर स्थित था। आक्रमणकारी हर्नन कोर्टेस ने आज़्टेक सभ्यता को
नष्ट करने के बाद टेनोक्चिटलन जैसे
समृद्ध शहर को
उजाड़कर इस जगह पर अपने नए महल का निर्माण किया था। मगर उत्तेजित जनता
ने 1692 ई॰ में
इस महल
को ध्वस्त कर दिया था। पुराने महल के खंडहर आज भी कुछ हद तक
देख सकते हैं। 1698 ई॰ में
महल का पुनर्निर्माण हुआ और
वायसरॉय के आधिकारिक निवास के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाने लगा। 1821 ई॰ में मेक्सिको के गणराज्य बनने के
बाद राष्ट्रपति कार्यालय और अन्य कार्यालय इस स्थान पर काम करने लगे। बीच-बीच में कुछ
अंश बढ़ा दिए गए
हैं, उदाहरण के तौर पर 1909 ई॰ में तीसरी मंजिला का निर्माण किया गया
था।
मेक्सिको के सबसे
प्रसिद्ध चित्रकार डिएगो रिवेरा के विशाल भित्तिचित्र राष्ट्रीय पैलेस का सबसे आकर्षक दृश्य
है। यह पैलेस के मुख्य प्रवेश द्वार का एक तरफ दीवार पर अंकित है। भित्तिचित्र में कई ऐतिहासिक और काल्पनिक कहानियों का समावेश है। मेक्सिको के
कला आलोचकों का मानना है कि यह दुनिया का अन्यतम प्रसिद्ध भित्तिचित्र है, जिसमें मैक्सिको के
प्राचीन इतिहास, आम आदमी और संस्कृति का
सजीव चित्रण हुआ है। जोकोलो शहर के केंद्र में स्थित है।इसके एक तरफ
राष्ट्रीय पैलेस है और दूसरी तरफ सोलहवीं सदी का प्रसिद्ध कैथेड्रल है। मैक्सिको सिटी का महानगरीय प्रशासन इस कैथेड्रल संरक्षण की देखभाल करता है। इसे लैटिन
अमेरिका के सबसे बड़े और सबसे सुंदर कैथेड्रल में से एक माना जाता है। मैक्सिको
सिटी के निवासी प्रार्थना
करने के लिए हर दिन यहां आते हैं। राष्ट्रीय पैलेस को देखने जितने पर्यटक इस कैथेड्रल को भी देखने आते हैं।
कुछ
वर्ष पहले जोकोलो
से थोड़ी दूर बिजली की केबल लगाने के लिए जमीन खोदी गई थी तो लगभग 15
टन वजन वाला भास्कर्य युक्त एक विशाल
पत्थर बाहर निकला था। पुरातत्वविदों का मत था कि यह चंद्र देवता की मूर्ति थी। इसके बाद आस-पास के अंचल में भू-खनन से अनेक प्राचीन ऐतिहासिक वस्तुओं के साथ
आज़्टेक साम्राज्य का सबसे बड़ा मंदिर और राजधानी
टेनोक्चिटलन के सबसे बड़े मंदिर का मलबा
मिला। राष्ट्रीय पैलेस के अंदर एक और ऐतिहासिक चीज देखने को मिली।
इस महल के सेंट्रल हॉल की छह त से लटका हुआ ‘स्वतंत्रता घंटा’ (इंडिपिडेंस बेल)। 15 सितंबर, 1810 की रात को फादर मिगुएल फेदाल्गो ने
घंटी बजाकर नागरिकों को सशस्त्र विद्रोह करने के लिए आह्वान
किया था। उस दिन से हर साल 15 सितंबर की रात को यह विशाल घंटा बजाया जाता है।
राष्ट्रीय पैलेस के इस हॉल में 1857 ई॰
को मेक्सिको के संविधान को अंतिम रूप दिया गया था।
इस
महल के अंदर स्थित है ‘बेनिटो कुआरेज संग्रहालय’ । इनकी मैक्सिको के इतिहास पर गहरी छाप है, इसका
इतिहासकारों ने विशद वर्णन किया है।उनके जीवन
के विभिन्न चरणों को संग्रहालय के अंदर चित्रित किया गया है।उनके द्वारा इस्तेमाल में ली जाने वाली मेज और
कुर्सी, उनके सोने वाला खाट और अन्य फर्नीचर, उनके द्वारा प्रयोग में ली जाने वाली अन्य वस्तुएँ, उनकी अपनी किताबें इत्यादि संग्रहालय
में रखी हुई हैं।
