12. अमर्त्य सेन: कल्याण विकास अर्थशास्त्र के नए क्षितिज और स्टीव मार्गलिन
12. अमर्त्य सेन: कल्याण विकास अर्थशास्त्र के नए क्षितिज और स्टीव मार्गलिन
स्टीव मार्गलिन
अमेरिकी अर्थशास्त्री के रूप में चिर-परिचित नाम है।उन्होंने
ऑर्गेनाइजेशन ऑफ कोपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के लिए कई
योजनाएं तैयार की हैं। विभिन्न देशों में उन्हें लागू करवाकर
आर्थिक विकास के नए-नए रास्ते प्रशस्त
किए हैं। उनका कमरा लिटवार हॉल में गालब्रेथ के कमरे के पास था। गालब्रेथ और मार्गलिन एक-दूसरे की
प्रशंसा करते नहीं थकते थे।
स्टीव मार्गलिन
विश्व बैंक द्वारा भारत में सिंचाई के क्षेत्र की
कई परियोजनाओं की मार्गदर्शक एवं जनक हैं। वे माइक्रो-इकोनॉमिक्स
पर आधारित नई परियोजनाएं तैयार कर कार्यान्वयन करवाने में
सफल हुए हैं। इस संबंध में उनका ज्ञान विश्व बैंक और ओईसीडी द्वारा अत्यधिक सराहा
गया है। ओईसीडी के लिए उन्होंने कई तथ्य-आधारित
दस्तावेज तैयार किए हैं।
वह लंबे समय से
मेरे निजी दोस्त हैं। उस
समय मैं योजना आयोग के विशेष सचिव के रूप में जल संसाधन प्रभाग का
कार्य देख रहा था। विश्व बैंक के
माध्यम से हम एक-दूसरे के करीब आए। उन्होंने
विश्व बैंक की टीम के सदस्य बतौर कई बार सिंचाई
(विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित) से संबंधित योजना के कार्य का निरीक्षण किया था।
मेरे हार्वर्ड में प्रवास के समय स्टीव 'डोमिनेटिंग
नॉलेज' नामक पुस्तक का संपादन कर रहे
थे। इस संकलन में वे
अपने निबंध में इस तथ्य पर बल दे
रहे थे कि अनेक अर्थव्यवस्थाओं
में निजी आय महत्वपूर्ण उत्स
नहीं है। कभी-कभी उसके साथ जड़ित
रहती है समुदाय के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी और
कभी-कभी समुदाय के ऊपर अधिक शक्ति के अस्तित्व में दृढ़ विश्वास। निबंध का नाम था 'म्युचुअल रिलेशनशिप
ऑफ टेक्ने एंड एपिस्टेम-मैंने जमेंट एंड
कॉन्फ्लिक्ट' । निबंध मुख्यतः ओड़िशा के नूआपाटना के बुनकरों पर आधारित था। स्टीव ने
व्यापार के प्रति बुनकरों के दृष्टिकोण, उनके सामाजिक
संबंधों और धार्मिक मान्यताओं के बारे में अध्ययन करने के लिए बहुत
बार नूआपाटना आए थे। उनके
निबंध की मुख्य बात थी कि प्रौद्योगिकी के
उदय, विकास और
व्यावहारिक क्षेत्र में इसका इस्तेमाल व्यक्ति, समाज और विश्वास की
अनदेखी करके नहीं किया जा सकता है। उन्होंने नूआपाटना के बुनकरों का
उदाहरण दिया, जो अपने
ताँतों (चरखों) को भगवान मानते हैं,
वे अपने परिवार के पालन-पोषण में सहायक बुनाई-कला के
अस्तित्व को बड़े वरदान के रूप में मानते हैं।
स्टीव ने नूआपाटना से
एक छोटी किताब खरीदी,जिसमें बुनकरों
की अपने कार्यों में वस्त्र-चयन पद्धति में सर्वोच्च देवता को
आह्वान करने वाली प्रार्थना लिपिबद्ध थी। यह विश्वास से
संबंधित है, जिसने व्यक्ति और समुदाय के व्यावहारिक ज्ञान,कर्म-कौशल, आर्थिक दृष्टिकोण सभी
को प्रभावित किया है। यह सब विश्वास, ज्ञान, व्यावहारिक
दृष्टिकोण, सामाजिक संबंध और अपने से वृहत्तर
स्थिति के आह्वान से मिलकर बनता है।सामग्रिक
रूप से, उन्होंने इसे एपिस्टेम कहा,जो तकनीकी(टेक्ने)
