13. सिआमस हिनि, थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर, चिनुआ आचिबि और जोसेफ ब्रोडस्की
13. सिआमस हिनि, थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर, चिनुआ
आचिबि और जोसेफ ब्रोडस्की
सिआमस हिनि और
आयरिश परंपरा
आयरिश कवि सिआमस हिनि एक
साल के लिए अंग्रेजी विभाग में बोयलस्टोन प्रोफेसर ऑफ
रेटोरिक एंड लेंग्वेज के रूप
में आए थे। वह एक और हॉल में
रहते थे, जो सीएफआईए हॉल के
करीब था। वह भी मेरी तरह
अकेले रहते थे। उनका परिवार आयरलैंड में था। मैं शुरु में उनके पद
के बारे में भ्रमित था। 'भाषा' अर्थात् लेंग्वेज सही है। मगर
शब्द 'रेटोरिक' का प्रयोग अपमानजनक
अर्थ में किया जाता है। मेरा
मानना था कि जब कविता में इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता
है तो वह खराब हो जाती है। बाद में सिआमस के
साथ इसके बारे में चर्चा करने पर वास्तविक अर्थ समझ
में आया।
पहली बार फोन करते समय वे नहीं
थे। वे आयरलैंड चले गए थे क्योंकि आगे
छुट्टियां थीं। बाद में फोन पर बातचीत हुई और हम एक-दूसरे से मिले।
मैं लामोंट हॉल में उनके काव्य-पाठ की संध्या पर उपस्थित था। इसी
तरह वे भी उपस्थित थे मेरे काव्य-पाठ के समय। स्वीडिश कवि थॉमस
ट्रान्स्ट्रोमर जब अपने कविता-पाठ के लिए लामोंट हॉल में आए
थे, उस
शाम हम दोनों उपस्थित थे। लामोंट पुस्तकालय के
पास वाले हॉल में नियमित कविता-पाठ होता
रहता था।
उनके साथ कई विषयों
पर चर्चा हुई। खासकर
डबल्यू॰बी॰यीट्स की कविताओं
पर। उन्होंने कहा, “ यीट्स की कविताएं
विरोधाभासी हैं, मगर उनकी काव्य-वस्तु और भाषा-शैली
प्रभावशाली है।फिर भी सामान्य जीवन को अतिक्रम
कर अन्य सांसारिक अवस्था में ले जाने वाली उनकी कविताएं
कुछ अप्राकृतिक-सी
लगती हैं।” मैंने पूछा, "क्यों? क्या आप पूरी तरह से नास्तिक हैं? दैनिक
सांसारिक जीवन को पार कर किसी अन्य वास्तविकता
तक पहुंचना संभव नहीं है? बेशक, इस शब्द का
वास्तविक अर्थ नहीं हो सकता है हालांकि, असत्य भी नहीं है। एक व्यक्ति अपने
दैनिक जीवन में पूरी तरह से तुच्छ हो सकता है,मगर
कभी-कभी उसका सांसारिक अस्तित्व के ऊपर या उसके पीछे दिखाई
देने वाली दूसरी वास्तविकता का स्वरूप आँखों में नहीं पड़ता
है? क्या हम इसे वास्तविकता का एक विस्तारित या नया क्षितिज नहीं कह सकते?" वे
मेरे तर्कों से पूरी तरह सहमत नहीं
थे लेकिन वे ऐसी वास्तविकता के अस्तित्व से इंकार
भी नहीं कर सकते थे। उनकी राय में विभिन्न
प्रकार की वास्तविकता (या साधारण वास्तविकता के
ऊपर या उसके पीछे
की वास्तविकता) निम्न वास्तविकता से उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में, कविता रोजमर्रा की
जिंदगी पर निर्भर है,मिट्टी से जुड़ी हुई होती है। उसके
भीतर सब-कुछ खोजना पड़ेगा,
जीवन के सारे रंग-रूप,सब
रंगहीनता और रूपहीनता की स्थिति,हमारे
सपने और स्वप्न-भंग के अद्भूत सम्मिश्रण की इतिवृति,स्वर्ग
और नर्क के येट्सनीय आपोकालिप्स और हमारे जीवन की क्षण-भंगुरता की चिरंतनता के
भीतर।
उन्होंने संक्षेप में बताया
कि वे वामपंथी दृष्टिकोण वाली
कविताओं के प्रति उदासीन हैं, भले ही उनमें
मानवीय पक्ष क्यों
नहीं हों। उनका मानना था कि कविता लिखते समय कोई भी पूर्व निर्धारित दृष्टिकोण
नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस वजह से कवि के मौलिक अनुभव
व्याहत होने की ज्यादा संभावना है।कवि
के लिए इतिहास ‘अनुपस्थित’
घटनाएं और उनका विश्लेषण सब गौण हैं। मुख्य है निरुता स्वयं-अनुभूत अनुभवों के
विविध स्वरूप। उनके अनुसार काव्य-पुरुष अनुभवों को बहुत सारे स्तरों पर खुद समझने
की चेष्टा करता है : मानसिक अथवा चिंतन स्तर पर,हृदय
या प्राण या आवेग स्तर पर,सम्पूर्ण
असंकलित रक्त-स्रोत,स्नायु
और सारे इंद्रिय अनुभवों में। सब मिलकर बनता है उसका अनुभव। मैंने पूछा था,
आप कहीं दूसरे शब्दों में एलिअटीय ‘स्पीनोजा
एंड द स्मेल ऑफ कुकिंग’
के समीकरण तो नहीं बता रहे हैं?