संग्रहालय में एक बड़ी लाइब्रेरी भी है, जिसमें तत्कालीन
इतिहास के साथ-साथ कुआरेज के बारे में लिखी गई किताबें भी हैं।
जोकोलो की यात्रा
के समाप्त होने के बाद पूर्व दिशा में चलते हुए
हम मैक्सिको नगरी के सबसे बड़े माल-गोदाम में गए। इसे 'ला
मर्सिड' कहा जाता है।यहां
प्रदर्शित होने वाली सब्जियां, अनाज, फल और अन्य खाद्य पदार्थों की इतनी किस्में इकट्ठी होती है कि बिना देखे आप कल्पना तक नहीं
कर सकते हैं। मेक्सिको न केवल भोजन में आत्मनिर्भर
हैं, बल्कि प्रचुर मात्रा में
भोजन करना भी स्थानीय
लोगों के लिए सबसे बड़ी खुशी का विषय है। ऐतिहासिक काल से मेक्सिको
ने पश्चिमी दुनिया को कई
नए खाद्य पदार्थ दिए हैं । जिसमें
चॉकलेट, टमाटर, वेनिला, मूंगफली, ऐवोकैडो, टर्की मांस आदि शामिल हैं। मैंने
देखा कि मेक्सिको में मैकडॉनल्ड्स के फास्ट फूड्स, हाम्बर्गर रेस्तरां, पिज्जा हट आदि जैसी कई अमेरिकी शैली के केफेटेरिया हैं, फिर
भी आज तक पारंपरिक खाना
साधारण लोगों को बहुत प्रिय है। आम लोगों का मुख्य भोजन मक्का से बना टोर्टिला, मिर्चयुक्त सॉस और टमाटर हैं। टोर्टिला के साथ बहुत तरह की कटी मिर्ची और बिन मिलाकर
स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं। टोर्टिला बनाने के लिए सूखे और चूरे
हुए टमाटर और बीन्स में मिर्च मिलाई जाती है। मार्टिन ने कहा कि मेक्सिको में पचास विभिन्न किस्मों की बीन्स उपलब्ध है और विभिन्न आकार, रंग
और खुशबू वाली एक
सौ चालीस प्रकार की मिर्च भी। मार्टिन ने मुझे ला मर्सिड से गार्बाल्डी
प्लाजा के सामने बहुत बड़े
सर्व-साधारण डाइनिंग हॉल में ले गया। एक विशाल फुटबॉल मैदान के आकार का डाइनिंग हाल था।
एक साथ लगभग
दो हज़ार लोगों के खाने का दृश्य देखकर मैं
आश्चर्य चकित हो गया था। काउंटर से खरीदकर टेबल पर लाकर आप खा सकते हैं ।
हमने
भी इस विशाल पंगत में बैठकर कुछ खरीदकर खा लिया। इतने प्रकार के खाने में
से चयन करना मेरे लिए दुष्कर था। मार्टिन के निर्देशानुसार मैंने अपना खाना ले लिया
था। मैक्सिकन भोजन और मेक्सिको के खाने की आदतों के
बारे में 1906 ई॰ के एक अंग्रेज पर्यटक की टिप्पणी मार्टिन ने मुझे सुनाई थी। वह इस प्रकार थी :-"अवसरों के अनुरूप मेक्सिकन खाता है, और अवसर हमेशा होता है, वह हमेशा खाता है।"
मार्टिन ने मतानुसार मेक्सिको वासियों को दो चीजों से ज्यादा लगाव है।
पहला, भोजन-पेय तो दूसरा
खेल, सबसे पसंदीदा खेल- बुलफाइट।
स्पेन की तरह मेक्सिको में भी यह खेल अति लोकप्रिय है और मैक्सिको नगरी के सबसे बड़े बुलफाइट स्टेडियम में चालीस
हज़ार लोग बैठ सकते हैं। चापुलटेपेक पार्क में छोटे
बच्चों समेत बड़े लोगों का वॉलीबॉल, रिंग बॉल, बैडमिंटन आदि खेलना बहुत आम बात है।
टियोतिहुआकान: सूर्य पिरामिड, चंद्र पिरामिड
टियोतिहुआकान के लोग इकट्ठा हुए थे, साँझ के अंधेरे में। चर्चा होने लगी, हर दिन सूर्य भगवान के उगने और अस्त होने की।
सूर्य भगवान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित
करने के बाद मुख्य पुरोहित कहने लगे, "हमारी
मक्के की फसल, घरों, सड़क-रास्तों, हर
