11.जॉन केनेथ गालब्रेथ : सामूहिक दारिद्र्य का स्वरूप और धनाढ्य समाज
11.जॉन केनेथ गालब्रेथ : सामूहिक दारिद्र्य का स्वरूप और धनाढ्य समाज
मैंने हाल ही में
सुना कि प्रसिद्ध हार्वर्ड अर्थशास्त्री
जॉन केनेथ गालब्रेथ का सत्तानवें साल की उम्र में निधन हो गया है।
मेरी स्मृति मुझे 1987-88 के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की ओर ले गई,
जहां मैंने एक साल बिताया था। उस समय वे यूनिवर्सिटी के
इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट में एमेरिटस प्रोफेसर थे और मैं उनसे लिटवार हॉल के रूम नंबर
207 में दो-तीन बार
मिला था। मैंने उनके
घर 30, फ्रांसिस एवेन्यू
में कई बार मुलाकात भी की
थी, जो देश-विदेश के अर्थशास्त्रियों, आर्थिक समाचारों
के विश्लेषकों, छात्रों और अमेरिका
और अन्य देशों के प्रतिष्ठित लोगों के लिए एक आकर्षक जगह थी। मैं अक्सर
अर्थशास्त्र के वरिष्ठ प्रोफेसर स्टीफन मार्गलिन से मिलने लिटवार हॉल में जाया करता था। जिनका कमरा गालब्रेथ के कमरे के पास था, जो अधिकतर बंद रहता था। मैंने सुना था कि वे वहां बहुत कम आते हैं । इसलिए जितनी जल्दी हो सके मैं उनसे मिलना चाहता था। मैं पहले से ही उनकी पुस्तकें
पढ़ चुका था। वे भारत में अमेरिका के राजदूत थे और जॉन एफ॰ कैनेडी उनका बहुत सम्मान करते थे।
मैंने उनके कमरे में उनसे मिलने की इच्छा
व्यक्त करने छोटा
पत्र छोड़ दिया
था। पत्र में मैंने अपना पता और संक्षिप्त परिचय
लिख दिया था। चार दिन बाद मुझे उनका पत्र मिला। वे एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका द्वारा पुरस्कृत
होने के लिए मुख्यालय से बाहर जा रहे थे। उन्होंने मुझे अपने पत्र में
लिखा है कि जब वे
मुख्यालय लौटेंगे,
तब उनसे संपर्क
करें।
वास्तव में, वापस
आते ही उन्होंने मुझे अपने निवास पर मिलने के लिए समय दिया।
विश्वकोश
ब्रिटैनिका के विशेष
पुरस्कार की खबर
स्थानीय अख़बार बोस्टन ग्लोब और राष्ट्रीय
समाचार पत्रों जैसे न्यूयार्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट तथा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी गैजेट में प्रकाशित हुई थी। यह पुरस्कार उन्हें व्यापक
स्तर पर सर्व-साधारण
के लिए आर्थिक सिद्धांत विषय पर उनके काम के
लिए दिया गया था।
वह हार्वर्ड के
विद्वानों और राष्ट्रीय
स्तर पर उन्हें 'कैम्ब्रिज का कैसंड्रा' कहा जाता था। उनकी अद्यतन प्रकाशित पुस्तक का नाम था, 'परिप्रेक्ष्य में अर्थशास्त्र' । मुझे लगता है कि इस विश्व प्रसिद्ध
अर्थशास्त्री के बारे में संक्षिप्त
में कुछ कहना
ठीक रहेगा।उनका जन्म 15 अक्टूबर 1908 को कनाड़ा के ओन्टारियो
प्रांत में हुआ था। यह
यू.एस.ए. और कनाड़ा की सीमा पर स्थित है। वह लंबे समय तक अमेरिकी आर्थिक संघ के अध्यक्ष थे। वह कई वर्षों तक
अमेरिकी राष्ट्रपति के औपचारिक और अनौपचारिक सलाहकार थे। वह दुनिया भर के कई
विश्वविद्यालयों में एक विजिटिंग प्रोफेसर थे। कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद
डिग्री प्रदान की थी। वह राष्ट्रपति कैनेडी के कार्यकाल के दौरान भारत में अमेरिका