वे लगभग सहमत हुए थे। हम दोनों इस बात से सहमत थे कि अनुभव में,किसी
के भी अनुभव में,बहुरूप
को सम्पूर्ण रूप में करायत करना,चेतना
और हृदय में लिपिबद्ध करना अत्यंत ही कठिन है। उससे भी ज्यादा कठिन है उसे भाषा
में पिरोना, सही शब्दों की तलाश करना।
मेरा सवाल था कि अनैतिहासिक अथवा इतिहास की अनुपस्थिति की आवश्यकता पर बल देने पर
भी भाषा-इतिहास से संग्रहीत कर तिनकों से बने घोसलें में असंकलित इतिहास अपरोक्ष
रूप से क्या कविता के भीतर नहीं आएगा ?
इसलिए इतिहास से चिंतन स्तर पर खुद को मुक्त करने का प्रयास करने पर अनुभव के
आत्म-प्रकाश स्तर पर इतिहास दूसरे रास्ते से मुड़कर लौट नहीं आता है ?
उन्होंने
अपनी कविताओं से बहुत सारे अंश पढ़कर
अपने दृष्टिकोण,
अपने काव्य-दर्शन के विविध विभाव प्रतिपादित किए थे। काव्य-जगत
के सामूहिक रूप के विषय पर उनके प्रगाढ़
अध्ययन और ज्ञान ने मुझे बहुत
खुशी प्रदान की। फ़ैकल्टी क्लब में या उनके
अपार्टमेंट में या मेरे अपार्टमेंट में
कई बातों पर साहित्यिक
चर्चा हुई थी। हम दोनों एक-दूसरे
को बेहतर ढंग से समझने लगे। मुझे उनकी विनम्रता और खुलापन बहुत
पसंद आया। उस समय तक उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिला था। परंपरा के प्रति
उनका दृष्टिकोण नीचे लिखी कविता में देखा जा
सकता है। कविता बहुत प्रसिद्ध है और सिआमस
ने लामेंट हॉल में कविता स्वयं पढ़ी
थी। अनुवाद का कुछ अंश नीचे दिया
गया है:-
खुदाई
मेरी उंगली और मेरे
अंगूठे के बीच
बंदूक की
तरह मेरी कलम आराम कर रही थी।
तभी
मेरी खिड़की के नीचे से
सुनाई पड़ी एक स्पष्ट आवाज
कंकड़
मिली मिट्टी में कुदाल धँसने
की :
मैंने
नीचे देखा
मेरे पिता मिट्टी
खोद रहे थे।
छोटे-छोटे
फूलों की क्यारियों पर
पिता
के हाथों से चलती कुदाल
बीस
साल पहले छंद-बद्ध होकर
जैसे
वे आलू खोद रहे थे ।
अपने
मैले जूतों पर बैठकर
कुदाल-धार
को घुटनों के आगे
दृढ़ता से ,
चलाते
थे। ऊंची-ऊंची सूखी लताएँ
ढ़क
देती थी कुदाल की तेज धार को
नए आलू को ऊपर
खींचकर,
हम
कड़े आलू की शीतलता को हथेली से अनुभव करते।
हे
भगवान! एक बूढ़ा इतनी
कुदाल चलाता है !
जैसे
उसके बूढ़े पिताजी चलाया करते थे !!
हर दिन मैं
मेरे दादा के
लिए
गाँव
के किसी आदमी से
दूध-बोतल
पर कागज की ठीपी देकर
लाता
था।वह
सीधे खड़े होकर
दूध
पीकर फिर खुदाई
में जुट जाते थे।
मेरी उंगली और मेरे
अंगूठे के बीच
विश्राम
करती कलम से
मैं खुदाई
करूंगा।
सिआमस की कविता में परंपरा की उपजाऊ
मिट्टी खुदाई करने के बहुत स्पष्ट संकेत
है।
मैंने पहले कहीं
कहा है कि मैं हार्वर्ड आते
समय स्टॉकहोम में दो दिन रुका था और पहली बार
साहित्य-संध्या में थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर से मिला था। उन्होंने
मेरी कविताओं का स्वीडिश भाषा में अनुवाद किया था। मैंने ओड़िया में मेरी दो कविताएं पढ़ी थीं, स्टॉकहोम की
साहित्य-संध्या में।उन्होंने 'मृत्यु
और स्वप्न' का अनुवाद पढ़ा था।
मैंने थॉमस पेंगुइन की
आधुनिक यूरोपीय कवि श्रृंखला में पहले पढ़ा था। सन
1974 में उस संकलन में थॉमस और फिनलैंड
के कवि पावो हबीकोको की कविताएं एक साथ प्रकाशित हुई
थीं। वे स्वीडन के शीर्षस्थ कवि हैं और उनकी
कविताओं के कई अंग्रेजी अनुवाद अमेरिका में प्रकाशित हुए
है। उन्हें अमेरिका में साहित्यिक संगठनों द्वारा नियमित रूप से काव्य-पाठ
के लिए आमंत्रित किया जाता है। अमेरिका में उनके कई प्रशंसक हैं, जो नियमित रूप से उन्हें
पढ़ते हैं। मैं यूनानी कवि स्ट्रैटिस हविरस (लमोंट की
काव्य-संध्या के संयोजक) से पता
चला कि उनका शीघ्र ही लमोंट
लाइब्रेरी में काव्य-पाठ होने जा रहा है। उसके बाद मुझे थॉमस
की चिट्ठी भी मिली। वह हार्वर्ड में अपने दोस्त के घर में रह रहे
थे। वहाँ कई स्थानीय कवि, सिआमस हिनि, डोनाल्ड हॉल और
उनकी पत्नी कविता जेन कैन्यन आदि कविता पाठ में आए थे। लमोंट लाइब्रेरी और थॉमस की