जगह वे अपनी किरणें डालते हैं। उन्हें कितना कठिन परिश्रम करना पड़ता होगा ? धीरे-धीरे वे कमजोर हो जाएंगे, केवल बातों से कृतज्ञता
जताने से क्या होगा, उन्हें शक्तिशाली बनाए रखने
के लिए कुछ करना होगा। नहीं
तो कहीं अस्त होने के बाद कभी उदय नहीं होगा। अंधेरे का राज रहेगा, मक्के की फसल नहीं होगी,हमें कोई भी दृश्य नहीं दिखाई देगा।" उन्होंने समस्या के हल के बारे
में काफी विचार-विमर्श कर तय किया कि एक सबल,हृष्ट-पुष्ट,स्वस्थ और सुंदर युवक का खून सूर्य भगवान को चढ़ाया
जाए,वैसा ही हुआ। निर्दिष्ट दिन टियोतिहुआकान
के लोग सूर्य भगवान के पिरामिड के नीचे एकत्र हुए, दो पुरोहित चयनित युवक को पिरामिड के शीर्ष पर ले जाकर पूर्व दिशा में खड़े हो गए। सूर्य के उगते समय उन दोनों
पुरोहितों ने उस युवक की गर्दन नीचे झुकाकर सूर्य को नमस्कार करते हुए तलवार
से सर धड़ से अलग कर दिया। टियोतिहुआकान
के सभी लोगों ने
सिर झुकाकर सूर्य भगवान से
प्रार्थना की। जिस दिन मैं टियोतिहुआकन गया
था, उस दिन मुझे लाइट एंड साउंड प्रोग्राम के
माध्यम से इसके बारे में और शहर की प्राचीन
संस्कृति के बारे में बहुत कुछ सीखने को
मिला।
यह
कहानी बहुत पुरानी है।200 ई. टियोतिहुआकान शहर की स्थापना के समय यह वर्तमान मैक्सिको
सिटी से करीब
30 मील दूर स्थित था। परवर्ती पांच सौ वर्षों में यह मेक्सिको की सबसे
प्राचीन सभ्यता, सबसे बड़े वाणिज्यिक
केंद्र
और धार्मिक क्षेत्र के रूप में जाना
जाने लगा। इतिहासकारों का मानना है कि 750 ई॰
उत्तरी मेक्सिको के आक्रामक अस्थायी निवासी चिचिमेक समुदाय द्वारा नष्ट कर दिया गया। 1175 ई॰ चिचिमेक समुदाय के एक बड़े दल ने मैक्सिको घाटी में प्रवेश कर टेक्सको झील के मध्य स्थित द्वीप पर टेनोक्टीट्लान शहर की स्थापना की। इतिहासकारों के अनुसार 1325 ई॰ में इस शहर की स्थापना हुई थी।
धीरे-धीरे आज्टेक
समुदाय ने अपने साम्राज्य का अटलांटिक से प्रशांत महासागर तक विस्तार किया और उन्होंने
पश्चिमी गोलार्ध के सबसे बड़े और धनी शहर को
अपनी राजधानी बना लिया। समग्र
मैक्सिको के छोटे-मोटे राज्यों ने उनकी अधीनता स्वीकार की और नाना प्रकार के सोने-चांदी के उपहार प्रदान किए थे।
चौदहवीं शताब्दी से बहुत पहले टियोतिहुआकान एक प्रसिद्ध शहर था। बीसवीं
शताब्दी में भूमि के नीचे से इस शहर का
पुनरुद्धार किया गया। टियोतिहुआकान में बस से एक दिन का सफर मेरे लिए
अविस्मरणीय बन गया। खुदाई से पुनरुद्धार किए गए टियोतिहुआकान
में उच्च कोटि की
संस्कृति का परिचय मिलता है। प्राचीन जन-बस्तियों के अलावा इस जगह पर अनेक मंदिर परिसर, प्रसिद्ध सूर्य पिरामिड, चन्द्र पिरामिड और दोनों पिरामडों को जोड़ने वाला एक रास्ता है,
जिसका नाम है ‘डेथ हाईवे’।
टियोतिहुआकान शहर
में रहने वाले लोगों को टॉलटेक के नाम से जाना जाता था। लाइट एंड साउंड कार्यक्रम देखने से
पहले मैंने शहर
के मुख्य क्षेत्रों को देख लिया था। इस विशाल अंचल का क्षेत्रफल लगभग 91
वर्ग किलोमीटर है। शहर के केंद्र में थे सूर्य-चंद्रमा के दोनों पिरामिड, कई
प्राचीन मंदिर और सम्राटों और अन्य शासकों के
जीर्ण महल, जो खुदाई में मिले है।पिरामिड