के राजदूत थे। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। वे अर्थशास्त्र की कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समितियों के सदस्य थे। उन्होंने
लंबे समय तक हार्वर्ड
विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया है। हार्वर्ड में पॉल एम॰ वारबर्ग प्रोफेसर के रूप में थे।उन्होंने
मुख्य रूप से चार प्रमुख विश्वविद्यालयों में पढ़ाया था। जिनमें स्थानीय गुलेफ़
विश्वविद्यालय, कैलिफोर्निया
विश्वविद्यालय, इंग्लैंड के कैम्ब्रिज
विश्वविद्यालय और अंत में हार्वर्ड में
शामिल थे। उनकी चर्चित पुस्तकों में थी 'द एफीलुएंट
सोसाइटी', 'द ग्रेट क्रैश', 'द
कल्चर ऑफ़ द कंटेनमेंट’, ‘द नेचर ऑफ द मास पोवर्टी’
आदि।
वे
एडम स्मिथ के
एक बड़े प्रशंसक थे। उन्हें स्मिथ की ‘थ्योरी ऑफ मॉरल सेंटिमेंट’ पढ़ने में आनंद आता था। उन्होंने अर्थशास्त्र में नैतिकता के बारे
में एक लंबा निबंध लिखा था (अमर्त्य सेन के लेखन में भी परिलक्षित होता है), जो
मुझे बहुत अच्छा लगा था। उन्होंने इस निबंध में लिखा था कि समकालीन आत्म-स्वार्थ अथवा सुविधाओं को ध्यान में
रखकर बहुत समय से आर्थिक नीतियां बनाई जा रही हैं, जिनकी करताली से सराहना की जाती है, मगर वास्तविकता के साथ उनका कोई संबंध नहीं होता है।
उन्होंने एक बार
ऐडम स्मिथ के बारे में लिखा था कि उनके प्रशंसकों ने उनके प्रति सबसे ज्यादा अन्याय किया है, क्योंकि
उनमें से बहुत से उन्हें ठीक से पढे भी
नहीं थे।
गालब्रेथ ने
समकालीन अर्थशास्त्र की गंभीर आलोचना की थी क्योंकि ज्यादातर लोकप्रियता और राजनीतिक लाभ के लिए उन्हें तैयार
किया जाता है। उन्होंने ऐसे दृष्टिकोण
और नीतियों को 'पारंपरिक ज्ञान' कहा। वास्तव में,
उन्होंने खुद इस वाक्यांश को गढ़ा था और आजीवन इस पारंपरिक ज्ञान
की आलोचना करते रहे थे।
अमेरिका की समकालीन
आर्थिक नीतियों के संदर्भ में उनका मानना था कि धनिकों पर कम कर लगाकर आर्थिक विकास नहीं लाया जा सकता था। इस तरह की
नीति उन लोगों द्वारा सराही
जाती है, जिन्हें इससे लाभ होता है। लेकिन यह राष्ट्र के आर्थिक विकास
के लिए अनुकूल नहीं है।
जिस
दिन उन्होंने मुझे मिलने का समय दिया था, उसी समय मैं उनके घर पहुंचा।
उनका घर मेरे एपार्टमेंट से ज्यादा दूर नहीं था। फिर भी मैं निर्धारित समय से पहले वहाँ पहुंच गया। कॉलिंग-बेल बजाने पर एक आदमी मुझे उनके
ड्राइंग रूम के भीतर ले
गया। उनका अध्ययन कक्ष ड्राइंग रूम से जुड़ा था, जिसमें
कई रैक किताबें थीं। वह आदमी एशियाई लग रहा था। मैंने उसका परिचय पूछा। मुझे आश्चर्य
हुआ, जब उस आदमी ने
मुझसे हिंदी में उलटा प्रश्न पूछा, भारत में मेरा घर कहाँ है? बाद में पता चला कि गालब्रेथ के दिल्ली प्रवास के समय से उनके साथ है। वह कहने
लगा, “ साहिब मेरे ऊपर इतना भरोसा
करते हैं और
मेरे ऊपर
पूरी तरह से निर्भर है।
मैं साहिब
के परिवार
के सदस्य की तरह हूँ।
मैं उन्हें
छोड़कर
और कहीं जाने का सपने में भी नहीं सोच सकता।मैंने अपने जीवन
में कभी भी ऐसा अच्छा इंसान नहीं
देखा।”
उनके