से संबन्धित दूसरा पक्ष है। जब तक यह बात समझ में
नहीं आएगी,तब तक उत्पादन प्रक्रिया को
सही ढंग से समझा नहीं जा सकता है। उन्होंने अपने
निबंध को अंतिम रूप देने के
बाद मुझे अपनी लिखित राय देने का अनुरोध किया था और
मैंने वैसा ही किया। पुस्तक प्रकाशित
होने पर निबंध की शुरुआत में उन्होंने
मेरी राय का स्पष्ट उल्लेख किया था। मुझे हार्वर्ड से लौटने के दो साल बाद अर्थात्
सन 1990 में वह पुस्तक मिली। स्टीव
इस किताब में निम्न पंक्तियाँ लिखकर मुझे भेजी
थी: ' सीताकान्त
के लिए, जो सांख्य और योग का समान समानता के
साथ अभ्यास करता है' पुस्तक में शामिल सभी
निबंध सामूहिक रूप से विकास अर्थशास्त्र के कई नए क्षितिज खोलते
हैं। इस पुस्तक का
विशेष रूप से दुनिया के विकास अर्थशास्त्रियों ने
भरपूर स्वागत किया।
मेरे प्रवास के दौरान अमर्त्य सेन
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ऑफ इंग्लैंड से हार्वर्ड में लामोंट प्रोफेसर
के रूप में आए। उन्हें अर्थशास्त्र और दर्शन विभाग में
प्रोफेसर नियुक्त किया गया था। उन्होंने
अर्थशास्त्र में नैतिकता पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें
और निबंध लिखे हैं। दोनों स्टीव और मैं उनकी नियुक्ति से बहुत खुश थे। कारण
विश्वविद्यालय में ऐसी दोहरी नियुक्ति
मिलना बहुत दुर्लभ था।
श्री सेन के लिटवार हॉल में अपने कमरे में
बैठने के बाद स्टीव एक बार मुझे उनके
पास ले गए और मेरा उनसे परिचय करवाया। वे मेरी पूर्व नौकरियों, कैंब्रिज में मेरे
एक साल प्रवास में विकास अर्थशास्त्र का अध्ययन और विकास के
सामाजिक पहलुओं पर मेरी पीएच.डी॰ के काम के बारे में
विस्तार से जानना चाहते थे।
मैं उनसे कई बार लिटवार हॉल
में मिला था और कई विषयों पर चर्चा भी
की थी।
उनकी पहल पर एक आलोचना
गोष्ठी का गठन किया गया था। जिसका उद्देश्य दुनिया
के विभिन्न जगहों के वास्तविक परिपेक्ष्य और
उदाहरणों द्वारा नियमित रूप
से विकास अर्थशास्त्र के बारे में चर्चा करना था। हर महीने की आखिरी
शुक्रवार शाम को लिटवार हॉल के छोटे सम्मेलन कक्ष में गोष्ठी
की बैठक करने का निर्णय लिया गया। इसमें शामिल होने का
आमंत्रण पाकर मैं बहुत खुश हुआ था। श्री सेन, स्टीव, रिचर्ड हैरिस और
तीन अन्य अर्थशास्त्र संकाय से, डेविड मेबरी-लुईस, नृतत्व विभाग के प्रमुख और अन्य
तीन , केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट से
दो और मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) से तीन और बोस्टन
विश्वविद्यालय से एक अर्थशास्त्री इस
बैठक में भाग लेते थे। मुझे
विशेष रूप से डेविड मेबरी-लुईस का निबंध याद है, जो अमेज़ॅन नदी के रेन-फॉरेस्ट
के अंचलों में सड़कों के निर्माण और अन्य विकास प्रक्रियाओं के सामाजिक प्रभाव के
बारे में था। मुझे भारत में अकाल के लंबे इतिहास के संदर्भ में अर्थशास्त्र और
विकास के प्रयासों के विभिन्न पहलुओं पर श्री सेन का आख्यान
भी याद है। मैं बड़े समुदाय के अंदर अवरुद्ध छोटे से आदिवासी
समाज में विकास के प्रयासों के विभिन्न पहलुओं, विशेषकर
उनकी सामाजिक स्थिति, शिक्षा और धार्मिक विश्वासों के बारे में एक
निबंध पढ़ चुका था। मैंने संथाल समाज का विशद अध्ययन किया था। मैंने