यात्रा के प्रायोजक ( नाम याद नहीं है) ने
काव्य-पाठ के बाद फ़ैकल्टी क्लब में एक
रात्रिभोज का आयोजन किया था। उनसे
मिलने का मुझे फिर से मौका मिला है। उस
दिन उनकी पढ़ी हुई छह ह कविताओं में
से मैंने दो का अनुवाद किया है (जो
मेरे अनूदित कविता-संकलन में
शामिल हैं)। उनकी कविताओं की विशेषता और गुणवत्ता के बारे
में किसी भी पाठक को स्पष्ट अनुमान हो
सकता है।
रेलपथ
चांदनी रात के दो बजे
रेलगाड़ी रुकी
खेतों के किनारे
शहर में रोशनी की कतारें
शीतल,
टिमटिमाती
बहुत दूर क्षितिज पर।
जैसे खोया हुआ
एक आदमी गहरे सपने में
फिर जब लौटा अपने कमरे में
उसे याद नहीं कि
वह कहाँ गया था।
अथवा किसी भयंकर
बीमारी से
परेशान मनुष्य सारे दिन
छह टपटाता हो जैसे
निष्प्रभ शीतल दिगंत में।
ट्रेन सम्पूर्ण गतिहीन
रात दो बजे : विपुल
चांदनी में
कुछ सितारें।
आमने-सामने
फरवरी में जीवन
चलने में असक्षम
अनिच्छा से उड़ते खग
चेतना टकराती भूचित्र से
बंधी हुई नौका जैसे
शक्तिहीन होती पोल से।
मेरी तरफ पीठ किए
खड़ी थी वृक्षावली
गिरे हुए सूखे पत्ते
गहरी बर्फ पर
और उस पर पाद-चिह्न ।
एक-दूसरे की तरफ कूद पड़े हम ।
लामेंट
लाइब्रेरी में आयोजित कविता पाठ के दूसरे दिन फ़ैकल्टी
क्लब में मैंने उनके साथ दोपहर का भोजन
किया था। हम दोनों ने दो-दो कविताएं अपनी मूल भाषा और उनके
अंग्रेजी अनुवाद में सुनाने का तय किया। उन्होंने मूल
कविताओं पर इसलिए जोर दिया क्योंकि उन्हें स्टॉकहोम के
काव्य-पाठ में मेरी कविताओं का ओड़िया उच्चारण पसंद आया था। वह उनकी
पुनरावृत्ति चाहते थे। मुझे उनकी मूल स्वीडिश कविता
पसंद नहीं आई थी,
फिर भी मैं ध्यान से सुन रहा था। कहने की जरूरत
नहीं है, कविता में
अंतर्निहित संगीत उसका अन्यतम विशिष्ट गुण है। उस
दिन उनके द्वारा पढ़ी हुई दो कविताओं में से एक का
ओड़िया अनुवाद करने का लोभ-संवरण नहीं कर पाया।
दंपति
वे बत्ती बुझा देते हैं।
पूरी तरह बुझने से पहले
एक पल के लिए श्वेत-आभा झलकती है।
उसके बाद ग्लास के अंधेरे में
बिन्दु बन लुप्त हो जाती थी;
होटल की दीवारें आकाश
में
ऊपर
उठती जाती थीं ।
प्रेम की गतिशीलता
खत्म हो जाती
और उनकी सारी गुप्त चिंताएं
आपस में मिल जाती हैं।
जैसे एक स्कूल के
बच्चे की
कॉपी में बने चित्र के रंग गीले होने पर
मिल जाते हैं।
अंधेरा,नीरवता।
शहर की सारी चीजें
अधिक से अधिक निकट आ जाती है। तृषित
खिड़कियों की तृष्णा अब गायब हो जाती है।
सारे घर आस-पास। इकट्ठे ऐसे
भावहीन चेहरों की तरह
मनुष्य की उस भीड़ से मिलने को आतुर।
ट्रान्स्ट्रोमर का जन्म सन
1931 में स्टॉकहोम में हुआ था। वह पेशे से मनोवैज्ञानिक थे। वह अपनी
पत्नी और दो बेटियों के साथ वास्तार्स नामक एक छोटे शहर में रहते
थे। तब तक उनके सात कविता संग्रह
प्रकाशित हो चुके थे। तेईस
साल की उम्र में उनके कविता संग्रह 'सत्रह कविता' ने स्वीडिश कविता प्रेमियों को एक
शक्तिशाली नूतन स्वर प्रदान किया था।
उनकी कविताओं में अपने छोटे शहर का अंधेरा,
बर्फ से भरी सर्दी और गर्मी
के शुरुआती दिन परिलक्षित होते हैं। आज
लिखते समय मुझे पता चला है कि ‘स्ट्रोक’ के
कारण विगत नौ सालों से चल-फिर नहीं पा रहे हैं। वे
व्हीलचेयर पर अपना जीवन बीता
रहे हैं। कविता नहीं लिख पाने
के कारण वे बोल देते हैं। जैसे मेरे एक और कवि-मित्र बैंगलोर के जयनगर में रहने
वाले गोपालकृष्ण आडिगा भी ऐसा ही करते थे।
मार्टिन
एल्वुड ने मेरी कविताओं का स्वीडिश भाषा में
अनुवाद किया है। वह एक कवि, नाटककार, कहानीकार
और सर्वोपरि अनुवादक संकलक हैं।
दोनों अंग्रेजी और स्वीडिश-फिनिश भाषाओं
में सिद्धहस्त एल्वुड द्वारा अनूदित
और संपादित 'मॉडर्न स्कैन्डिनेवियन पोएट्री' बहुत प्रशंसित
संकलन है। अमेरिका के प्रसिद्ध प्रकाशक न्यू डायरेक्शन ने इस
पुस्तक को प्रकाशित किया
है। इसमें नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क, आइसलैंड, ग्रीनलैंड और