और मंदिरों के बाहरी हिस्सों पर कई भित्ति-चित्र बने हैं। पुरातत्वविदों का
मानना है कि ये दोनों पिरामिड 350
ई॰पू॰ से 100 ई॰पू॰ निर्मित हुए। व्यापक शोध से पता चला हैं कि लगभग दो लाख लोग उस समय टियोतिहुआकन में रहते थे, और
उस समय वह दुनिया का सबसे बड़ा शहर था। चंद्रमा पिरामिड की उत्तर दिशा का अंतिम भाग 150
मीटर लंबा, 120 मीटर चौड़ा और 42 मीटर ऊंचा है। 'चंद्र प्लाजा' यानि चंद्र पिरामिड के पास बने महल में उस समय के मुख्य
शासक या मुख्य पुजारी रहते थे। सूर्य पिरामिड कुछ ज्यादा बड़ा है और पांच
स्तरों में ऊपर उठा है।
इस 65 मीटर ऊंचे पिरामिड की चारों भुजाएँ 225 मीटर हैं। सूर्य पिरामिड और चंद्र
पिरामिड के बीच अंचल में कृषि-देवता का मंदिर है। यह मंदिर इतिहास प्रसिद्ध है। क्योंकि
टियोतिहुआकान संस्कृति में कृषि
सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि थी। इस क्षेत्र के दक्षिणी हिस्से में एक विशाल स्टेडियम
है, जो चारों तरफ दीवारों
से घिरा हुआ है। इसे 'सिटाडेल' कहा जाता है। इसके अंदर कई मंदिर थे।कुछ
मंदिर अभी भी अस्तित्व में हैं। कुएतजल
कोटल अर्थात् 'पंखों वाला साँप' वाला अन्यतम मंदिर है। पंखों वाला सांप पूर्व हिस्पैनिक संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण
पहलू है।
लाइट
एंड साउंड शो देखने के बाद पास वाले रेस्तरां में कुछ नाश्ता कर जिस बस से हम गए थे,
उसी बस से लौट गए।
रात के नौ बज रहे थे। चाँदनी रात थी, बहुत दूर से पॉपोकटापिटल
पहाड़ का शिखर
दिखाई दे रहा था।मुझे लगा कि इस संस्कृति के
समतुल्य नील नदी घाटी की मिस्र की संस्कृति रही होगी।
मैक्सिको का चापुलटेपेक पार्क
मैक्सिको सिटी का ‘चापुलटेपेक पार्क’ केवल मेरे देखे गए पार्कों में ही सबसे
बड़ा नहीं है,वरन
यह सबसे सुंदर भी है और किसी भी दूसरे पार्क में इतने ज्यादा अनुष्ठान नहीं
हैं। यह पेरिस के ‘बोआ
डी बूनो’ की तुलना में अधिक
सुंदर, न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क की तुलना में व्यस्त और अधिक घटनाबहुल और
लंदन के सेंट जेम्स पार्क से अधिक सुपरिकल्पित
और लोकप्रिय है। पार्क के अंदर सम्राट
मैक्सीमिलियन द्वारा कभी प्रयोग में
लाया जाने वाला महल, पांच
संग्रहालय, छह थियेटर, नौकायन के लिए तीन झील, बच्चों के लिए दो छोटी ट्रेनें, दो
रोलर स्केटिंग रिंक, एक चिड़ियाघर, फूलों की बिक्री के लिए बाजार, पोलो खेल का मैदान, कई सुंदर झरने, तीन बैंडबाजे, बच्चों के खेलने के लिए खुली जगह, प्राचीन जंगल के 200 फीट से
अधिक ऊंचे अनेक
साइप्रस पेड़ हैं। मेरे दोस्त मार्टिन ने पहले से ही रविवार के
दिन वहाँ घूमने की व्यवस्था कर ली थी। करीब दस लाख लोग
रविवार को पार्क में घूमने जाते हैं। पार्क हर आयु के लोगों के लिए खुला है, इसलिए हर
कोई इसका आनंद उठाता है। पार्क में चारों तरफ घूमने
के बाद मुझे लगा कि यह पार्क मैक्सिको सिटी का एक लघु संस्करण ही है। इस पार्क के घने
जंगल से ढके हुए क्षेत्र पिकनिक के लिए
निर्दिष्ट है। कम से कम सौ परिवार पिकनिक मनाने के लिए रविवार को
पार्क में आते हैं, उधर से गुजरने पर मैक्सिकन