अपने निबंध का शीर्षक रखा “विकास एवं
रीति-रिवाज”।
हर महीने संगोष्ठी के समापन पर एक रात्रि-भोज
का आयोजन किया जाता था, किसी
प्रोफेसर के घर में या फ़ैकल्टी
क्लब में। स्टीव हार्वर्ड में
नहीं रहते थे। वह सप्ताहांत में दो सौ मील दूर अपने घर लौट जाते
थे, क्योंकि
उनकी पत्नी वहां के स्थानीय कॉलेज में
पढ़ाती थीं।
अमर्त्य सेन ने अपने निबंध के
प्रारम्भ में मैक्स लूचाड़ो का उद्धरण दिया था। यह
इस प्रकार था: “The people who make a difference are not the ones with credentials
but the ones with the concern.” (And the Angels Were Silent)
अमर्त्य सेन के वक्तव्य
का मूल था, विकास अर्थशास्त्र में मानव जिम्मेदारी
प्रमुख है। यह केवल विकास ही नहीं बल्कि इसके पीछे वास्तविक समता
है। यह केवल साम्य ही नहीं, बल्कि उस साम्य
का गुणात्मक पहलू है। वे सशक्तिकरण के बारे
में भी बोले। सशक्तिकरण अर्थात्
आम आदमी को अपनी सामाजिक और आर्थिक
स्थिति पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता, शक्ति और सभी
संभावित अवसरों को प्रदान करना है।
उन्होंने अक्सर चर्चा के दौरान कहा, "क्या अर्थशास्त्र डिस्मल
साइंस बना रहेगा? क्या यह केवल
गणितीय समीकरणों और आंकड़ों की थ्योरी तक सीमित रहेगी
? क्या यह केवल इकोनोमेट्रिक
विश्लेषण में ही काम
आती रहेगी, जो विशेषकर पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के लिए
व्यावहारिक उपयोगिता के कारण महत्वपूर्ण है, परंतु
तीसरी दुनिया की दयनीय आर्थिक स्थिति, सामाजिक मूल्य, अकाल, भूखमरी, गरीबी रेखा और
सरकारी मशीनरी की अक्षमता को समझने,
निराकरण करने और इन समस्याओं को
सुलझाने में यह बहुत उपयोगी नहीं है।
उस समय तक वैश्वीकरण के विचार ज़ोर
नहीं पकड़े थे। अर्थशास्त्रियों को अभी तक इस विचार से बहकाया जाता
है। लेकिन अमर्त्य सेन के अनुसार एक ओर बाजार
अर्थशास्त्र की कमजोरियों को दूर करने और दूसरी
ओर राज्य-नियंत्रित विकास कार्यक्रमों की अक्षमताओं को ध्यान
में रखते हुए भविष्य में निर्णय लिए जाने चाहिए।
उनका मानना था कि अगर
किसी को ठीक से 'चिंता' नहीं है, अगर कोई प्रेम और स्नेह नहीं है (आम आदमी
के लिए, विशेषकर उपेक्षित हैं या निचले तबके वाले) तो
अर्थशास्त्र की आंकड़े-आधारित सारी
थ्योरी अर्थहीन हो जाएगी,
जो अब तक होता आ रहा है और इस वजह से आर्थिक दृष्टिकोण से विकसित देशों और
तीसरी दुनिया के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं। उनके और जीन ड्रेज द्वारा
अकाल पर किए गए शोध ने अर्थशास्त्रियों की आँखें खोल दीं।
अमर्त्य सेन की भाषा में, आज का सवाल बहुत विशिष्ट है: "... सरकार के अधिक या कम होने का नहीं, बल्कि
सुशासन का; सामाजिक सुरक्षा और सशक्तिकरण का सवाल है ।"
यही वजह थी कि उन्होंने भारत में शिक्षा
और स्वास्थ्य पर हो रहे अत्यंत कम खर्च की गंभीर आलोचना की
थी। उन्होंने इन दोनों विभागों पर अधिक व्यय किए
जाने की वकालत की थी।
उनका मानना है कि " अकाल भोजन की कमी के
कारण नहीं, बल्कि प्रशासन की कमी के
कारण पड़ते हैं।" अमर्त्य सेन के बारे
में समकालीन अर्थशास्त्रियों के विचार
ध्यान देने योग्य है।