एस्किमो समुदाय ‘सामी’ की लोक कविताएं संकलित
हैं। एल्वुड और उनके मित्र फ्रेडनहोम ने अंधे
स्वीडिश कवि लेनार्ट दाहल की कविताओं का अनुवाद किया है,जिसका
शीर्षक है 'द हाउस ऑफ डार्कनेस' । लेनार्ट दाहल लघु
कहानी संग्रह 'द फुलनेस ऑफ टाइम' और 'सिक्स प्लेज' के प्रसिद्ध लेखक
हैं। 'द हाउस ऑफ डार्कनेस' में
संकलित कविताएँ काफी हृदयस्पर्शी
हैं।
दोनों ने स्वीडिश कवि नील्स फेर्लिन का कविता-संग्रह 'विद
प्लेण्टी ऑफ कलर्ड ल्यार्ट्न’ के बहुत सारे
अनुवाद संकलित किए है। मार्टिन ने
अन्य स्वीडिश कवियों का अंग्रेजी में भी
अनुवाद किया है। मैं बहुत भाग्यशाली था कि ऐसे बुद्धिमान और
प्रसिद्ध साहित्यिक ने स्वीडिश भाषा में मेरी कविताओं का संग्रह तैयार किया था।
उन्होंने कविता-संग्रह का नाम 'डेथ एंड ड्रीम' (डोड ओच ड्रम) रखा
था। उन्होंने मुझे लिखा, "मैंने तुम्हारी कविताओं में दो
चिरंतन सत्य की जुगलबंदी पाई है इसलिए मैंने इस किताब का
यह नाम देने का फैसला किया है। मुझे आशा है कि आप किताब के इस
शीर्षक से सहमत होंगे।" पेर्ज़ोना प्रेस ऑफ स्वीडन ने सन
1985 में इस कविता-संग्रह
प्रकाशित किया था और इसकी प्रस्तावना
आलोचक और कवि हेलमैन लैंग ने लिखी थी। एल्वुड ने इसे
समीक्षार्थ थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर के
पास भेजा। थॉमस ने मुझे इस पुस्तक के बारे में लिखा:"स्वीडिश अनुवाद में आपकी कविताएं जीवंत, रंगीन और 'विदेशी' लग रही हैं, लेकिन
मेरी स्वीडिश कल्पना की तुलना में अधिक विदेशी नहीं है! मुझे लगता है कि अनुवाद
में बहुत कुछ खो जाता है लेकिन कथावस्तु बनी रहती है और मुझे आपकी कविताएँ पढ़कर बहुत खुशी हुई।"
जब मैं इन दिनों का
यह पत्र पढ़ता हूं, तो मुझे स्टॉकहोम और हार्वर्ड में उनके कविता-पाठ,उज्ज्वल
चेहरा और अंतरंग स्वर –सब याद आने लगते है। मैंने पहले भी
अन्यत्र कहा है स्टॉकहोम समारोह में जिस कविता को मैंने ओड़िया में पढ़ा, थॉमस ने उसी
कविता का स्वीडिश अनुवाद पढ़ा
था। कविता 'मौत और सपने' संकलन में है। 'विदूषक' और 'मुर्गो
की लड़ाई' दो कविताएं पढ़ी गई थीं। जब मैं हार्वर्ड में था,तब मुझे
नियमित रूप से थॉमस के पत्र मिलते
थे। उन्होंने एकाधिक बार मुझे
लिखा था कि उनका
स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता
है।अंत में, उनके साथ दो-तीन बार
मुलाक़ातें, काव्य-पाठ और बातचीत उनके
हार्वर्ड आने
के कारण संभव हुई थीं। बाद में जब मुझे
पत्र से उनके स्ट्रोक की
खबर मिली तो मुझे बहुत दुख हुआ था। मैं उन्हें
कवि के रूप में प्यार करता था। पेंगुइन यूरोपीय कवि श्रृंखला में थॉमस और
पावो हाविको के कविता-संग्रह का मैं पहले ही उल्लेख कर
चुका हूँ। मगर थॉमस के एकक कवि
के रूप में दो कविता संग्रह भी उस समय प्रकाशित हुए
थे। रॉबिन फुल्टन द्वारा अनूदित पहला कविता-संग्रह 'सलेक्टेड
पोएम्स' (1987) था। जब मैं
हार्वर्ड में था, तब यह
संकलन प्रकाशित हुआ था। लेकिन मुझे
स्टॉकहोम में उनसे यह संकलन मिला था। दूसरे संग्रह का
शीर्षक भी 'सलेक्टेड पोएम्स(1945-86)' था। इसे रॉबर्ट हास
और छह ह अन्य द्वारा संकलित और अनूदित किया गया था।यह भी सन
1987 में प्रकाशित हुआ था।
मैं अपने
परिवार के साथ स्टॉकहोम से होते हुए हार्वर्ड गया था। मैं स्टॉकहोम में केवल
तीन दिन बिता सकता था। मैं स्वीडन के अन्य शहरों में अपने भारतीय
साहित्यिक मित्रों से नहीं मिल
पाया था। क्योंकि मुझे निर्दिष्ट
तिथि तक हार्वर्ड जाना था। अन्य भारतीय
लेखकों में प्रोफेसर पी लाल, अयाप्पा पानिककर, कुर्तुलेन हैदर, अरुण कोलटकर, अनंत मूर्ति और कुँवर
नारायण शामिल थे। अब जब मैं इन नामों पर
नजर डालता हूं तो पता
चलता है अयप्पा, कुर्तुलेन और अरुण इस
दुनिया में नहीं हैं। अरुण दोनों मराठी और अंग्रेजी
में कविता लिखते थे। उनका अँग्रेजी
कविता-संग्रह 'येजुरि' अत्यधिक प्रशंसित
रहा है।