घर की दीवारें भारत की तस्वीरों और कला वस्तुओं से भरी हुई थीं। चारों तरफ भारतीयता की महक थी । मुझे तो पहले अपना ही घर लगा। दीर्घकाय गालब्रेथ ने ड्राइंग रूम में प्रवेश करते ही मुझे पूछा, “ चाय लोगे या कॉफी?’ मैंने कहा, “चाय ” तो उन्होंने कहा,“
मुझे भी चाय
ज्यादा पसंद
हैं।” मैंने उन्हें पुरी के रेलवे होटल (जब अमेरिकी राजदूत के रूप में पुरी गए थे) के विशेष रूप से उनके
लिए किए गए सात फुट बिस्तर के बारे में याद
दिलाया। मैंने उन्हें बताया कि उस बिस्तर को अभी भी एक स्मृति-चिन्ह के रूप में होटल में रखा गया है। हँसते हुए उन्होंने कहा, "जब मैं होटल छोड़ रहा था, तो
होटल वाले मुझसे
उस बिस्तर
को नई
दिल्ली भेजने के लिए पूछह रहे थे। मैंने उत्तर दिया कि क्या आप लोग नहीं चाहते कि मैं फिर से पुरी आऊँ। तब जाकर मामला खत्म हुआ था।"
उन्होंने मुझे हार्वर्ड की असहनीय सर्दी, शून्य से नीचे तापमान और हाड़कंपाती उत्तरी ठंडी हवा के बारे में पूछा। वे
कहने लगे , "तुम्हें
बहुत कष्ट हो रहा होगा। क्योंकि ओड़िशा में सर्दियों का मौसम लगभग नहीं के बराबर है।" उन्होंने
मुझे पहले पांच मिनट में सहज कर
दिया। उन्होंने दिल्ली में अपने प्रवास, नेहरू के संबंध और ओड़िशा सहित भारत के आस-पास की यात्राओं के बारे
में बातचीत
की। उन्होंने कहा, "आई जस्ट लव इंडिया एंड चेरिश माय मेमोरिज ऑफ इंडिया।"
हमने अमेरिकी
अर्थव्यवस्था, फेडरल बैंक, राष्ट्रपति केनेडी के कार्यकाल, नई दिल्ली में श्रीमती गांधी के साथ उनकी
मुलाकात, उनकी पुस्तकें आदि
के बारे में कई विषयों पर चर्चा की। मैं कई मामलों में उनकी राय जानना चाहता था, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि यह हमारी पहली बैठक में
संभव नहीं होगा। मेरा बायोडाटा पहले से ही
जानने के कारण भारत के आर्थिक विकास, सरकारी नीतियों, सामूहिक दारिद्रय, गरीबी रेखा आदि विषय
पर पूछह ने के लिए उनके पास भी बहुत सारे सवाल थे। हर विषय पर इधर-उधर से सवाल
पूछह रहे थे। मुझे लगा कि उन्हें हर विषय
पर सम्यक ज्ञान
है और वे ज्यादा जानने
के लिए उत्सुक हैं।
इस प्रकार मैंने इस बैठक
में बहुत कुछ कहा। मैंने यह भी कहा था कि मैं अधिक समय के लिए फिर से मिलना
चाहूंगा। उन्होंने स्वीकृति दे दी।
उन्होंने मेरे
सवालों के बहुत ही उचित उत्तर दिए थे। उनकी आवाज गंभीर थी, उनके वाक्य नपे-तुले शब्दों और संयमित भाषा में गठित थे। उन्होंने कहा, "समग्र पुस्तक लेखन की तुलना में द्वितीय
विश्व युद्ध के दौरान कीमतों में नियंत्रण रखने के लिए नियुक्त कमेटी के अध्यक्ष
के रूप में मेरा काम सबसे संतोषजनक और शायद सबसे महत्वपूर्ण है। इसकी तुलना में प्रथम विश्व युद्ध के समय फेडरल बैंक ने जो काम किए थे,
वे काम बिलकुल
संतोषजनक नहीं थे।"
मैंने
देखा कि उनकी फेडरल बैंक और उसके नीति-निर्धारण
प्रणाली के बारे में मजबूत राय थी। उन्होंने सामान्य तरीके
से एलन ग्रीनस्पैन (फेडरल बैंक के प्रमुख) की प्रशंसा की। मगर उन्होंने यह भी कहा, "हमने उनके जैसी नाटकीयता
कभी नहीं देखी।"
मैंने उनसे पूछा, “क्या आपने अमेरिकी सरकार को
कई मुद्दों पर,विशेषकर निवेश संबंधित
मुद्दों पर सलाह दी थी?”