" वे स्मिथ, रिकार्डो, मार्क्स, कैनेस और कालेकी
जैसी ही लीग में हैं ... वे ऐसे मुद्दों पर काम
करते हैं,जिन पर अर्थशास्त्र को काम
करना चाहिए..... यह मानव दर्शन है
जो डिस्मल साइंस की अंतरात्मा है।"
मुझे मालूम नहीं कि
अर्थशास्त्र को डिस्मल साइंस क्यों कहा
जाता है। लेकिन अमर्त्य से पहले अर्थशास्त्र गणित, सांख्यिकी और
विभिन्न थ्योरी (मांग, आपूर्ति, बाजार आदि) तक ही
सीमित था। अर्थशास्त्र ने पहली बार मनुष्य का
चेहरा देखा, गरीबी और समाज में आम
आदमी के स्थान पर सवाल खड़े किए। अब यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था तक सीमित न
रहकर कल्याणकारी अर्थशास्त्र के मूलसूत्रों
को खोजने लगी।
सभी नोबेल पुरस्कार
विजेता रॉबर्ट सोलो की राय से अवगत हैं । उन्हें 'आर्थिक पेशे का
विवेक रक्षक' कहा जाता है। अमर्त्य को अर्थशास्त्र की पारंपरिक परिधि की
बहुत ज्यादा जानकारी है। वह इकोनॉमिक
थ्योरी के विशेषज्ञ है।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, ऑक्सफ़ोर्ड, कैम्ब्रिज और हार्वर्ड
आदि में अर्थशास्त्र के क्षेत्र
में अपना अमूल्य योगदान दिया है। लेकिन उन्हें पूछी
जाने वाली समस्याओं में हैं: दुर्भिक्ष के कारण, आर्थिक विकास के
साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संबंध, प्रत्येक की आत्मोन्नति के लिए
सुविधाएं प्रदान करना, सशक्तिकरण और अर्थशास्त्र
में नैतिकता- अर्थशास्त्र के इन नए-नए पहलुओं को सुलझाने
में वे अग्रणी थे। जीन ड्रेज़ उनके साथ
थे, अकाल के बुनियादी कारणों का निर्धारण करने में उनका
दाहिना हाथ थे। अमर्त्य आर्थिक विकास में शिक्षा
और स्वास्थ्य के महत्व पर जोर देते रहे हैं। उन्होंने भारत
सरकार को प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की अनिवार्यता पर
चेताया। उन्होंने गरीबी की नई परिभाषा दी है। उनका मानना है कि
विकास कार्यों में सुशासन की कमी है,संसाधनों की नहीं।
वे कहते हैं, "..सवाल सरकार के अधिक या कम होने का नहीं है, बल्कि सवाल है
सुप्रशासन का, सवाल केवल समानता का नहीं है बल्कि समानता के प्रकार का है।" वास्तव में ‘डिस्मल
साइंस’ के क्षेत्र में वे
एक महान विकल्प हैं।
मेरे और स्टीव के साथ चर्चा
करते समय अमर्त्य हमेशा परोक्ष
रूप से 'हार्ड बॉयल्ड इकोनॉमिक थ्योरिस्ट' को वर्तमान
स्थिति का जिम्मेदार मानते है। जब उन्हें नोबेल
पुरस्कार मिला था तो प्रसिद्ध
अर्थशास्त्रियों ने कहा था:"वे स्मिथ, रिकार्डो, मार्क्स, कैनेस और कालेकी के
बराबर लीग के
थे।"
पूर्व आयोजित आलोचना
गोष्ठी के उनके निबंध के पहले पैराग्राफ को उद्धृत करते
हुए यह अध्याय समाप्त करूंगा: "बाजार, राज्य और आर्थिक
विकास,
सार्वजनिक वित्त और नीति-निर्धारण में उनका
हस्तक्षेप, विकास के मॉडल-निर्माण सिद्धांत आदि गरीब, वंचित, अकाल-ग्रस्त
लोगों के लिए क्या मायने रखते हैं? विकास और सामाजिक
न्याय,
समता और कल्याण, दुर्भिक्ष
और कु-प्रशासन और सामाजिक मूल्यों
के अवक्षय के बारे में ‘डिस्मल साइंस’
के पास कुछ कहने को है या इसे
सिर्फ वित्त के सीमित क्षेत्रों के
कम और कम से ज्यादा और ज्यादा निकालने में
महारत हासिल है? "
Comments
Post a Comment