स्टॉकहोम में तीन कार्यक्रम थे। मेरे दोस्त थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर ने तीनों में भाग लिया था। पहला
था 'आधुनिक भारतीय
साहित्य में परंपरा का नवीनीकरण– कथावस्तु और भाषा' । हम सभी ने इस सत्र
में अपने विचार व्यक्त किए थे। यह स्वीडिश लेखक संघ
द्वारा आयोजित किया गया था,जिसमें
कई स्वीडिश लेखकों
ने भाग लिया था। उन्होंने कई सवाल पूछे थे। थॉमस द्वारा पूछे
गए प्रश्न सबसे अधिक व्यावहारिक थे। जिससे उनके दूरदर्शिता और साहित्यानुरागी
व्यक्तित्त्व की झलक मिलती है। क्या सचेतनता
लेखक का इच्छाकृत उद्यम है या बचपन
के परिवेश, सामाजिक रीति-रिवाजों और मूल्यों से उत्पन्न होकर
वह उनके तंत्रिका-तंत्र, धमनी-शिरा, हृदय और मस्तिष्क में
घोंसला बना लेता है ? उन्होंने कहा कि उनका दूसरे विकल्प में दृढ़ विश्वास
है। उन्होंने यह भी बताया कि स्वीडिश लोककथाओं, लोक-संस्कृति, शास्त्रीय स्वीडिश
कविता और इंगमर बर्गमैन की कई फिल्मों में यह बात प्रतिबिंबित हुई हैं। अपनी बात साबित
करने के लिए उन्होंने अपनी कुछ कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद पढे
थे। मैं उनकी राय से
पूर्णतया सहमत था। दो अन्य सत्र कविता-पाठ के लिए आयोजित किए गए थे। एक लेखक
संघ द्वारा अपने संस्थान में तो दूसरा स्टॉकहोम
यूनिवर्सिटी में। इन दोनों सत्रों में
थॉमस और कवि जेल एस्पामार्क ने
अंग्रेजी अनुवाद के साथ अपनी कविताएं पढ़ी थीं।
चिनुआ आचिबि: 'एंट
हिल्स ऑफ़ सवाना'
चिनुआ आचिबि तीन दिनों के लिए हार्वर्ड
आए थे। वह मैसाचुसेट्स कॉलेज में उस समय पढ़ा
रहे थे। वह अपने उपन्यासों के
कुछ अंश पढ़ने और उन
पर प्रकाश डालने के लिए सपरिवार वहाँ
आए थे। चिनुआ आचिबि नाइजीरिया के
प्रमुख उपन्यासकार हैं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त नाइजीरिया के ओले सोयिंका ने
मुख्यतः कविता और नाटक लिखे थे,
मगर आचिबि ने उच्च-श्रेणी के उपन्यासों जैसे 'थिंग्स फाल
अपार्ट',' एरो ऑफ गॉड ', ‘नो लोंगर एट
एज' और 'एंट
हिल्स ऑफ़ सवाना' की
रचना की थी। उनके दो कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए
थे: 'बीवायर सोल ब्रदर' और 'क्रिसमस इन बी-आफ्रा’।
उनके 'द ट्रबल विद नाइजीरिया' और 'होप्स एंड इम्पेड़ीमेंट' नामक दो निबंध-संग्रह, लघु कहानी-संग्रह 'गर्ल्स ऑफ वॉर एंड अदर स्टोरीज' प्रकाशित हुए
थे। अफ्रीकी लेखकों ने सहकारी आधार पर एक प्रकाशन संस्था का गठन किया है। जो
पेंगुइन प्रकाशन के नक्शेकदम पर अफ्रीका के विभिन्न देशों की
कविता, उपन्यास और नाटक प्रकाशित करता है। इस संस्था
के गठन में आचिबि ने
सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अधिकांश अफ्रीकी लेखक अंग्रेजी में लिखते
हैं। इसलिए वहाँ अनुवाद की समस्या नहीं
हैं। कुछ लेखक, जो अफ्रीकी भाषाओं में
लिखते हैं,यह
संस्था उनके अंग्रेजी-अनुवाद करने की जिम्मेदारी लेता है। इस प्रकार से विभिन्न अफ्रीकी देशों के प्रमुख लेखकों की
दो सौ से अधिक पुस्तकें इस प्रकाशन संस्था
द्वारा प्रकाशित हुई हैं।
इस संस्था का यूरोप और अमेरिका
के प्रमुख प्रकाशन-गृहों के साथ लेन-देन का संबंध है। मैंने आचिबि
के उपन्यास 'थिंग्स फाल
अपार्ट', और
‘नो लोंगर एट
एज' बहुत पहले पढे
थे। दूसरे उपन्यास का नायक विदेश में कई
साल बिताने के बाद अपने देश लौटता
है।वह अपने देश, समाज और संस्कृति से प्यार करता था। लेकिन वह अपने
परिवर्तित स्वरूप और समकालीन राजनीतिक-आर्थिक
दृष्टिकोण से बदले हुए समाज के साथ तालमेल नहीं बैठा
पा रहा था। इस उपन्यास में मानसिक संघर्ष के
साथ-साथ सांस्कृतिक संघर्ष को अच्छी तरह से दर्शाया
गया है। मगर उनका उपन्यास 'थिंग्स फाल
अपार्ट' दोनों पाठकों और आलोचकों द्वारा अत्यधिक सराहा
गया है। सन 1959 में इसके
प्रकाशित होते ही यू.एस.ए. में
बीस लाख से अधिक प्रतियां बिक गई थी। इस