उन्होंने कहा, "मोटामोटी नहीं। कारण हर कोई
अच्छी सलाह को भूल जाता है। मगर गलत
सलाह रहती है और उनकी
तारीफ की जाती है।"
उनके
कहने के अंदाज से मुझे याद आ गया कि उनकी रचना-शैली की अद्भूत सादगी, सुंदरता और तीक्ष्णता है। अर्थशास्त्र जैसे
कठिन विषय पर इतना
स्पष्ट रूप से लिखा जा सकता है, यह जानकर समकालीन अर्थशास्त्री
आश्चर्यचकित भी थे
और ईर्ष्या भी करते
थे।
'द एफीलुएंट सोसाइटी' उनकी बहुचर्चित किताब थी।
जब मैंने उनसे इसके बारे में पूछा, तो
उन्होंने उत्तर दिया, "आपने
किताब में 'अवकाश के लिए
आवंटित वाक्यांश' का प्रयोग देखा
होगा। अभी का समय बहुत खराब हैं। अगर मैं इसे फिर से
लिख सकता तो मैं उस किताब का नाम 'द डिप्रेस्ड
इकोनॉमी' रखता। तो बहुत ज्यादा पुस्तक प्रेमियों के पास पहुंचती।
अब इस पुस्तक की मांग नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा," मैंने 'इकोनोमी इन पर्सपेक्टिव' पुस्तक में अर्थशास्त्र और राजनीति के उचित आत्मसात के बारे में चर्चा की
है। रोज़गार को कम करने और मांग को कम करने के बीच तालमेल नहीं है।"
मैंने पूछा," मतलब क्या दोनों घटक एक-दूसरे के विपरीत हैं? मांग कम करने के लिए रोजगार का स्तर घटाना पड़ेगा? " उन्होंने कहा," मैं आपको दो चीजें बताऊंगा। सबसे पहले, हम
केनेसियन अर्थशास्त्र में देख सकते हैं कि बेरोजगारी (जब मांग में वृद्धि हुई है) और मुद्रास्फीति (जब
मांग कम करने के प्रयास किए गए हैं) एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। दूसरी, हम
दूसरे विश्व युद्ध के समय से ध्यान नहीं दे रहे हैं। राजनीतिक दृष्टिकोण से मांग बढ़ना अपेक्षाकृत आसान है, यह तब संभव है जब
कर की दरें कम हो जाती हैं और सरकारी खर्च बढ़ जाते हैं। परंतु उसका उल्टा काम करना राजनैतिक दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा
कष्ट-साध्य है।"
उन्होंने एक और
वाक्य पर बल दिया, 'समस्याएं आंशिक तौर पर अर्थशास्त्र की हैं तो आंशिक रूप से
विचारधारा की।
मैं जो सुझाव दे रहा हूं वह राजनीतिक रूप से मुश्किल है, लेकिन मजदूरी और कीमतों को बाजार में छोड़ने की मजबूत विचारधारात्मक प्रतिबद्धता भी
है।"
उन्होंने अपनी
पुस्तक ‘द नेचर ऑफ द मास पोवर्टी’
पर हस्ताक्षर कर मुझे देते हुए कहा, “ यह मेरी पसंदीदा किताब है। अर्थशास्त्री के रूप में मेरी सबसे बड़ी विफलता यह है कि दुनिया में व्यापक गरीबी के कारणों और
उपचारों का निदान करने में वे अक्षम थे।” उन्होंने विराम लेते
हुए कहा, "यह पूरी तरह से अर्थशास्त्र
की विफलता है। हमें इतने सारे सिद्धांतों का दावा करना चाहिए? हमें बहुत सलाह देनी चाहिए? हमें इतनी बड़ी-बड़ी बयानबाजी करनी चाहिए?"