भोजन की सुगंध चारों तरफ सूंघने को मिलती
है। बच्चों के दल अलग-अलग खेल खेलने में व्यस्त
होते हैं, अपेक्षाकृत वृद्ध लोग वॉलीबॉल खेलते हैं, पार्क के अंदर रेस्तरां में अनगिनत लोग कुछ-न-कुछ खाने में व्यस्त रहते है। झीलों के किनारे पर अनेक रेस्तरां बने हुए हैं। नौकायन के लिए छोटी-बड़ी नौकाओं के अतिरिक्त
पेडल नौकाएं भी वहाँ उपलब्ध हैं। वृद्ध लोग वहाँ खूबसूरती से सजाए गए वृत्ताकार या
आयताकार बैंच पर बैठकर बातें करते हैं और हाकर्स
से कुछ खरीदकर
खाते रहते हैं।
मैक्सिको शहर के सामान्य परिवारों के घर बेहद संकीर्ण और
छोटे होते हैं, इसलिए रविवार को बाहर
आकर खुले पार्क
में समय बिताना किसी विलास से कम नहीं
माना जाता है। पार्क बच्चों के लिए तो पृथ्वी का स्वर्ग है! खिलौना
गाड़ियों में घूमने, विविध खेल खेलने, रेस्तरां में खाने, नौकायन करने या
अपने माता-पिता के साथ जंगल इलाके में पिकनिक का आनंद लेने आदि
के कारण पार्क बच्चों के लिए आकर्षक जगह हैं। मुझे पता नहीं था कि मैक्सिको में
जादू इतना लोकप्रिय है!
तीस से चालीस बच्चे पार्क के एक हिस्से में बैठे हुए थे और कुछ जादूगर अपने हाथों की सफाई दिखा रहे थे। पूछने पर पता चला कि इसके
लिए बच्चों को
बहुत ही कम शुल्क देना पड़ता है। चिड़ियाघर में चार-पाँच हाथी अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे, पृथ्वी के कोने-कोने से लाए गए दो हजार से ज्यादा
जानवरों और चिड़ियों को देखा जा सकता हैं। चिड़ियाघर सम्राट मोक्तेजुमा की एवियरी(चिड़ियों
को रखने का स्थान) थी। कहा जाता है कि सम्राट मोक्तेजुमा राज्य-प्रशासन
में जितना समय देते थे, उससे ज्यादा विभिन्न अंचलों से संग्रहित पक्षियों
को घूम-घूमकर देखने
में। तीन झीलों में से सबसे बड़ी झील के किनारे एक सांस्कृतिक केंद्र है, जिसका नाम है 'हाउस
ऑन दी लेन'।
बाहरी
दर्शकों के आमोद-प्रमोद
के लिए निशुल्क
वहाँ पर मैक्सिको के पारंपरिक संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है।
सुनने में आया है, कभी-कभी वहाँ पर व्याख्यान और अन्य
बैठकों का भी आयोजन किया जाता
है। सांस्कृतिक केंद्र के पास स्थित एक छोटा-सा
शैक्षिक केंद्र है।जिसमें बच्चों को बढ़ईगीरी, कपड़ों की सिलाई, नौकाओं
के मॉडल बनाने का काम, सुई
वाले काम, फूलों की सजावट, गुड़िया बनाना आदि नि:शुल्क सिखाया जाता है। मेक्सिको का महानगरीय प्रशासन
दोनों सांस्कृतिक और शैक्षणिक केंद्रों का प्रबंधन करता है। बच्चों को सिखाने का निर्दिष्ट समय हैं।
अपने अतिरिक्त समय में शिक्षक वहां बनने वाली चीजों को
शिक्षाकेन्द्र के ठीक बाहर अनेक दुकानों में बेचते है,
जिससे उन्हें कुछ आय भी होती है।
चापुलटेपेक में सम्राट के महल का अब
उसका दुर्ग के रूप में प्रयोग होता है और इसमें एक संग्रहालय भी खोला गया है।
पार्क के अलग-अलग कोने में तीन संस्थान है,जिनके
बारे में अलग से कहीं लिखना पड़ेगा। ये तीनों हैं- नृतत्व राष्ट्रीय संग्रहालय,आधुनिक कला संग्रहालय एवं मोनुमेंट टू द बॉयज् हीरोज्।
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