उपन्यास का पचास भाषाओं में अनुवाद हुआ और एक करोड़ से
अधिक प्रतियों की बिक्री हुई थी। यह चिंनुआ की
सबसे अच्छी कृति है। कुछ आलोचक इस
उपन्यास की तुलना ग्रीक त्रासदी से करते हैं। मैंने दूसरों से सुना था और उन्होंने चर्चा के
दौरान सहमति भी जताई कि अमेरिका में प्रति वर्ष कम से कम
एक लाख प्रतियां बिकती हैं।
एक दुर्घुष शक्तिशाली चरित्र
ओकोन्को के चारों तरफ यह उपन्यास घूमता है।
उसका जीवन मुख्यतः भय और क्रोध से परिचालित होता है। संक्षेप में, विद्रूप और सहानुभूति के
दृष्टिकोण से चिनुआ जीवंत
चरित्र बनाने में सफल हुए हैं, जिसे
समझना मुश्किल है और जिसकी आत्महत्या पाठकों
को दुखी कर देती है। यह
उपन्यास अफ्रीकी जीवन से
ओत-प्रोत है, मगर देश,काल,पात्र
की सीमा
पारकर उपन्यास का चरित्र ओकोन्को कालजयी
बन गया है। दक्षिण अफ्रीका के उपन्यासकार नादीम गार्दीमोरे
की भाषा में, "चिनुआ आचिबि को
जीवंतता, उदारता
और महान प्रतिभा का जादू यशस्वी
उपहारस्वरूप मिला है।"
'थिंग्स फाल
अपार्ट 'उनका सबसे पसंदीदा उपन्यास है।
उनका कहना है कि इस उपन्यास में वे खुद को सबसे
शक्तिशाली और स्पष्ट तरीके से अभिव्यक्त कर पाए
हैं। मैंने उन्हें बताया था कि यह उपन्यास मुझे
भी बेहद प्रिय है। उन्होंने कहा कि 'बिवयार
सोल ब्रदर' और 'क्रिस्मस इन बी-आफ़्रा' उनके दो प्रिय
कविता-संकलन हैं। 'एंट
हिल्स ऑफ़ सवाना' सन
1987 में बुकर पुरस्कार के अंतिम चरण तक
पहुंचा था और उनका उपन्यास 'एरो ऑफ गॉड' को न्यू
स्टेटमैन-कैम्पबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। अन्य नाइजीरियाई पृष्ठभूमि वाले
उपन्यासों की तुलना में 'एंट हिल्स ऑफ़ सवाना' समग्र अफ्रीका के इतिहास और वर्तमान के आधार पर लिखा
गया है। साहित्यिक आलोचकों का मानना है कि समकालीन उपन्यास जगत
में यह उच्च कोटि की रचना है। मैंने हार्वर्ड
प्रवास के दौरान यह
उपन्यास पढ़ लिया था और मुझे यह बहुत
अच्छा लगा था। लेकिन उनका उपन्यास 'थिंग्स फाल
अपार्ट’ ही
मेरा सबसे पसंदीदा था। मैं कविता-पाठ के
बारे में जानता था, लेकिन उपन्यास-पाठ कैसे
होता है,मैं यह जानने के
लिए उत्सुक था। आचिबि ने पहले उपन्यास की कथा-वस्तु पर प्रकाश डाला, फिर उन्होंने उपन्यास की रचना-प्रक्रिया और उसके बारे
में अपने दृष्टिकोण
के बारे में विमर्श किया और अंत में उन्होंने कुछ चयनित अंश पढ़े । उसके बाद प्रश्नोत्तर के लिए कुछ समय निर्धारित था, उसमें आचिबि ने कोएट्जे और नादीम गारडिमोरे
(दो अफ्रीकी उपन्यासकार) के उपन्यासों पर चर्चा की
थी।उपन्यास-पाठ के बाद
फ़ैकल्टी क्लब में रात्रिभोज था, उसमें आचिबि
ने मेरे कुछ विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर दिया। मुझे लगा कि
आचिबि नाइजीरिया के नोबल
पुरस्कार विजेता ओले सोयिंका की कृतियों पर
विशेष अनुकूल भाव प्रदर्शित
नहीं कर रहे
थे। उनकी टिप्पणी इस प्रकार थी: " केवल सोयिंका ही क्यों, अफ्रीका के कई नामी लेखक पश्चिमी पाठकों को अपने बारे में समझाने का असाधारण प्रयास करते हैं। ऐसे
प्रयासों से मुझे बहुत दुख होता है। ऐसा लगता है कि वे केवल पश्चिमी पाठकों के लिए ही लिखते हैं, न कि संसार के समस्त साहित्य प्रेमियों के
लिए।"
आचिबि मुख्यतः उनके उपन्यासों के लिए
जाने जाते है, लेकिन
मैं उनकी कविताओं को पसंद करता हूं। बी-आफ्रा के
गृहयुद्ध, उसकी भयावहता,अनाहार और अकाल की बर्बरता के परिप्रेक्ष्य में आता है क्रिसमस। आचिबि
एक रोमन कैथोलिक थे। वह कुछ हद तक आस्तिक थे। कविता-संग्रह
'बी-आफ़्रा में क्रिसमस' ने
मेरे दिल को छुआ था। टाइम्स पत्रिका में
प्रकाशित अधमरी मां की
गोद में मरते हुए बच्चे की तस्वीर मुझे याद आने लगी। उस चित्र का शीर्षक 'पिएटा ऑफ बी-आफ्रा' था। ईसा के सूली पर चढ़ने के बाद उनकी माँ मरियम की गोद में लेटा हुआ ईसा मसीह की तस्वीर। ओड़िशा