फिर
से रुककर कुछ कहने लगे," जब मेरी पत्नी ने तुलनात्मक साहित्य में पीएचडी कर रही थी तब उसने मुझे
कहा
कि कैनेस के सेमिनारों
पर गुस्से से कहा था- तुलनात्मक साहित्य की 'जनरल थ्योरी' की प्रस्तावना में कैनेस
ने कहा था कि कुछ ऐसे अन्य
विषय भी
हैं, जिसके बारे में उन्होंने अच्छी तरह से सोचा नहीं
है।प्रस्तावना
पढ़ने के बाद मैंने किताब बंद कर दी और निर्णय लिया कि कैनेस के इस
विषय पर सोचने के बाद ही मैं इसे पढ़ूँगी।"
मैं गालब्रेथ के हास्य-विनोद के बारे में जानता
था और मुझे अच्छा लगता था। मैंने उनकी पुस्तक 'चाइना
पैसेज' की दो घटनाओं के बारे
में याद दिलाया।तीन
सदस्यीय आर्थिक प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के रूप में चीनी सरकार के निमंत्रण पर गालब्रेथ
बीजिंग गए हुए थे।
उन्होंने लिखा, "मैंने
देखा है कि हमें हवाई अड्डे से
होटल तक ले जाने के लिए आया हुआ आदमी बार-बार मुझे सिर से पाँव तक देख रहा था। फिर अपनी छोटी कार की तरफ उदास आँखों से देख रहा था। उसके दुख को दूर करने के लिए मैंने
तुरन्त कहा, 'आई
एस्योर यू आई एम क्वाइट कोलेप्सेब्ल।' मैंने उन्हें 'चाइना
पैसेज' की एक और घटना याद
दिलाई।
चीन की यात्रा के दौरान वह बीमार हो गए थे। एक चीनी डॉक्टर उन्हें देखने आया और उनसे कई सवाल पूछे। जैसे गर्म चीजें अच्छी लगती हैं या
ठंडी?
कौन-सी करवट सोना अच्छा लगता है? इत्यादि। सब-कुछ सुनने के बाद उसने
मुझे आश्वस्त किया कि मैं बच
जाऊंगा। इस घटना को याद कर वह हंसते हुए कहने लगे,
“तुम्हारी याददाश्त बहुत तेज है।” कई अमेरिकी
राष्ट्रपति रूजवेल्ट से लेकर कैनेडी तक विशिष्ट
मुद्दों पर गालब्रेथ की सलाह मांगते
थे। उन्होंने जेएफके के बारे में कहा, "शुरू में, वह समस्या संबन्धित समाधान के बारे में फोन से पूछह ते थे।
बाद में पूछह ते कि मैं क्या कर रहा हूं, मैं क्या देखता हूँ, भारत के बारे में क्या सोचता हूँ। अंत में, न तो उन्होंने मुझे फोन किया और न
ही मैंने। उसके बाद हम दोनों ने सुरक्षित दूरी बना ली।"
उनके साथ किताबों
से भरे उनके
ड्राइंग रूम में एक घंटा
बीत चुका था। उनके स्टेनो ने उन्हें याद दिलाया कि एक मैक्सिकन पत्रकार उनकी पांच से सात मिनट से प्रतीक्षा कर रहा है। जैसे ही मैं उठना चाह रहा था, उन्होंने मुझे रोक दिया, "एक
मिनट और।"
वह अंदर गए और वापस लौटे एक किताब के साथ। हस्ताक्षर कर वह किताब मुझे दी।
शीर्षक था 'द स्कॉच' । हँसते हुए कहने लगे, "इस किताब का व्हिस्की से कोई
संबंध नहीं है।यह मेरे जीवन की वह कहानी है, जब तक विश्वविद्यालय में मेरा आगमन नहीं हुआ था। कनाड़ाई हमें इसी नाम से बुलाते थे। ‘स्वांत सुखाय’
के मैंने यह
किताब लिखी
थी। यह अर्थशास्त्र की किताब नहीं है।"
एक
दिन फिर आऊँगा, कहकर मैं उनके घर (30, फ्रांसिस एवेन्यू) से रवाना हुआ।
Comments
Post a Comment