के ‘न अंक’ अकाल के दृश्य जिसे मैंने नहीं देखे थे (मुझे फकीर मोहन की आत्मकथा से ही पता चला था) ने मुझे मर्मांतक पीड़ा दी। आचिबि अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उन्होंने कहा,
"मेरे चार बच्चे हैं,वे चार
उपन्यास हैं।" चिनुआ का जन्म 1930 में नाइजीरिया में ओगिडी नामक गांव में हुआ था।स्नातक होने के बाद वे एक्सटर्नल ब्रॉडकास्टिंग के निदेशक बने थे। बाद में उन्होंने नाइजीरिया विश्वविद्यालय में सीनियर रिसर्च फ़ेलो का काम किया। व्याख्यान देने के
लिए कई विश्वविद्यालयों में उन्हें आमंत्रित
किया था।
उन्होंने कहा कि सन 1972-76 एवं 1987-88 में मासाचुसेट विश्वविद्यालय में एवं एक साल
कनेकटिके में हार्वर्ड बहुत
परिचित और प्रिय क्षेत्र था । लंदन के संडे टाइम्स ने उन्हें 'बीसवीं शताब्दी के 1000 मीटर की लाइफलाइन’ कहा
था। इसका कारण यह था कि वे आधुनिक
अफ्रीकी साहित्य (जो वास्तव में अफ्रीकी था) के
प्रवक्ता थे।
उन्होंने कहा कि उन्होंने बच्चों के
लिए कुछ लिखा है।
मैंने कहा, “आपका बाल-साहित्य मैंने नहीं पढ़ा है।” वे अफ्रीका के अन्य तीन नोबेल पुरस्कार
विजेताओं को जानते थे और उन्होंने उन्हें पढ़ा भी था। नादिम गार्डिमोर के उपन्यास उनके
प्रिय थे। उन्होंने सोयिंका के नाटक और कविताएं भी पढ़ी थीं । उन्हें नाटक ज्यादा समझ में नहीं आते थे। उनके अनुसार नाटक केवल प्रदर्शन वाली कला है। चिनुआ सपत्नीक हार्वर्ड आए थे, अपना उपन्यास-पाठ,उन पर चर्चा और साक्षात्कार करने के लिए। हार्वर्ड में तीन दिन रहने के बाद वे न्यूयॉर्क लौट गए। उनके काव्य-पाठ और रात्रिभोज में कार्लो
फ्यून्टेस और सिआमस हिनि भी आए थे। मैंने पहले ही कहा है कि कार्लो और सिआमस मेरी ही तरह एक साल के फ़ेलोशिप पर हार्वर्ड आए थे।
जोसेफ ब्रोडस्की का
कविता-पाठ
15 फरवरी, 1988। यह जगह
अमेरिकी रिपॉर्टर थिएटर था। हार्वर्ड में जिसे
आर्ट कहते थे। , सन
1987 की 15 फरवरी को साहित्य में
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित यूसुफ ब्रोडस्की का
वहाँ कार्यक्रम आयोजित किया गया था, 'एक
शाम ब्रॉडस्की के नाम' ।कार्यक्रम 8 बजे
शुरू हुआ। हार्वर्ड के
विजिटिंग प्रोफेसर सिआमस हिनि ने ब्रोडस्की का
परिचय दिया। मैंने पहले कहा है कि वे रेटोरिक एंड लैंगवेज़ के
प्रोफेसर थे। सिआमस हिनि के साथ नजदीकियाँ बढ़ने के बाद मैंने उनसे
मज़ाक में कहा था कि
आम तौर पर, हम रेटोरिक और ओरेटरी दोनों
को गैर-साहित्यिक मानते हैं। उन्होंने
मुस्कराकर कहा, "भगवान का शुक्र है कि मैं इन दोनों गुणों से बहुत
दूर हूं।" ब्रोडस्की को सुनने के लिए थियेटर खचाखच
भर गया था। टिकटों की कीमत 15, 20 और 25 डॉलर थी। मेरे
मित्र हिनि ने मुझे कंप्लीमेंटरी टिकट लेने
का प्रस्ताव दिया। लेकिन मुझे पता चला कि उस
शाम के टिकटों की बिक्री से हुई आय का थिएटर के विकास में
प्रयोग किया जाएगा। इसलिए मैंने 20 डालर
का टिकट खरीदने का निर्णय लिया और वह बात मैंने हिनि को बता दी। ब्रोडस्की ने
अपनी कवितायें रूसी और अंग्रेजी दोनों में पढ़ी। उन्होंने लेनिनग्राद में कुछ दिन
पहले लिखी हुई अपने बचपन की स्मृति के
कुछ अंश
भी पढे। इसके अलावा उन्होंने अपने
एकमात्र नाटक 'मार्बल्स' के भी कुछ हिस्से
पढे। मैंने उस समय तक इस नाटक
को नहीं पढ़ा था। मुझे पता चला कि उस
समय तक वह नाटक मंच पर भी नहीं खेला गया था। नाटक
की सारी घटनाएं जेल के अंदर की थीं। जेल का आकार, ब्रोडस्की की भाषा
में,
एक अविवाहित युवक के छोटे बिखरे कमरे की तरह और आंशिक रूप से अनिश्चित
भविष्य वाले अंतरिक्ष यान के केबिन की तरह था। नाटक को
पढ़ते हुए उन्होंने कहा, "यह अनिश्चित समय अभी
से दो शतक बाद आएगा।" एक तरह से यह नाटक
कुछ हद तक ब्रोडस्की की आत्मकथा है। एक बार उन्हें
साइबेरिया में एक छोटे गांव कोर्सेक में
पांच साल के लिए एक कैदी के रूप में भेजा गया था। उत्तर ध्रुव से वह
गांव तीन सौ मील दूर था। पांच साल जेल काटने
के बाद उन्हें रूस से निर्वासित
किया गया था। उन्होंने इस नाटक के बारे में संक्षेप में बताया:
" जेल एक ऐसी जगह है जहां रहने के लिए बहुत कम जगह है,मगर
वहाँ सोचने के लिए बहुत समय मिलता है। नाटक
की अंतर्निहित कहानी में मनुष्य के जीवन के साथ समय, व्यक्तित्व और
रचनात्मक भावनाओं का आपसी संबंध दर्शाया
गया है।"
ब्रोडस्की को सन
1972 में रूस से निर्वासित किया गया था। तब
उनका कविता-संग्रह "ए पार्ट ऑफ
स्पीच"(1980) और निबंध-संग्रह 'लेस देन वन' (1986) बहुचर्चित किताबें थीं।
वेस्ट इंडीज कवि डेरेक वाल्कोट ने भी
शाम के कार्यक्रम में भाग लिया था। उन्होंने
ब्रोडस्की की पांच अंग्रेजी अनूदित कविताएं पढ़ीं।
अभिनेता वालेस सन ने ब्रोडस्की के नाटक
का एक दृश्य पढ़ा। उन्होंने वुडी एलेन की दो फिल्मों में अभिनय किया था। वे दो फिल्में थीं 'मैनहट्टन' और 'न्यू हैम्पशायर
होटल' । मैंने हार्वर्ड में फिल्म 'मैनहट्टन' देखी थी। बाद
में मुझे पता चला कि सन ने स्वयं
अपने दोस्त के साथ फिल्म 'माय डिनर विद आंद्रे' की स्क्रिप्ट लिखी
है। उस फिल्म में उनका अभिनय अत्यंत
ही उच्च कोटि का हुआ था। सन 1950 में अमेरिकन रिपोर्टरी
थिएटर की स्थापना हुई थी। कैम्ब्रिज में रहने
वाले अनेक कवि मित्रों ने इस थिएटर की
स्थापना की थी। जिसमें वरिष्ठ कवि
रिचर्ड विलबर, जॉन सिआरदी और रिचर्ड एवरहार्ट तथा
हार्वर्ड विश्वविद्यालय से
स्नातक लेखक डोनाल्ड हॉल, जॉन ऐशरी और फ्रैंक
ओ'हारा के
नाम उल्लेखनीय हैं। लेखिका नोरा सीयर ने थिएटर पर एक छोटी पुस्तक 'मेमोरिज
ऑफ द फिफ्टीज' लिखी
थी, जिसका उद्देश्य यह था कि
यदि संभव हो तो, कवि भी अभिनय करेंगे, निर्देशन
देंगे, थिएटर चलाएंगे और टिकट भी
बेचेंगे। मगर पहले वे यह सुनिश्चित कर
लें कि इन सभी का
उनकी रचनात्मक क्षमता पर कोई बुरा असर नहीं पड
रहा हैं। थियेटर में कई कार्यशालाएं आयोजित की जाती थी, जहां नाट्यकार
अपने नाटक के अपूर्ण दृश्यों को कुछ चर्चा के बाद बदल सकते
थे। संक्षेप में कहने का उद्देश्य था अमेरिकन वर्स
थियेटर बनाना अर्थात् अमेरिकी
काव्य
थियेटर।
प्लेवर मोली मानिंग ने इस
थिएटर की स्थापना की थी।उन्होंने थिएटर के उद्देश्य के बारे में कहा था:
"अब शब्दों से इतना डर है कि
हमारा लक्ष्य है
शब्दों को वापस लाना।" ऐसे
एक आदर्श थिएटर की मदद के लिए थोड़ी-बहुत सहायता
कर पाया, वह मेरे लिए खुशी की बात
थी।
ब्रोडस्की
की कविताएं बीसवीं सदी की कविता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। मुझे उनका
नेटिविटी पोएम्स कलेक्शन बहुत अच्छा लगता है,
जो उनके द्वारा क्रिसमस के अवसर पर हर साल लिखी गई
कविताओं का संकलन है। उन्होंने इन कविताओं में ईसा को बहुदृष्टिकोण
से वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में साधारण दुखी, जीवंत और सहानुभूतिशील
मनुष्य के रूप में चित्रित किया है। अब उनका
‘कविता-समग्र’
प्रकाशित हो चुका है,जिसकी
बिक्री भी बहुत अच्छी है।ब्रोडस्की की गद्य-रचनाएँ भी उच्च श्रेणी की
हैं।
मेरे मन में केवल एक ही चीज़
याद आ रही है। ब्रोडस्की निर्वासित होकर
अमेरिका के पूर्वी तट के एक विश्वविद्यालय
में प्रोफेसर बन गए थे।एक
साल भी नहीं हुआ होगा कि वे अमेरिका के पोएट लोरिएट बने और तीन साल होने
से पहले-पहले उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल
जाता है। सोवियत संघ और कम्युनिस्ट शासन का थोड़ा-बहुत
विरोध करने वाले लेखकों को नोबेल समिति द्वारा
ज्यादा महत्त्व देने के इतिहास के दृष्टिकोण से सोलगेनित्सिन और
ब्रोडस्की स्वाभाविक रूप से मन में आने लगते हैं। मैंने दोपहर
के भोजन के दौरान कार्लो फुएंटेस से इस बात पर चर्चा की थी। कार्लो
ने कहा , “हाँ, उन्हें
नोबेल पुरस्कार मिलता,मगर
इतनी जल्दी नहीं।" काम्यू की तरह ब्रोडस्की को
बहुत कम उम्र (50 से कम) में नोबेल पुरस्कार मिला था।
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